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अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस: गरीबी एक वैश्विक अभिशाप

Poverty Eradication day

गरीबी किसी भी समाज में एक गंभीर समस्या है। गरीबी का असमानता के साथ घनिष्ठ संबंध है। आय और संपत्ति के वितरण की असमानताओं ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है जिनमें गरीबी सबसे गंभीर समस्या है। दरअसल, गरीबी का अर्थ उस सामाजिक क्रिया से है जिसमें समाज का एक हिस्सा अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं यानी रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाता और न्यूनतम जीवन स्तर निर्वाह करने से वंचित रहता है।

क्या है गरीबी?

गरीबी का दायरा सिर्फ स्थायी आजीविका सुनिश्चित करने के लिए आय और संसाधनों की कमी होना ही नहीं है, बल्कि उससे कहीं ज्यादा व्यापक है। इसमें भूख और कुपोषण, शिक्षा और बुनियादी सेवाओं तक सीमित पहुंच, सामाजिक भेदभाव और बहिष्कार के साथ ही निर्णय लेने की भागीदारी से वंचित होना भी शामिल है। दुनिया के अरबों लोग इन सुविधाओं और अधिकारों से वंचित है और गरीबी में जीवन जीने को अभिशप्त हैं। साल 2015 में दुनियाभर में 736 मिलियन लोग यानी 73 करोड़ 60 लाख से ज्यादा लोग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे रहते थे। यानी विश्व की कुल आबादी की करीब 10 फीसदी जनसंख्या अत्यधिक गरीबी में जी रही थी और स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए जद्दोजहद कर रही थी।

अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस 

दुनिया से गरीबी खत्म करने और लोगों को गरीबी रेखा से बाहर लाने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र संघ हर साल 17 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस के रूप में मनाता है। पहली बार यह दिवस 17 अक्टूबर 1987 को फ्रांस में मनाया गया था जहां पेरिस के ट्रोकेडरो में एक लाख लोगों ने जो गरीबी, हिंसा और भूख के शिकार थे उन्होंने मानव अधिकारों के लिए प्रदर्शन किया था। इसके बाद 22 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक संकल्प 47/196 के जरिए 17 अक्टूबर को गरीबी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया।

अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस का मकसद

अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस का मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों में निर्धनता को समाप्त करना है। यह दिवस गरीबी में रहने वाले लोगों के साथ सक्रिय भागीदारी के जरिए लोगों को गरीबी से बाहर लाने के प्रयास पर जोर देता है।

अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस का थीम

गरीबी को खत्म करने और इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र हर एक इसके लिए एक थीम निर्धारित करता है। 2021 का थीम है “Building forward together: Ending Persistent Poverty, Respecting all People and our Planet”. यानी "एक साथ भविष्य का निर्माण: गरीबी को लगातार खत्म करना, सभी लोगों और अपने ग्रह का सम्मान करना"। इसी तरह 2020 का थीम था Acting together to achieve social and environmental justice for all” यानी सभी के लिए सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय प्राप्त करने के लिए एक साथ अभिनय करना।

वैश्विक स्तर पर गरीबी की स्थिति

वैश्विक स्तर पर गरीबी की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में दुनिया की 10 फीसदी आबादी यानी करीब 73 करोड़ 60 लाख लोग एक दिन में 1.90 डॉलर से भी कम पर गुजारा करते थे। वहीं दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब लोग दक्षिण एशियाई देश और उप-सहारा अफ्रीकी देशों में रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक पहल की वजह से पिछले एक दशक के दौरान अत्यधिक गरीबी में रहने वाले दुनिया के श्रमिकों की संख्या में 50 फीसदी की कमी दर्ज की गई। 2010 में यह संख्या जहां 14.3 फीसदी थी वहीं 2019 में यह कम होकर 7.1 फीसदी हो गई। हालांकि आंकड़ों में गिरावट के बावजूद यह आशंका जाहिर की गई कि 2030 तक वैश्विक आबादी का 6 फीसदी हिस्सा गरीबी में ही जीवन यापन करेगा और इस वजह से गरीबी को समाप्त करने का लक्ष्य समय पर हासिल नहीं किया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र के रिपोर्ट में यह कहा गया कि दुनिया के पांच में से एक बच्चा अत्यधिक गरीबी में रहता है और शुरुआती वर्षों में गरीबी और अभाव के नकारात्मक प्रभावों का असर जीवन भर रहता है। रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में दुनिया की 55 फीसदी आबादी यानी करीब 4 अरब लोगों को किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा से लाभ नहीं हुआ।

दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब उप-सहारा अफ्रीका में

अक्टूबर 2020 में जारी विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में विश्व की कुल आबादी का 9.2 फीसदी हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे थी। यानी यह आबादी प्रतिदिन जीवन निर्वाह के लिए वर्ल्ड बैंक द्वारा निर्धारित 1.90 डॉलर से कम पर जीवन यापन करती है। वहीं दुनिया के 60 फीसदी सबसे गरीब लोग उप-सहारा अफ्रीका में निवास करते हैं, जहां क्षेत्रीय स्तर पर गरीबी का दर 41 फीसदी है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक विश्व की करीब एक चौथाई आबादी यानी करीब एक अरब 81 करोड़ लोग 3.20 डॉलर और करीब आधी आबादी यानी साढ़े तीन अरब के लगभग लोग 5.50 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा का निर्धारण

दरअसल, विश्व बैंक ने अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा की सीमा 1.90 डॉलर प्रतिदिन निर्धारित किया है जो 2011 के मूल्यों यानी क्रय शक्ति समता (पीपीपी) को आधार बनाकर 2015 में निर्धारित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा 1.90 डॉलर की राशि दुनिया के कुछ सबसे गरीब देशों की राष्ट्रीय गरीबी रेखा पर आधारित है जिसे पीपीपी यानी क्रय शक्ति समता का उपयोग कर अमेरिकी डॉलर में बदला गया है। विश्व बैंक ने गरीबी रेखा को तीन श्रेणियों बांटा है। अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा की 1.90 डॉलर प्रतिदिन की राशि के अलावा निम्न-मध्य आय वाले देशों के लिए यह 3.20 डॉलर प्रतिदिन और उच्च-मध्य आय वाले देशों के 5.50 डॉलर प्रतिदिन है।  वैश्विक गरीबी रेखा में दुनिया भर में खाना, कपड़ा और आवास की जरूरतों की मूल लागत की सटीक तस्वीर पेश करने की लिए समय-समय पर मूल्य आंकड़ों का उपयोग किया जाता है।

दुनिया के आधे गरीब सिर्फ पांच देशों में

2018 में अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे के पांच में से चार लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे। यही नहीं दुनियाभर में मौजूद आधे बच्चे गरीब हैं। 15 साल और उससे अधिक आयु के वैश्विक गरीबों में से करीब 70 फीसदी अशिक्षित हैं। उप-सहारा अफ्रीका में लगभग आधे गरीब लोग सिर्फ पांच देशों में रहते हैं इनमें नाइजीरिया, कांगो, तंजानिया, इथियोपिया और मेडागास्कर शामिल है। दुनियाभर में मौजूद गरीबों में से 40 फीसदी से अधिक हिंसा से प्रभावित इलाकों में रहते हैं जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी खराब है। यह संख्या अगले एक दशक में बढ़कर 67 फीसदी होने की आशंका है। इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर करीब 13 करोड़ से ज्यादा गरीब बाढ़ के उच्च जोखिम वाले इलाकों में रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से 2030 तक करीब 7 करोड़ से 13 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाएंगे। यह आंकड़ा यह साबित करता है गरीबी बढ़ाने या कम आय वाले लोगों को गरीबी रेखा से नीचे लाने में शिक्षा की कमी, हिंसा में बढ़ोत्तरी और प्राकृतिक आपदाओं का भी काफी अहम योगदान है।

तीन दशक में गरीबों की संख्या आधे से ज्यादा कम हुई

हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व बैंक समेत तमाम अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सरकारों की सम्मिलित प्रयास से दुनियाभर में अत्यंत गरीब लोगों की संख्या जो 1990 में करीब 2 अरब थी उससे कम होकर 2017 में करीब 69 करोड़ पर आ गई। इस तरह अत्यधिक वैश्विक गरीबी में 1990 से 2015 के बीच प्रति वर्ष औसतन 1 फीसदी की दर से कम हुई, लेकिन 2015 से 2017 के बीच यह दर आधी फीसदी रही गई थी।

कोविड-19 ने 14 से 16 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेला

कोविड-19 महामारी से गरीबी कम करने की मुहिम को ब्रेक लग गया। इस वैश्विक महामारी की वजह से 2021 में करीब 14 करोड़ से 16 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से नीचे जाने की आशंका है। ये नए गरीब उन 1 अरब 30 करोड़ गरीबों की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे जो पहले से ही जीवन यापन की बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। कोविड-19 महामारी की वजह से 2020 में 8.1 फीसदी गरीबी बढ़ने की आशंका है। यहां तक कि निम्न आय वर्ग और उच्च आय वर्ग वाले देशों में भी गरीबों की संख्या में 2.3 फीसदी की बढ़ोत्तरी होने की आशंका जताई गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि नए गरीबों में आधे को दक्षिण एशिया में होने का अनुमान लगाया गया है जबकि उप-सहारा अफ्रीका में एक तिहाई नए गरीबों की आशंका जताई गई है। पिछले तीन दशकों में वैश्विक गरीबी में कमी के लक्ष्य की दिशा में कोविड-19 महामारी ने सबसे खराब असर डाला है। दरअसल, कोविड-19 महामारी के प्रसार को रोकने लिए किए गए उपायों ने बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी में धकेल दिया। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था जो बड़ी संख्या में गरीबों को जीवन यापन करने में सक्षम बनाती है वो दुनिया के कई देशों में लगभग बंद हो गई थी।

भारत में 2011 से 2015 के बीच 9 करोड़ लोग गरीबी से मुक्त हुए

कोविड-19 वैश्विक महामारी से भारत भी अछूता नहीं रहा। भारत ने पिछले कुछ दशकों में गरीबी को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की थी। साल 2011 से 2015 के बीच 2011 के पीपीपी पर आधारित गरीबों की संख्या 21.6 फीसदी से घटकर 13.4 फीसदी हो गया था। मजबूत अर्थव्यवस्था की वजह से इस दौरान 9 करोड़ से ज्यादा लोग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से ऊपर आए और उनके जीवन स्तर में व्यापक सुधार हुआ।

कोविड-19 ने गरीबी कम करने की रफ्तार को धीमा किया

लेकिन इस सफलता के बावजूद अभी भी भारत में बड़ी संख्या में लोग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। अप्रैल 2020 में जारी वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 2015 में साढे सत्रह करोड़ से ज्यादा लोग भारत में अत्यधिक गरीबी में जीवन यापन कर रहे थे। वहीं कोविड-19 महामारी ने इस संख्या में और ज्यादा बढ़ोतरी की है। 2018 के एक सर्वे के मुताबिक भारत में मात्र 22 फीसदी परिवारों में खाना खाने से पहले साबुन से हाथ धोने का प्रचलन था। कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए देश में लागू लॉकडाउन ने स्वरोजगार और कैजुअल श्रमिकों पर काफी प्रतिकूल प्रभाव डाला और गरीबों की संख्या में इजाफा का एक महत्वपूर्ण कारण बना। केवल दुकानें, होटल और रेस्त्रां आदि बंद होने से इन सेक्टरों में 11 फीसदी कामगार प्रभावित हुए। हालांकि सरकार द्वारा गरीब परिवारों के लिए शुरू किए गए कल्याणकारी योजनाओं से कुछ राहत की उम्मीद है लेकिन तेल की बढ़ती कीमतों ने मुद्रास्फीति संबंधी चिंताओं को बढ़ा दिया है।

बुनियादी सुविधाएं देने से ही खत्म होगी गरीबी 

दरअसल, देश में हुए विकास का फायदा और अवसर की समानता समान रूप से सभी को उपलब्ध नहीं हो पाई, इससे गरीबी कम करने और लाभ का फायदा उठाने में असमानता बनी रही। दरअसल, जो राज्य पहले से ही बेहतर स्थिति में थे उन्हें इसका ज्यादा फायदा मिला जबकि पिछड़े हुए राज्य पीछे छूट गए। गरीबी को कम करने की सरकार को जवाबदेही तय करनी होगी। इनमें महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े समूहों को विकास की दौड़ में शामिल करना और साथ ही स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराने और लौंगिक असमानता को कम करने की कोशिश को और तेज करना होगा जहां देश की रैंकिंग पहले से ही खराब है।

भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण

भारत में राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी निर्धारण की बात करें तो भारत में गरीबी निर्धारण के कई तरीके हैं। आमतौर पर पोषण के आधार पर जिसमें कैलोरी को मानक बनाया गया है और न्यूनतम उपभोग व्यय के आधार पर गरीबी का निर्धारण होता है हालांकि आय भी इसके निर्धारण एक जरिया है। लकड़ावाला समिति की रिपोर्ट के आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों 2100 कैलोरी से कम उपभोग करने वाले व्यक्तियों को गरीब माना गया है। वहीं सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के आधार पर ग्रामीण क्षेत्र में 26 रुपया और शहरी क्षेत्र में 32 रुपया से कम प्रतिदिन व्यय करने वाले व्यक्ति को गरीब माना गया है।

गरीबी उन्मूलन के लिए उठाए गए कदम

हालांकि, सरकार ने गरीबी उन्मूलन को ध्यान में रखते हुए कई कार्यक्रमों की शुरुआत की है। इनमें रोजगार सृजन कार्यक्रम, आय समर्थन कार्यक्रम, रोजगार गारंटी और आवास योजना शामिल है। इनके तहत प्रधानमंत्री जन धन योजना, किसान विकास पत्र, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, मनरेगा, राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना, ग्रामीण श्रम रोजगार गारंटी कार्यक्रम और शहरी गरीबों के लिए स्वरोजगार कार्यक्रम आदि। हालांकि इन प्रयासों के बावजूद अभी भी देश में गरीबों की संख्या काफी ज्यादा है। यूएनडीपी द्वारा 2020 में जारी बहुआयामी गरीबी इंडेक्स रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 27.9 फीसदी जनसंख्या अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है।

नीति आयोग का विजन डॉक्यूमेंट

2017 में नीति आयोग ने गरीबी दूर करने के लिए एक विजन डॉक्यूमेंट प्रस्तावित किया था। इसमें 2032 तक देश से गरीबी दूर करने की योजना तय की गई थी। इस डॉक्यूमेंट में गरीबी दूर करने के लिए तीन चरणों काम करने की बात कही गई है। इसमें देश में गरीबों की गणना करना ताकि उनका सही संख्या का पता लगाया जा सके। गरीबी उन्मूलन के लिए योजनाएं लाना और लागू की गई योजनाओं का निरीक्षण कर उनकी उपलब्धियों का पता लगाना।

दरअसल गरीबी का तात्पर्य मुख्य रूप से रोटी, कपड़ा और मकान जैसी आवश्यकता पूर्ति के अभाव से होता है। इसलिए गरीबी रेखा निर्धारित करते समय रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और रोजगार जैसी मूलभूत जरूरतों को ध्यान में रखना चाहिए। तभी गरीबी से जुड़ी नीतियां सफल हो पाएंगी और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को गरीबी के दलदल से निकाला जा सकेगा। भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, भ्रष्टाचार, रूढ़िवादी सोच, जातिवाद, अमीर-गरीब में ऊंच-नीच का फर्क, नौकरी में कमी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवा की अनुपलब्धता, गंभीर बीमारी आदि हैं जिन्हें खत्म करने की जरूरत है। 

संयुक्त राष्ट्र गरीबी उन्मूलन दशक

विकास के रास्ते में गरीबी को सबसे बड़ा अवरोध मानते हुए संयुक्त राष्ट्र ने अपने सतत विकास के लिए एजेंडा 2030 के 17 विकास लक्ष्यों में से पहला लक्ष्य वैश्विक स्तर पर गरीबी के सभी रूपों को समाप्त करना रखा है। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक संकल्प 72/233 पारित कर 2018 से 2027 को संयुक्त राष्ट्र गरीबी उन्मूलन दशक घोषित किया है।

वैश्विक स्तर पर जहां एक तरफ आर्थिक विकास, तकनीकी साधनों और वित्तीय संसाधनों की प्रचुरता है, वहीं दूसरी तरफ करोड़ों लोगों का अत्यधिक गरीबी में जीवन जीना और बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता से वंचित रहना एक सभ्य समाज के लिए अनैतिक भी है। गरीबी केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक बहुआयामी घटना है जिसमें आय की कमी और सम्मान से जीने का अवसर नहीं मिलना, दोनों शामिल हैं।

गरीबी में रहने वाला हर व्यक्ति बुनियादी सुविधाओं की कमी की वजह से आपसी संबंधों में मजबूती का अभाव महसूस करता है और यह कमियां उसे उसके अधिकारों का एहसास करने से रोकती हैं और साथ ही उसकी गरीबी को बनाए रखने में मदद भी करती हैं। इनमें खतरनाक स्थिति में काम करना, असुरक्षित आवास, पौष्टिक भोजन की कमी, न्याय तक असमान पहुंच, राजनीतिक शक्ति की कमी, स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच जैसी सुविधाओं का अभाव शामिल है।

ऐसे में गरीबी उन्मूलन के लिए ठोस और व्यापक रणनीति बनाने और उसे प्रतिबद्धता से लागू भी करने की जरूरत है तभी हम आज के आधुनिक दौर में भी गरीबी रेखा के नीचे जीने को मजबूर करोड़ों लोगों को उनका मौलिक हक दिला पाएंगे और एक समतामूलक सभ्य समाज का निर्माण कर पाएंगे।

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