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राजनीति

भारत-चीन सीमा विवाद: क्या है अतीत से वर्तमान तक की कहानी? भाग-1

Indo China Dispute

एक दिलचस्प बात यह है कि तिब्बत पर कब्जा करने से पहले चीन की सीमा सीधे तौर पर भारत से नहीं लगती थी। चीन ने जब 1951 में तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया, तब चीन की स्थलीय सीमा भारत से सट गई और यहीं से भारत-चीन के बीच सीमा विवाद का जन्म हो गया।

चुनाव और जाति की राजनीति: क्या जाति के बिना चुनाव संभव नहीं है?

Caste in Politics

भारत में हुए चुनावी इतिहास पर अगर नजर डाले तो चुनाव दर चुनाव, राजनीति में जाति की अहमियत बढ़ती ही चली गई और जाति प्रमुखता से चुनाव जीतने या हारने का कारण बन गई। जबकि हमारे संविधान निर्माताओं ने इस बात पर जोर दिया था कि जैसे-जैसे भारतीय समाज शिक्षित और परिपक्व होगा वैसे-वैसे समाज में व्याप्त जाति की खाई पटती जाएगी और धीरे-धीरे जात-पात समाज से खत्म हो जाएगा। संविधान निर्माताओं ने राजनीतिक दलों से यह उम्मीद भी जताई थी और आह्वाहन भी किया था कि वो इसके लिए भविष्य में लगातार कोशिश करते रहेंगे। लेकिन हुआ इसके बिलकुल उलट...। जिन राजनीतिक दलों के कंधों पर समाज और देश के विकास में अवरोध बने जाति की इस खाई को खत्म करने का बोझ था, उन्होंने ही राजनीतिक सत्ता पाने के लिए जातियों की लामबंदी को न केवल बढ़ावा दिया बल्कि इसे खूब पुष्पित और पल्लवित भी किया।

राजद्रोह: SECTION 124A, क्यों विवादित है और क्यों होता है विरोध?

Sedition

जब देश आजाद हुआ तब संविधान सभा में इस औपनिवेशिक कानून के औचित्य और उसके पहलुओं पर खूब बहस हुई। शुरू में जब संविधान का मसौदा तैयार किया गया, तब राजद्रोह को अनुच्छेद 13(2) में शामिल किया गया था। लेकिन संविधान सभा के सदस्य के एम मुंशी ने इसे भारतीय लोकतंत्र के ऊपर खतरा बताया। उन्होंने कहा कि “असल में, किसी भी लोकतंत्र की सफलता का राज ही उसकी सरकार की आलोचना में है।“ यह के एम मुंशी और सिख नेता भूपिंदर सिंह मान का ही संयुक्त प्रयास था, जिसकी वजह से संविधान से ‘राजद्रोह’ शब्द हमेशा के लिए हटाया जा सका। और इस तरह अनुच्छेद 19(1) के तहत अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता का रास्ता खुला। हालांकि, धारा 124A आईपीसी 1860 में बना रहा, और आजादी के बाद भी इस धारा का प्रयोग अनेक मौकों पर किया गया। राजनीतिक पार्टियों के लिए धारा 124A के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद भारत के संविधान में पहला संशोधन राजद्रोह की धारा को लेकर ही हुआ था।

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध और भारत की स्वर्णिम विजय

Pakistan Surrender after 1971 War

वो तारीख थी 3 दिसंबर 1971... शाम के पांच बजकर 40 मिनट हुए थे... तभी पाकिस्तानी वायुसेना के सैबर जेट्स और स्टार फाइटर विमानों ने भारतीय वायु सीमा पार कर पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर और आगरा के सैनिक हवाई अड्डों पर बम गिराने शुरू कर दिए। पाकिस्तान के इस नापाक हमले ने मार्च 1971 से शुरू तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में भारत को भी घसीट लिया। इसके बाद, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के साथ ही भारत-पाकिस्तान के बीच सीधे तौर पर युद्ध छिड़ गया, जिसकी परिणति 13 दिन बाद पाकिस्तान की करारी हार के साथ हुई।