ये बिहार है.... गौरवशाली इतिहास, परंपरा और संस्कृति की भूमि

यह तप की भूमि है...जप की भूमि है... शिक्षा और ज्ञान की भूमि है... शांति और अहिंसा की भूमि है... आध्यात्म और प्रेम की भूमि है... यह साहस और पराक्रम की भूमि है... यह मुक्ति और मोक्ष की भूमि है... जी हाँ.. यह बिहार की भूमि है।
इसी धरती पर सिद्धार्थ ने तप किया... और गौतम बुद्ध बन गए... यहीं वर्धमान ने जप किया और भगवान महावीर कहलाए... इसी पावन भूमि पर बौद्ध और जैन धर्म ने जन्म लिया और पूरे विश्व को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाया...यहीं दुनिया का पहला विश्वविद्यालय स्थापित हुआ ...इसी माटी में महर्षि याज्ञवल्क्य और माता सीता ने जन्म लिया... इसी धरती पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की... इसी धरती पर आर्यभट्ट, सुश्रुत और चाणक्य पैदा हुए... यही सम्राट अशोक, गुरु गोविंद सिंह और बाबू कुंवर सिंह की जन्मस्थली रही.. और इसी धरती पर फाल्गू नदी बहती है... जहाँ अपने पूर्वजों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूरी दुनिया से लोग आते हैं.... जी हाँ... यह बिहार है।
पहला गणतंत्र
बिहार की भूमि पर ही पहली बार केंद्रीकृत शासन प्रणाली की शुरुआत हुई और शक्तिशाली महाजनपद अस्तित्व में आए। बिहार में ही विश्व का पहला गणतंत्र यानी रिपब्लिक की परिकल्पना साकार हुई। सम्राट अशोक ने यहीं से पहली बार एक कल्याणकारी राज्य का आदर्श प्रस्तुत किया। ब्रिटिश सत्ता को पहली बार सशक्त चुनौती देनेवाला जन आंदोलन, वहाबी आंदोलन यही संगठित हुआ। 1857 में बाबू कुँवर सिंह और पीर अली जैसे देशभक्तों ने ब्रिटिश सत्ता को यहीं से ललकारा था। महात्मा गाँधी ने पहली बार सत्याग्रह का प्रयोग भारत में जन आंदोलन के हथियार के रूप इसी धरती पर किया। स्वतंत्र भारत का प्रथम राष्ट्रपति इसी भूमि ने प्रदान किया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति की कल्पना इसी भूमि से व्यापक जन आंदोलन का प्रेरणा स्रोत बनी।
शेरशाह की कर्मभूमि यही बिहार की भूमि थी। यही क्षेत्र उसके प्रशासनिक सुधारों की प्रयोगशाला रहा। बिहार की इसी भूमि पर सूफी संतों ने प्रेम, बंधुत्व, सद्भाव और धार्मिक सहिष्णुता के उपदेश दिए।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की धरोहर को जर्रे..जर्रे में समेटे बिहार प्राचीन काल से ही कला, संस्कृति, अध्यात्म, दर्शन, विद्या, शौर्य और मानव इतिहास के गुणों का केंद्र रहा है। ऐतिहासिक काल से आज तक देश के इतिहास के हर मोड़ पर, हर अध्याय पर बिहार का प्रमुख स्थान रहा है। राजतंत्र से लेकर लोकतंत्र और दर्शन से लेकर अध्यात्म तक में बिहार का जो योगदान भारत की विकास में रहा है, उसका भारतीय इतिहास और भारत के विकास में कोई सानी नहीं है।
यह बिहार और मगध पर शासित तत्कालीन राजा धनानंद की ताकत ही थी जिसे सुनकर विश्व विजेता सिकंदर को भी भारत पर जीत हासिल किये बिना वापस लौटने पर बाध्य होना पड़ा। अगर सिकंदर भारत को जीत लिया होता तो पता नहीं देश के इतिहास का रूप आज क्या होता।
बिहार और शिक्षा
शिक्षा, साहित्य और विज्ञान की अद्भुत प्रगति की गवाह रही है बिहार की धरती... यही वजह है कि प्राचीन काल से आधुनिक काल तक बिहार आए तमाम विदेशी यात्रियों ने भी यहां के गौरव और समृद्धि की खुलकर प्रशंसा की। चाहे वो प्राचीन काल में मेगस्थनीज, फाह्यान, इत्सिंग और ह्वेनसांग रहे हों या मध्यकाल में मिन्हाज-उस-सिराज, इखत्सान देहलवी या शेख कबीर हो... या आधुनिक काल में आए यूरोपीय यात्रियों में रॉल्फ फिंच, एडवर्ड टेरी, जॉन मार्शल, पीटर मुंडी हों या मनुची और बर्नियर हों.. सबने अपनी पुस्तकों और यात्रा वृतांत में बिहार की खूब चर्चा की है।
बिहार का नामकरण
विहार का शाब्दिक अर्थ ‘‘बौद्ध भिक्षुओं का निवास’’ होता है। इतिहासकारों के अनुसार इस क्षेत्र में बौद्ध विहारों की संख्या बहुत ज्यादा थी। बिहार शब्द इसी ‘विहार’ का अपभ्रंश है। बिहार का प्राचीनतम उल्लेख अथर्ववेद तथा पंचविश ब्राह्मण में मिलता है, जो संभवत: 8वीं से 10वीं ईस्वी पूर्व का काल था और उस समय बिहार को ब्रात्य कहा गया है, जबकि ऋग्वेद में बिहार और बिहार वासियों को ‘कीकर’ कहा गया है। प्राचीन ग्रन्थों में बिहार से अनेक राजाओं के नाम जुड़े हुए हैं। इनमें गांधार, शल्य, कैकय, कुरु, पांचाल, कोशल, विदेह आदि राजाओं का उल्लेख मिलता है।
बिहार गंगा नदी के दोनों किनारों पर बसा एक मैदानी इलाका है, जिसे गण्डक, कोसी, सोन, पुनपुन जैसी कई नदियां सींचती हैं। नादियों का यह राज्य भारत का सबसे उपजाऊ इलाका रहा है। यही वजह रही कि जब सरस्वती नदी की धारा सूख गई तब आर्यों का एक समूह मध्य गंगा घाटी पार कर गण्डक नदी के तट पर पहुंचा। आर्यों के इस समूह के प्रमुख का नाम था निमि विदेह....।
इस वंश के दूसरे राजा मिथि जनक विदेह ने मिथिलांचल की स्थापना की और मिथिला को राजधानी बनाया। इसी कुल के 25वें राजा थे सीरध्वज जनक... जिनकी पुत्री थी सीता। इसी विदेह राज्य में महाराज जनक के दरबार में वैदिक काल के महान ऋषि और दार्शनिक याज्ञवल्क्य भी थे जिन्होंने शुल्क यजुर्वेद संहिता और शतपथ ब्राह्मण जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की।
बिहार का दर्शनशात्र
बिहार के मिथिला में ही पूर्व मीमांसा दर्शन के महान आचार्य मंडन मिश्र का जन्म हुआ था जिन्होंने आदि शंकराचार्य से 42 दिनों तक शास्त्रार्थ किया था। शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र के हार जाने के बाद उनकी पत्नी उभय भारती ने अपनी सवालों से आदि शंकराचार्य को निरुत्तर कर दिया था।
इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक मगध और मौर्य का केन्द्र बिहार ही था। इन साम्राज्यों ने न केवल बिम्बिसार, आजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य जैसे प्रतापी राजा दिए, बल्कि ‘आसेत हिमालयात्’ यानी समुद्र से हिमालय पर्वत तक शासन की स्थापना कर भविष्य के अखंड भारत का आधार भी तैयार किया।
राजकीय चिन्ह और बिहार का योगदान
भारत के आजाद होने के बाद राष्ट्रीय ध्वज के मध्य में बना ‘अशोक चक्र’, सम्राट अशोक के समय में शिल्प कलाओं में बनाए गए चक्र से प्रेरित है। इसके साथ ही स्वतंत्र भारत का राजकीय प्रतीक- ‘अशोक चिन्ह’- भी सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है।
इन्ही साम्राज्यों के शासन काल में आयुर्वेद के जन्मदाता पतंजलि ने ‘योगसूत्र’ और ‘महाभाष्य’ नामक ग्रंथ लिखकर दुनिया को योग से परिचय कराया... तो वहीं कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ नामक कालजयी कृति की रचना की। दुनिया में काम के महान ग्रंथ के तौर पर स्थापित ‘कामसूत्र’ के रचयिता वात्स्यायन भी बिहार के ही रहने वाले थे।
साहित्य और कला
युगों युगों से साहित्य, संगीत, कला, भाषा, धर्म और आध्यात्म के क्षेत्र में बिहार का डंका पूरी दुनिया में बजता रहा है। बिहार के साहित्यकारों ने अपनी रचना से न केवल भारतीय साहित्य के भंडार को भरा है बल्कि बिहार का नाम पूरे विश्व में रोशन किया है। काव्यशास्त्र और श्रृंगार के क्षेत्र में भी बिहार में प्रसन्नराघव, काव्यप्रदीप, रसमंजरी, रसिक सर्वस्य, अनर्घराघव और संगीत शास्त्र से जुड़ी ‘संगीत सर्वस्य’ जैसी कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई।
भारतीय साहित्य की श्रृंगार परंपरा के साथ-साथ भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली के सर्वोपरि, मैथिल कवि कोकिल कहे जाने वाले विद्यापति का जन्म इसी बिहार के मधुबनी जिला के बिस्फी गांव में हुआ था।
इसी बिहार के सारण जिला के कुतुबपुर दियारा गांव में जन्मे और भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर ने अपनी भोजपुरी गीतों और नाटकों के जरिए लोक जागरण का अद्भुत संदेश देकर समाज में एक नया अलख जगाया। करुणा और विरह के रस से लबरेज उनकी बिदेसिया लोकगीत बेहद लोकप्रिय है।
आधुनिक काल के प्रसिद्ध साहित्यकारों और कवियों में देवकीनंदन खत्री, राजा राधिकारमण सिंह, शिवपूजन सहाय, नागार्जुन, रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, फणीश्वरनाथ रेणु, गोपाल सिंह नेपाली, जानकी वल्लभ शास्त्री, वाचस्पति मिश्र, राजा जगन्नाथ सिंह ‘किंकर’ जैसे प्रमुख हस्तियों की जन्मस्थली बिहार ही रही है। जिन्होंने अपनी रचनाओं से बिहार के साथ ही भारत का मान-सम्मान बढ़ाया।
वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला, स्थापत्य कला, संगीत कला या नृत्य कला... इन सभी कलाओं में बिहार का इतिहास बेमिसाल रहा है। बिहार की कलात्मक सम्पदा प्राचीन भी है, बहुआयामी भी और समृद्ध भी। नालंदा, विक्रमशिला, वैशाली, राजगृह और पाटलीपुत्र में मौजूद प्राचीन और ऐतिहासिक शिलालेख, खंडहर, भग्नावशेष इसकी पुष्टि करते हैं कि सदियों तक पूरे भारत की राजनीति, धर्मनीति, चिंतन-मनन और संस्कृति बिहार द्वारा प्रवाहित होती रही है।
बिहार की मिट्टी में सदा से संगीत फलती-फूलती रही है। संगीत की अनेक प्रकारों की जन्मस्थली बिहार की धरती ही रही है। इनमें नाचारी, लगनी, फाग, चैती, पूरबी आदि प्रमुख हैं। पटना, गया, मुंगेर, शाहाबाद, भागलपुर, दरभंगा और बेतिया बिहार में संगीत के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं। 19वीं सदी के शुरू में पटना के प्रसिद्ध संगीतज्ञ मुहम्मद रजा ने राग-रागनियों को नए रूप में सजाया और ‘ठाठ’ नामक वाद्य यंत्र का निर्माण किया। उनकी पुस्तक ‘नगमात-ए-आसफी’ संगीत कला की एक अनमोल धरोहर है।
लोक संस्कृति
शास्त्रीय संगीत के साथ ही लोक संगीत और नृत्य की उर्वर भूमि रही है बिहार की धरती...। जिसकी झलक महात्मा बुद्ध के काल में आम्रपाली से लेकर आधुनिक काल में भिखारी ठाकुर से लेकर शारदा सिन्हा तक की गायकी में देखने को मिलती है।
लोक संगीत और नृत्य के अनेक लोकप्रिय रूप प्रचलित हैं बिहार में...इनमें जट-जटिन, झिझिया, डोमकच, समा-चकवा, लौंडा का नाच, झूमर और नट नटनी का नाच... राज्य की जीवंत और विविध सांस्कृतिक परंपराओं का बखूबी प्रदर्शन करते हैं।
बिहार की सांस्कृतिक विरासत.. कला, संगीत, नृत्य, चित्रकला और परंपराओं का अनूठा संगम है। मधुबनी और मिथिला पेंटिंग, मंजूषा कला, पटना कलम, भागलपुरी सिल्क और सिक्की शिल्प जैसी कलाकृतियां जहाँ बिहार की चित्रकला की मजबूत विरासत को दर्शाती हैं। वहीं हिंदी, उर्दू, मैथिली, बज्जिका, भोजपुरी, अंगिका और मगही जैसी भाषाओं के साथ बिहार की भाषाई विविधता उनकी खूबसूरती और समृद्धि में इजाफा करती है। इसके साथ ही बिहार की सांस्कृतिक विरासत इसके त्योहारों जैसे छठ, रामनवमी, होली और सरस्वती पूजा में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जिन्हें बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
खान पान
वहीं खान-पान में बिहार की अपनी अलग ही पहचान है। लिट्टी-चोखा, सत्तू, पिठ्ठा, दही-चिउरा, मालपुआ, मखाना, खाजा, गाजा, बालूशाही और ठेकुआ जैसे पारंपरिक व्यंजन इसकी सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है। जिनके स्वाद के बिना बिहार का स्वाद अधूरा है।
एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला इसी बिहार के सोनपुर में लगता है जिसे हरिहर नाथ का मेला भी कहा जाता है। इसके विविध रंग देखने दुनिया के हर कोने से पशु प्रेमी यहां पहुंचते हैं।
भारत का गौरव
पग-पग पर गौरव का बोध कराता है बिहार का इतिहास। बिहार की राजनीतिक सीमाएं पिछले दशकों में कई बार बदली हैं। 20वीं सदी के शुरू में बिहार और वर्तमान ओडिशा, बंगाल प्रांत के अंग थे। 1912 में बिहार और ओडिशा को बंगाल से अलग कर एक नए प्रांत के रूप में संगठित किया गया। वहीं 1935 में ओडिशा को बिहार से अलग कर बिहार को एक प्रांत का रूप दिया गया। इसके बाद 15 नवंबर 2000 को एक बार फिर बिहार का विभाजन हुआ और झारखंड के नाम से एक नए राज्य का गठन हुआ।
चुकि पहली बार 22 मार्च 1912 को बंगाल से बिहार राज्य को अलग किया गया था। इसलिए हर साल 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है। बिहार दिवस मनाने की शुरुआत 2010 में बिहार सरकार द्वारा की गई।
स्वतंत्रता आंदोलन में भी बिहार ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और यहां के लोगों ने इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। 1857 में प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाबू कुंवर सिंह के विद्रोह ने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी....।
ब्रिटिश प्रशासन के विरोध में सत्याग्रह का भारत में पहला व्यापक और सफल प्रयोग 1917 में महात्मा गांधी ने इसी बिहार के चम्पारण में किया था। तब से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक बिहार की जनता ने राष्ट्रीय आंदोलन के हर चरण में पूरी सक्रियता के साथ भाग लिया। 1922 का गया में कांग्रेस का अधिवेशन, 1929 की बिहार प्रांतीय किसान सभा, 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन जैसी घटनाएं तो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मील का पत्थर बन गईं।
बिहार एक समृद्ध और बहुमुखी परंपरा और संस्कृति में डूबा हुआ राज्य है। एक ऐसा राज्य जो प्राचीन भारतीय इतिहास की आधारशिला है।