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राष्ट्रपति चुनाव: कैसे चुना जाता है भारत का प्रथम व्यक्ति?

President Election

हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत को एक गणतंत्र बनाने का संकल्प लिया था और इसे संविधान की उद्देशिका में जगह भी दिया। साथ ही देश में शासन व्यवस्था के लिए एक सांस्थानिक ढांचे का निर्माण किया और उसमें राष्ट्रपति के पद को सर्वोच्च स्थान दिया। राष्ट्रपति भारतीय गणतंत्र का राष्ट्राध्यक्ष होने के साथ ही शासनाध्यक्ष भी होता है। वह राज्य व्यवस्था में सर्वोच्च होने के साथ ही राष्ट्र के जीवन में भी सर्वोच्च होता है। जब राष्ट्रपति राष्ट्र को संबोधित करते हैं या किसी समारोह में शामिल होते हैं, तो उनके अभिभाषण से पहले और बाद में हमारा राष्ट्रगान बजाया जाता है। यह राष्ट्रपति के पद की संप्रभुता को दर्शाता है। वह भारत की संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करता है। संविधान राष्ट्रपति को भारत की सभी कार्यकारी शक्तियां देता है। जो केवल नाममात्र का नहीं होता है बल्कि जो शक्तियां उसमें निहित है वह उसका व्यवहार में उपयोग भी करता है। राष्ट्रपति राज्य के निर्वाचित प्रमुख होते हैं जो पांच साल के लिए चुने जाते हैं। यही वजह है कि जब-जब राष्ट्रपति का निर्वाचन होता है पूरा देश उससे एक तरह से जुड़ जाता है।

भारत के संविधान निर्माताओं ने भारत में लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली को अपनाया। संसदीय प्रणाली में राष्ट्रपति संवैधानिक अध्यक्ष होता है लेकिन वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है। जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। वहीं, अमेरिका में सरकार का स्वरूप अध्यक्षात्मक है। जिसका अध्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति होता है। इस लिहाज से हमारा एक अनोखा स्थान है। हम एक ही साथ संसदीय राज्य व्यवस्था और राष्ट्रपति वाले गणराज्य की श्रेणी में आ जाते हैं। यही वजह कि संविधान सभा में राष्ट्रपति पद के निर्वाचन के लिए संविधान निर्माताओं ने एक चयनित प्रक्रिया का व्यापक आधार अपनाया। जिसमें राष्ट्रपति को अप्रत्यक्ष रूप से संपूर्ण राष्ट्र द्वारा चुना जाता है।

संविधान सभा में राष्ट्रपति के निर्वाचन पर चर्चा

संविधान सभा में राष्ट्रपति के चुनाव और निर्वाचन को लेकर लंबी चर्चा हुई। कुछ सदस्यों का सुझाव था कि केवल संसद के दोनों सदनों के सदस्य राष्ट्रपति का चुनाव करें। वहीं प्रो के टी शाह का सुझाव था कि राष्ट्रपति का चुनाव सार्वजनिक व्यवस्क मताधिकार के जरिए सीधे जनता द्वारा होना चाहिए। लेकिन सवाल यह था कि अगर राष्ट्रपति सीधे जनता द्वारा चुना जाता है तो मंत्री परिषद के समान एक अलग शक्ति का केंद्र बन जाएगा और यह मंत्रियों के उत्तरदायित्व वाली संसदीय प्रणाली के खिलाफ बात होगी। इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने इन दोनों तरीकों से अलग एक अनोखा तरीका निकाला।

निर्वाचक गण चुनते है भारत का राष्ट्रपति

अमेरिका के राष्ट्रपति की तरह ही हमारे राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक गण के जरिए होना। और यह चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिए होता है। जिसमें संविधान के अनुच्छेद 54 के मुताबिक संसद के दोनों सदनों के और राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं। इसका मतलब यह है कि नॉमिनेटेड सदस्य मतदान नहीं कर सकते। साथ ही विधान परिषदों के सदस्य भी राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर सकते, क्योंकि वो जनता द्वारा चुने गए सदस्य नहीं होते हैं। चूंकि संविधान सभा का मानना था कि ऐसा निर्वाचक गण न केवल राष्ट्रपति को पूरे राष्ट्र का निर्वाचित प्रतिनिधि बनाएगा बल्कि वह राज्यों की आवाज को भी प्रमुखता प्रदान करेगा। 1992 में 70वें संविधान संशोधन के जरिए अनुच्छेद 54 और 55 में ‘राज्य’ के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र पुदुचेरी की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों को भी शामिल इसमें किया गया। और पहली बार किसी संघ राज्य क्षेत्र की विधान सभा के सदस्यों ने 1997 में हुए राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लिया।

राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए क्या है जरूरी योग्यता

संविधान के अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि भारत में एक राष्ट्रपति होगा। वहीं;अनुच्छेद 58 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए योग्यताएं भी निर्धातिक की गईं। जिसके मुताबिक राष्ट्रपति पद के लिए किसी भी उम्मीदवार को भारत का नागरिक होना चाहिए। उसकी उम्र 35 साल होनी चाहिए। वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो। उसे किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए। लेकिन इसमें एक बात जुड़ी हुई है कि कोई व्यक्ति सिर्फ इस वजह से लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल है। या संघ या किसी राज्य का मंत्री है। अनुच्छेद 56(1) में कहा गया है कि राष्ट्रपति अपने पद-ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा।

यहां एक बात दिलचस्प है कि दल-बदल विरोधी कानून लागू होने के बाद यह सवाल उठा कि, क्या कोई सांसद या विधान सभा सदस्य उस दशा में राष्ट्रपति के निर्वाचन में मत देने के योग्य है जब उसकी अयोग्यता के विरुद्ध अपील न्यायालय में लंबित हो। इस पर उच्चतम न्यायालय ने 1987 में निर्णय दिया कि इस तरह के मामले में अंतिम निर्णय आने से पहले यदि राष्ट्रपति का चुनाव होता है तो यैसे सदस्य मतदान में उसी तरह भाग लेंगे और मत देंने के हकदार होंगे जैसे अन्य योग्य सदस्य। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे सदस्यों द्वारा डाले गए मतों पर अलग से निशान लगाया जाना चाहिए और गिनती करने के बाद मामले के अंतिम निपटान तक अलग से रखा जाना चाहिए।

राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी की विचारधारा से अलग हटकर वोट करने पर सांसदों या विधायकों पर दल-बदल विरोधी कानून नहीं होता है। यानी वो पार्टी के व्हीप से बंधे नहीं होते हैं। तभी यह कथन प्रचलित है कि इन चुनावों में अपनी‘अंतरात्मा की आवाज’ पर मत डालें।

आम चुनाव से अलग होता है राष्ट्रपति का चुनाव

भारत की लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था में राष्ट्रपति का पद सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित और गरिमामयी है। जहां तक राष्ट्रपति के चुनाव की बात है तो भारत के राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया आम चुनाव की प्रक्रिया से बिलकुल अलग है। देश के प्रमुख का स्वतंत्र चुनाव प्रणाली, इसे आम चुनाव से बिलकुल अलग और मौलिक रूप देता है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन संबंधी सभी प्रक्रियाएं राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम,1952 और उसके तहत बनाए गए नियम से संचालित होते हैं।

राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया

संविधान के अनुच्छेद 55 में राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित प्रक्रिया की चर्चा की गई है। अनुच्छेद 55(3) के मुताबिक ‘राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा’। अनुच्छेद 55(1) में यह प्रावधान भी है कि ‘जहां तक संभव हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में अलग-अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व समान रूप से हो’।

इस तरह निकाला जाता है विधायक और विधान सभा के मत का मूल्य

अलग-अलग राज्यों में एकरूपता और सभी राज्यों और संघ में समानता बनाए रखने के लिए एक विशेष फार्मूला अपनाया गया है। इस फॉर्मूले के तहत, किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य निकालने के लिए उस राज्य की जनसंख्या में चुने गए कुल विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है। इसके बाद जो अंक निकलता है उसमें 1000 से भाग दिया जाता है। और आखिर में जो अंक हासिल होता है वही उस राज्य के प्रत्येक विधायक के मत का वैल्यू या वेटेज होता है। इस दौरान अगर शेष 500 से ज्यादा होता है तो मतों की संख्या में एक मत और जोड़ दिया जाता है।

इसे ऐसे समझा जा सकता है। मान लीजिए किसी राज्य की जनसंख्या 20849840 है, और वहां की विधान सभा में निर्वाचित सदस्यों की संख्या 208 है। तो एक सदस्य का मत होगा

राज्य की जनसंख्या यानि 20849840

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विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या यानी 208 यानी 100239

 

अब इस संख्या को फिर 1000 से भाग देंगे, यानी

 

100239 / 1000 = 100

(शेष 239 आएगा जिसे छोड़ दिया जाएगा, क्योंकि वह 500 से कम है।)

 

इस तरह उस राज्य की विधान सभा के प्रत्येक सदस्य के मत का वेटेज या वैल्यू 100 होगा और उस विधान सभा का कुल मत 100X208 यानी 20800 होगा।)

इस तरह निकाला जाता है सांसद के मत का मूल्य

संसद के दोनों सदनों के प्रत्येक निर्वाचित सदस्यों के मतों की संख्या जानने के लिए सभी राज्यों के विधायकों की मतों के मूल्यों को जोड़ा जाता है और फिर उसमें संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है। इसके बाद जो अंक प्राप्त होता है वहीं प्रत्येक सांसद के मत का मूल्य होता है। अगर इसमें भी शेष 500 से ज्यादा होता है तो मतों की संख्या में एक अंक की बढ़ोत्तरी कर दी जाती है।

इसे इस तरह से समझा जा सकता है। मान लीजिए कि सभी विधान सभाओं के सदस्यों की कुल मत 74940 है और संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 750 है। तो संसद के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य होगा

 

सभी राज्य विधान सभाओं के मतो की कुल संख्या यानी 74940

संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या यानी 750 = 99.92

चूकि शेष .92 आधा से ज्यादा है, इसलिए 99 में एक जोड़ दिया जाएगा और प्रत्येक सांसद के मत का वैल्यू 100 होगा।

 

राष्ट्रपति के चुनाव में विधान सभा के हर सदस्य के वोट का मूल्य प्रत्येक राज्य में अलग-अलग होता है, जो उस राज्य की जनसंख्या पर आधारित होता है और मतों की गणना 1971 की जनगणना के आधार पर की जाती है।

क्या होता है कोटा

संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होता है। इसका मतलब है कि राष्ट्रपति के चुनाव में आम चुनाव जैसा सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाले की जीत नहीं होती है। इसमें जितने के लिए कुल वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के कुल मतों का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करना होता है। इसे देखते हुए एक तरह से यह पहले ही तय हो जाता है कि जीतने वाले प्रत्याशी को कितने वोट मिलने चाहिए। इसे कोटा कहते हैं।

किसी भी प्रत्याशी को जीतने के लिए जो कोटा निर्धारित होता है उसमें- डाले गए मतों की कुल संख्या में दो से भाग दिया जाता है और जो शेष आता है उसमें एक जोड़ दिया जाता है। इस तरह कोटा तय करना इस पद्धति का पहला काम है।

मान लीजिए कि राष्ट्रपति पद के लिए A B C और D चार प्रत्याशी हैं और डाले गए वैध मतों की संख्या 15000 है। तो निर्वाचित होने के लिए तय कोटा 7501 होगा।

क्या होता है एकल संक्रमणीय मत (Single Transferable Vote)?

राष्ट्रपति के चुनाव में मतपत्र पर कोई चुनाव चिन्ह नहीं होता है और ना ही इसमें नोटा(NOTA) का विकल्प होता है। मतपत्र पर सिर्फ दो कॉलम होते हैं। एक कॉलम के ऊपर ‘प्रत्याशी का नाम’ और दूसरे कॉलम के ऊपर अधिमान यानी प्रेफरेंसेज लिखा होता है। चूकि इस चुनाव में भी कई प्रत्याशी खड़े होते हैं। इसलिए मतदाता इन उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता या पसंद के आधार पर वोट देता है। यानी वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी, तीसरी कौन। इसके लिए वह प्रत्याशियों के नाम के आगे 1, 2, 3 लिखकर अपनी पसंद जाहिर करता है। प्रत्येक मतदाता का एक ही मत होता है लेकिन यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो पाता, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसिलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट यानी एकल संक्रमणीय मत कहते हैं।

वरीयता के आधार पर होती है मतों की गणना

एक बार जब कोटा तय हो जाता है और मतदान हो जाता है तब मतों की गिनती शुरू होती है। अगर पहली पसंद के मतों के गिनती में कोई प्रत्याशी निर्धारित कोटा हासिल नहीं कर पाता है तो दूसरे दौर की प्रक्रिया शुरू होती है। इस प्रक्रिया में पहले दौर की गिनती में पहली पसंद के तौर पर सबसे कम वोट हासिल करने वाले उम्मीदवार को चुनाव से बाहर कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में बाहर होने वाले उम्मीदवार को पहली पसंद के तौर पर चुनने वाले वोटरों की दूसरी पसंद की गिनती की जाती है और उन्हें उन उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है जो दूसरी पसंद के तौर पर चुने गए हों। जो उम्मीदवार दूसरी पसंद के रूप में नहीं चुना गया है तो उसे वह मत नहीं मिलता। इस प्रक्रिया में जो उम्मीदवार निर्धारित कोटा पहले हासिल कर लेता है, वह राष्ट्रपति चुन लिया जाता है अन्यथा यह प्रक्रिया तब तक दोहरायी जाती रहती है जब तक कि किसी उम्मीदवार को आधे से अधिक मत न मिल जाए या वह अकेले ना बच जाए।

राष्ट्रपति जो निर्विरोध चुने गए

राष्ट्रपति पद के लिए अब तक हुए निर्वाचन में डॉ नीलम संजीव रेड्डी एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें में निर्विरोध चुना गया। दरअसल 1977 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में नामांकन दाखिल करने वाले 37 लोगों में 36 की उम्मीदवारी खारिज कर दी गई थी और डॉ नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध चुन लिए गए। वहीं, डॉ जाकिर हुसैन ऐसे पहले राष्ट्रपति थे जिनकी कार्यकाल के दौरान निधन हो गया। वह सबसे कम समय तक भारत के राष्ट्रपति रहे। पांचवें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का निधन भी कार्यकाल के दौरान ही हुआ। वहीं, कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने वाले पहले उपराष्ट्रपति वी वी गिरी थे। वी वी गिरि दो बार कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। वी वी गिरी के अलावा मोहम्मद हिदायतुल्ला और बी डी जत्ती भी अंतरिम राष्ट्रपति बने।

सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले राष्ट्रपति

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति के पद पर रहे। वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें राष्ट्रपति पद के लिए दो बार चुना गया। पहली बार 1952 में और दूसरी बार 1957 में। हालांकि, औपचारिक रूप राष्ट्रपति का पद धारण करने से पहले डॉ राजेन्द्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1952 तक अंतरिम राष्ट्रपति रहे। इसके लिए 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने अपने अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद को सर्वसम्मति से भारत के अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया था।

जब करनी पड़ी थी दूसरी वरीयता के मतों की गणना

राष्ट्रपति के चुनाव में अब तक का सबसे दिलचस्प और कड़ा मुकाबला 1969 में वी वी गिरी और डॉ नीलम संजीव रेड्डी के बीच हुआ। तब पहले राउंड में किसी को भी पर्याप्त बहुमत नहीं मिला था और दूसरे राउंड यानी सेकेंड प्रिफरेंस वोटों की गिनती करनी पड़ी। इस मुकाबले में गिरि ने मात्र 14650 मतों के मामूली अंतर से नीलम संजीव रेड्डी को हराया था।

राष्ट्रपति के नामांकन में कितने प्रस्तावक और समर्थक

1974 तक राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन में मात्र एक प्रस्तावक और एक समर्थक होते थे। 1974 में इसे बढ़ाकर दस प्रस्तावक और दस समर्थक कर दिया गया। वहीं, 1997 में यह संख्या बढ़ाकर 50 प्रस्तावक और 50 समर्थक की कर दी गई।

विवादों का निपटारा सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित किसी भी तरह के विवाद का निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है और उसका निर्णय अंतिम होता है। इस बात का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 71 में किया गया है। राष्ट्रपति को उसके पद से महाभियोग चलाकर ही हटाया जा सकता है। महाभियोग चलाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 61 में एक ही आधार है और वह है ‘सविधान का अंतिक्रमण’।

भारत की लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था में सबसे प्रतिष्ठित पद राष्ट्रपति का है। इस कुर्सी पर विराजमान होने वाला व्यक्ति भारतीय गणराज्य और संप्रभु राष्ट्र का राष्ट्राध्यक्ष होता है। संवैधानिक व्यवस्था में उसका उतना ही सम्मान और अधिकार संरक्षित है जितना इस परंपरा के दूसरे व्यक्तियों का रहा है। देश के इस सर्वोच्च पद पर डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे विराट बौद्धिक व्यक्तित्व के धनी लोग आसीन हुए, तो डॉ जाकिर हुसैन, आर वेंकटरामन, प्रणब मुखर्जी जैसे कद्दावर राजनेताओं ने इस पद को सुशोभित किया। वहीं, दो पेशेवर दिग्गजों जिनमें विदेश सेवा से आए के आर नारायणन और साइंस ब्यूरोक्रेट डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने इस पद की गरिमा को बढ़ाई। दरअसल, हमारे संविधान निर्माताओं की यह कामना थी राष्ट्रपति एक संरक्षक और संविधान के प्रतीक के रूप में काम करें और इस पद की गरिमा और सम्मान को बढ़ाए।