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संयुक्त राष्ट्र: बदलते परिवेश में जरूरी है बदलाव

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1939 से 1945 तक चले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुए विध्वंस और इससे पहले प्रथम विश्वयुद्ध के विनाश से दुनिया के तमाम देश तंग आ चुके थे। इस विनाशकारी प्रभाव से बचने के लिए दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ही प्रयास किए जाने लगे थे। कोशिश यह थी कि भविष्य में इस प्रकार के युद्धों को रोकने और शांति बनाए रखने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास की जानी चाहिए... और इन्हीं प्रयासों  का नतीजा था 1945 में संयुक्त राष्ट्र का गठन।

संयुक्त राष्ट्र के गठन की बुनियाद

दरअसल, प्रथम विश्वयुद्ध में करोड़ों लोगों की मौत ने पहली बार दुनिया को इस बात के लिए जगाया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी संस्था का गठन होना चाहिए जो वैश्विक सस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान कर सके और युद्ध की विभीषिका को पूरी तरह खत्म न भी कर सके तो कम से कम इसकी संभावनाओं को कम या खत्म करने में सक्षम हो। इसी सोच को ध्यान में रखते हुए जून 1919 में वर्साय की संधि और नवंबर 1919 में हुई पेरिस शांति सम्मेलन के तहत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और शांति और सुरक्षा बहाल करने के उद्देश्य से राष्ट्र संघ यानी लीग ऑफ नेशंस की स्थापना की गई। लेकिन लीग ऑफ नेशंस के अस्तित्व पर उस समय सवाल खड़ा हो गया जब वह प्रथम विश्वयुद्ध से भी भयानक दूसरे विश्वयुद्ध को रोकने में असफल रहा। तब एक बार फिर लीग ऑफ नेशंस से अलग एक नया अंतर्राष्ट्रीय संगठन बनाने की बात सोची गई जो लीग ऑफ नेशंस ने ज्यादा असरदार और प्रभावी हो...और इस तरह संयुक्त राष्ट्र के गठन की बुनियाद पड़ी।

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना

लीग ऑफ नेशंस की असफलता और एक नए अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की सोच के साथ, दूसरे विश्वयुद्ध के आखिरी दिनों में  25 अप्रैल से 26 जून 1945 तक कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को में एक संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में दुनिया के 50 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। अगले दो महीनों में सभी ने एक मसौदा तैयार किया जिसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर कहा गया। 26 जून 1945 को सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी 50 देशों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किए... इस उद्देश्य के साथ कि यह संगठन भविष्य में किसी भी तरह की अंतर्राष्ट्रीय हिंसा और विश्व युद्ध को रोकने में सक्षम होगा। सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन के समाप्त होने के चार महीने बाद 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकारिक रूप से अस्तित्व में आ गया, जब चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के साथ ही इसके चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने इसकी पुष्टि कर दी। पोलैंड ने बाद में इस चार्टर पर हस्ताक्षर किया और संयुक्त राष्ट्र के मूल 51 सदस्य देशों में से एक बना। संयुक्त राष्ट्र नाम संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने दिया था।

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का इतिहास

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के गठन की बुनियाद एक जनवरी 1942 को ही पड़ गई थी, जब धुरी राष्ट्रों (जर्मनी, इटली, जापान) के खिलाफ मित्र राष्ट्रों (फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन) समेत 26 देशों ने अगस्त 1941 के अटलांटिक चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों को अपनी मंजूरी दी। बाद में इसे संयुक्त राष्ट्र घोषणपत्र के रूप में जाना गया। इस घोषणा पत्र में ही पहली बार औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र शब्द का प्रयोग किया गया था। संयुक्त राष्ट्र के मौलिक सिद्धांतों को औपचारिक रूप देने के लिए 1944 में अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और तत्कालीन सोवियत संघ के प्रमुख वाशिंगटन के पास डम्बर्टन ऑक्स में मिले। इस सम्मेलन में तैयार दस्तावेज कोएक सामान्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना के लिए प्रस्ताव के रूप में जाना गया। नए अंतर्राष्ट्रीय संगठन की रूपरेखा पर चर्चा करने के लिए फरवरी 1945 में एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और तत्कालीन सोवियत संघ के प्रमुख जोसेफ स्टालिन याल्टा में मिले। इस सम्मेलन को क्रीमिया सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है।

डम्बर्टन ऑक्स और याल्टा के प्रस्तावों पर मुहर लगाने के लिए अप्रैल 1945 में 50 देशों के प्रतिनिधि सैन फ्रांसिस्को में मिले, जहां दो महीने तक चर्चा और विमर्श के बाद संयुक्त राष्ट्र का चार्टर तैयार किया गया, जिस पर सबने अपनी सहमति जताई... और इस तरह करीब चार सालों के प्रयास के बाद 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आया। संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद 20 अप्रैल 1946 को राष्ट्र संघ यानी लीग ऑफ नेशंस का अस्तित्व समाप्त हो गया और उसने अपनी सारी संपत्ति संयुक्त राष्ट्र को सौंप दी।

(संयुक्त राष्ट्र का गठन, इतिहास, कामकाज के तरीके और प्रासंगिकता के बारे में जानने के लिए देखिए हमारा वीडियो -  VISHAY VISHESH: UNITED NATIONS | संयुक्त राष्ट्र)

संयुक्त राष्ट्र का ध्वज और प्रतीक चिन्ह

संयुक्त राष्ट्र के गठन के साथ ही इसके ध्वज और प्रतीक चिन्ह पर भी काफी चर्चा हुई। आज संयुक्त राष्ट्र का ध्वज और एम्ब्लम इसके प्रतीक बन गए हैं। जैतून के पेड़ की शाखाओं की एक जोड़ी और दुनिया का नक्शा विश्व भर के लोगों के लिए शांति और एकता की आकांक्षा का प्रतीक है। संयुक्त राष्ट्र का एम्ब्लम 1945 में डिजाइनरों की एक टीम द्वारा तैयार किया गया था जिसका नेतृत्व ओलिवर लिंकन लुंडक्विस्ट ने किया था। 20 अक्टूबर 1947 को महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर संयुक्त राष्ट्र के ध्वज को स्वीकार किया।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर की प्रस्तावना और उद्देश्य  

संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की प्रस्तावना में यह कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र का जन्म ही एक विनाशकारी युद्ध की वजह से हुआ है, इसलिए इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति की स्थापना और इसे बनाए रखना है। वहीं संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र की धारा एक में इसके उद्देश्यों की बात कही गई है। इसके मुताबिक मूलभूत मानवाधिकारों, सभी राष्ट्रों को बराबरी का दर्जा और उनकी संप्रभुता को मानते हुए दुनिया भर में पिछड़े लोगों को उचित सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराना है। इसके साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और मानवाधिकार संबंधी विवादों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग विकसित करना भी संयुक्त राष्ट्र का मुख्य उद्देश्य  है।

संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शन के लिए सात सिद्धांत

संयुक्त राष्ट्र चार्टर की धारा 2 में संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शन के लिए सात सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक सभी राष्ट्र बराबर संप्रभुता संपन्न है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य इसके अपवाद हैं। वहीं इसमें सभी सदस्य राष्ट्रों को यूएन के तहत ली गई जिम्मेदारियों को अच्छे विश्वास के साथ निर्वाह करने की बात भी कही गई है। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण निपटारा करने और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को दूसरे देशों के मामले में बिना मांगे कोई हस्तक्षेप नहीं करने की बात भी कही गई है। इसके अनुसार सदस्य देशों को संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में सहयोग करना होगा। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के मामलों में गैर सदस्य देशों को भी यूएन चार्टर के खिलाफ काम नहीं करने की बात कही गई है। संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों में यह भी कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र किसी सदस्य देश के घरेलू मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

संयुक्त राष्ट्र के मूल सदस्य

संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता की बात करें तो यूएन चार्टर दो तरह की सदस्यता का प्रावधान करता है।  पहला, मूल सदस्य और दूसरा, यूएन चार्टर की धारा 4 के तहत बनाए जाने वाले नए सदस्य। मूल सदस्य वे हैं जिन्होंने सैन फ्रांसिस्को कॉन्फ्रेंस में भाग लिया था या एक जनवरी 1942 को संयुक्त राष्ट्र की घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे। संयुक्त राष्ट्र के मूल सदस्यों की संख्या 51 है।

संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने की प्रक्रिया

नए सदस्य बनाने का प्रस्ताव सबसे पहले सुरक्षा परिषद में जाता है। सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों की सहमति के बाद सदस्य बनाने की सिफारिश महासभा को की जाती है। इसके बाद महासभा अगर अपने दो-तिहाई बहुमत से सुरक्षा परिषद की सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तब कोई भी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन जाता है। हालांकि सदस्य बनने के लिए किसी भी राष्ट्र का शांतिप्रिय होना जरूरी है। इसके साथ ही उसे यूएन चार्टर के सिद्धांतों और उद्देश्यों को स्वीकार और उसे पूरा करना भी जरूरी है। वर्तमान में मूल सदस्यों समेत कुल 193 देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं।

संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंग

संयुक्त राष्ट्र के मुख्य छह अंग हैं। इनमें संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद, संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और संयुक्त राष्ट्र सचिवालय। इन सभी छह अंगों की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत उसके गठन के समय ही की गई थी। संयुक्त राष्ट्र अपनी सभी कार्यवाहियों और गतिविधियों को इन्ही निकायों के जरिए पूरा करता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा

संयुक्त राष्ट्र महासभा संयुक्त राष्ट्र का सबसे लोकतांत्रिक अंग है। महासभा संयुक्त राष्ट्र में अकेली संस्था है जिसमें सभी 193 सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। प्रत्येक सदस्य देश का एक वोट माना जाता है। हालांकि कोई भी सदस्य देश अधिकतम 5 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल महासभा में भेज सकता है। महासभा संयुक्त राष्ट्र को सार्वभौमिक प्रतिनिधित्व वाला एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय निकाय बनाता है। महासभा की बैठक साल में एक बार आयोजित की जाती है। हालांकि खास परिस्थितियों में सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर इसकी विशेष बैठक बुलाए जाने का भी प्रावधान है। महासभा प्रत्येक अधिवेशन के लिए एक अध्यक्ष और सात उपाध्यक्षों का चुनाव करती है। संयुक्त राष्ट्र महासभा का पहला अधिवेशन 10 जनवरी 1946 को लंदन के वेस्टमिंस्टर सेंट्रल हॉल में हुआ था।

महासभा के कार्य और शक्तियां

महासभा के कार्य और शक्तियां काफी व्यापक हैं। इनमें अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर विचार करना। संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक व्यवस्था के संचालन के लिए बजट तैयार करना। सुरक्षा परिषद के 10 अस्थायी सदस्यों की नियुक्ति करने के साथ ही अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां करना शामिल है। इसके साथ ही आर्थिक और सामाजिक परिषद के 8 सदस्यों की नियुक्ति, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों के चयन में भाग लेना, न्यास परिषद के अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन और सुरक्षा परिषद की सिफारिश से महासचिव की नियुक्ति करना भी इसके कार्यों में शामिल है। महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में दो तिहाई बहुमत के आधार पर संशोधन करने का कार्य भी करती है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के अलग-अलग अंगों के कार्यों का निरीक्षण भी महासभा ही करती है। हालांकि महासभा के निर्णय सुझावों के रूप में होते हैं और बाध्यकारी नहीं होते हैं, लेकिन उन निर्णयों के पीछे विश्व जनमत की नैतिक शक्तियां होती हैं।

महासभा की सात समितियां

अपने विस्तृत कार्यों को सुविधापूर्वक पूरा करने के लिए महासभा सात समितियों का गठन करती है। इनमें राजनीतिक और सुरक्षा समिति, आर्थिक और वित्तीय समिति, सामाजिक, मानवीय और सांस्कृतिक समिति, संरक्षण समिति, प्रशासनिक और बजट संबंधी समिति, कानून समिति और विशेष राजनीतिक समिति शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

संयुक्त राष्ट्र के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है सुरक्षा परिषद। सुरक्षा परिषद एक छोटी सी संस्था है लेकिन इसे संयुक्त राष्ट्र की सबसे शक्तिशाली संस्था माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र के मूल चार्टर में सुरक्षा परिषद की सदस्य संख्या 11 थी, जिसे 1965 में बढ़ाकर 15 कर दिया गया। शुरू में 5 स्थायी और 6 अस्थायी सदस्य थे लेकिन संशोधन के बाद अस्थायी सदस्यों की संख्या 10 कर दी गई। स्थायी सदस्यों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन शामिल हैं।

सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों का चुनाव

सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों को दो साल के लिए दो-तिहाई बहुमत के आधार पर महासभा द्वारा निर्वाचित किया जाता है। वहीं 5 अस्थायी सदस्य हर साल सेवामुक्त हो जाते हैं। अस्थायी सदस्यों में 5 सदस्य एशिया और अफ्रीका महाद्वीप से, 2 सदस्य दक्षिण अमेरिका से, 2 सदस्य पश्चिमी यूरोप से और एक सदस्य पूर्वी यूरोप से चुने जाते हैं। दरअसल अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन करते समय भौगोलिक क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने की बात को भी ध्यान में रखा जाता है। सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार है। सुरक्षा परिषद में किसी भी गंभीर मसले पर निर्णय लेने के लिए 15 में से 9 सदस्यों की मंजूरी जरूरी है। इन 9 सदस्यों में 5 स्थायी सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक है।

सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को मिला वीटो पावर

सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों को जो बात विशेष शक्ति देती है वह है उनको मिला वीटो पावर यानी निषेधाधिकार का विशेष मतदान अधिकार। वीटो पावर से लैस देश किसी भी कानून या प्रस्ताव को अकेले रोक सकता है। वीटो किसी फैसले को रोकने और उसे लागू नहीं करने का असीमित अधिकार देता है। सुरक्षा परिषद के निर्णयों को मानना सभी सदस्य राष्ट्रों के अनिवार्य है।

सुरक्षा परिषद के कार्य और अधिकार

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कार्य और अधिकारों की बात करें तो इसका मुख्य कार्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम करना है। इसके लिए उसे कई अधिकार प्राप्त हैं। सुरक्षा परिषद उन मामलों और परिस्थितियों पर तुरंत विचार करती है जो शांति के लिए खतरा पैदा करती हैं। सुरक्षा परिषद शांति भंग करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर सकती है। इसके तहत उसे कूटनीतिक, आर्थिक और सैनिक कार्रवाई करने का अधिकार है। इसके अलावा नए राष्ट्रों को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता प्रदान करना, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का चयन और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति आदि कई ऐसे काम हैं जिनको सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र महासभा के साथ मिलकर करती है।

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद

संयुक्त राष्ट्र का आर्थिक और सामाजिक परिषद इस बात को दर्शाता है कि विश्व के सभी भागों में स्थायी शांति और सुरक्षा को केवल राजनीतिक और सैन्य प्रावधान के जरिए ही सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है बल्कि इसके लिए जीवन के उच्च स्तर, पूर्ण रोजगार और आर्थिक-सामाजिक प्रगति के साथ ही विकास की परिस्थितियों को बनाना भी जरूरी है। आर्थिक और सामाजिक परिषद में 54 सदस्य होते हैं जिनका निर्वाचन महासभा द्वारा 3 साल के लिए किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर भारत की तरफ हस्ताक्षर करने वाले सर ए रामास्वामी मुदलियार 1946 में महासभा द्वारा आर्थिक और सामाजिक परिषद के पहले अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने इसके पहले चार सत्रों में से तीन की अध्यक्षता की।

आर्थिक और सामाजिक परिषद के कार्य

आर्थिक और सामाजिक परिषद संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में मानवाधिकार और मौलिक स्वतंत्रता की देखरेख और उसके प्रति सार्वभौमिक सम्मान को बढ़ावा देने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य और अन्य मानवतावादी समस्याओं का समाधान खोजने का काम करती है। यह सतत विकास और दुनिया भर में लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के लिए संयुक्त राष्ट्र के एजेंसियों के जरिए आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य और उससे जुड़े मामलों पर रिपोर्ट तैयार कर महासभा को देती है, ताकि महासभा के नेतृत्व में उनके विकास के लिए कदम उठाया जा सके। आर्थिक और सामाजिक परिषद संयुक्त राष्ट्र की 14 विशिष्ट एजेंसियों, 10 कार्यात्मक आयोगों और 5 क्षेत्रीय आयोगों के कार्यों का समन्वय करता है। साथ ही 9 संयुक्त राष्ट्र निधियों और कार्यक्रमों से रिपोर्ट प्राप्त करता है और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और सदस्य राष्ट्रों के लिए नीतिगत सिफारिशें जारी करता है।

न्यास परिषद: गठन और मकसद

संयुक्त राष्ट्र का एक अन्य महत्वपूर्ण अंग है इसका न्यास परिषद, जिसे ट्रस्टीशिप काउंसिल कहा जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र का सबसे छोटा अंग है। दरअसल, 24 अक्टूबर 1945 को जब संयुक्त राष्ट्र ने अपना कार्य शुरू किया था उस समय विश्व में 11 ऐसे क्षेत्र थे जहां सरकारों का गठन नहीं हुआ था। ऐसे क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र का संरक्षण प्रदान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर की धारा 13 के तहत 7 सदस्यीय न्यास परिषद का गठन किया गया। 1994 से सबसे अंतिम राष्ट्र पलाऊ जो प्रशांत महासागर क्षेत्र में स्थित है, संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना। वहां भी संयुक्त राष्ट्र ने स्वतंत्र सरकार की स्थापना करवा दी। इस तरह सभी न्यास क्षेत्रों में सरकारों का गठन कराने के बाद एक नवंबर 1994 से न्यास परिषद ने अपना संचालन बंद कर दिया। न्यास परिषद के सभी सदस्यों को एक मत देने का अधिकार है और कोई भी निर्णय साधारण बहुमत से लिया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंगों में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय भी है जो संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है। इसका मुख्यालय नीदरलैंड के हेग में स्थित है। संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एकमात्र अंग है जो न्यूयॉर्क में स्थित नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की भूमिका अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर राष्ट्रों द्वारा प्रस्तुत कानूनी विवादों को निपटना और संयुक्त राष्ट्र के अंगों और एजेंसियों को कानूनी मसलों पर राय देना है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय अपने कानून के अनुसार कार्य करता है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुल 15 न्यायाधीश होते हैं, जिनका चुनाव सुरक्षा परिषद और महासभा में किए गए अलग-अलग मतदान के जरिए होता है। इसके न्यायाधीश का चुनाव योग्यता के आधार पर किया जाता है। प्रत्येक न्यायाधीश का कार्यकाल 9 साल का होता है और एक तिहाई न्यायाधीश 3 साल के बाद पदमुक्त हो जाते हैं। इसमें किसी भी राष्ट्र से एक से अधिक न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की जा सकती है। न्यायालय अपने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और रजिस्ट्रार की नियुक्ति खुद करता है। जिस देश के बारे में न्यायालय विचार करता है उस देश का न्यायाधीश उस मामले में भाग नहीं ले सकता है।

संयुक्त राष्ट्र का सचिवालय

संयुक्त राष्ट्र सचिवालय संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा अंग है। इसमें करीब 25 हजार लोग काम करते हैं। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। इसकी अन्य अनेक शाखाएं विश्व भर की अलग-अलग क्षेत्रों में स्थापित है। संयुक्त राष्ट्र सचिवालय का प्रधान महासचिव होता है जो संयुक्त राष्ट्र सर्वोच्च अधिकारी भी होता है। सचिवालय संयुक्त राष्ट्र के दैनिक गतिविधियों का संचालन करता है और अन्य सभी अंगों के कामों में सहायता देता है। सचिवालय को सुविधा के लिहाज से आठ विभागों में बांटा गया है। इनमें सुरक्षा परिषद से संबंधित विषयों का विभाग, सम्मेलन और सम्मान सेवाएं, प्रशासकीय और वित्तीय सेवाएं, आर्थिक विषयों से संबंधित विभाग, न्याय विभाग, लोक सूचना विभाग, सामाजिक विषयों से संबंधित विभाग और ट्रस्टीशिप विभाग शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव

महासचिव संयुक्त राष्ट्र का कार्यकारी प्रधान होता है। संयुक्त राष्ट्र के सभी कार्य उसी के नाम से होते हैं। संयुक्त राष्ट्र के प्रशासनिक कार्यों की जिम्मेदारी भी उसी की होती है। महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा की जाती है और उसका कार्यकाल 5 सालों के लिए होता है। 24 अक्टूबर 1945 से लेकर एक फरवरी 1946 तक ब्रिटिश राजनयिक और प्रशासक ग्लेडविन जेब्ब संयुक्त राष्ट्र के कार्यवाहक महासचिव रहे।  वहीं, दो फरवरी 1946 के नार्वे के राजनयिक त्रिग्वेली संयुक्त राष्ट्र के पहले स्थायी महासचिव चुने गए।

संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियां और प्रासंगिकता

अपने गठन के बाद से संयुक्त राष्ट्र का महत्व, उपलब्धि, असफलता और प्रासंगिकता की बात करें तो जहां इसने वैश्विक स्तर कई मुद्दों को सुलझाने में सफलता हासिल की है, वहीं अनेक महत्वपूर्ण मुद्दें अनसुलझे रह गए हैं, जो संयुक्त राष्ट्र की कमियों और असफलताओं को उजागर करते हैं। 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से अब तक दुनिया में काफी बदलाव हो चुके हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र की संरचना में खासकर इसके सुरक्षा परिषद में कोई बदलाव नहीं हुआ है। भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील जैसे देश लंबे समय से लगातार इस बात की पुरजोर मांग कर रहे हैं कि सुरक्षा परिषद की संरचना में बदलाव कर उन्हें भी इसमें शामिल किया जाए। बदलते वैश्विक परिवेश में यह जरूरी भी है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए इसके सुरक्षा परिषद में बदलाव और विस्तार किया जाए।

संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियां

1945 में जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई तब एशिया और अफ्रीका के अनेक देश स्वतंत्र नहीं थे। उस वक्त वैश्विक शांति और प्रगति लाने के लिए उपनिवेशवाद की समाप्ति संयुक्त राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बन गया। तब से लेकर आज तक लाखों लोगों को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराना संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। संयुक्त राष्ट्र ने उन क्षेत्रों में जहां उसके गठन के वक्त कोई सरकार या शासन नहीं था, उनके लिए न्यास परिषद का गठन कर वहां सरकारों की स्थापना कराई। इनमें कैमरून, नौरू, न्यू गुइनिया, प्रशांत महाद्वीप, रुआंडा, बुरुंडी, सोमालिया, तंजानिया, टोगोलैंड आदि क्षेत्रों शामिल हैं। इनके साथ ही इरिट्रिया, पूर्वी तिमोर की स्वतंत्रता उपनिवेशवाद के खिलाफ एक उदाहरण है, जिसका श्रेय संयुक्त राष्ट्र को है।

रंगभेद नीति को समाप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति का विरोध और खात्मा भी संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में शामिल है। रंगभेद के खिलाफ 1946 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा शुरू किए गए अभियान की सफलता 1993 में दिखने लगी जब 27 सालों के बाद अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला को जेल से रिहा किया गया। संयुक्त राष्ट्र के प्रयास से रंगभेद कानूनों को समाप्त किया गया और 1994 में नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति चुने गए।

मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा

संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार की सुरक्षा का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि सभी मनुष्यों के समान अधिकार हैं और मानव की गरिमा को कभी छीना नहीं जा सकता। इस विचार को वास्तविकता में लाने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर 1948 को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार किया। इसके बाद से हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा संयुक्त राष्ट्र की पहली उद्घोषणा है। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 1 में लिखी गई बात सभी मनुष्य समान हैंभारत की हंसा मेहता की पहल पर शामिल किया गया था।

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों की भूमिका

कुल मिलाकर कहें तों पिछले सात दशक से ज्यादा समय में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका सामाजिक-आर्थिक विकास की चुनौतियों का सामना करने में प्रत्यक्ष रूप से सबसे अधिक सफल रही है। इस उद्देश्य के लिए संयुक्त राष्ट्र की अनेक एजेंसियां जैसे यूनेस्को, आईएलओ, एफएओ के साथ ही यूएनडीपी, अंकटाड, यूनिडो और विश्व खाद्य कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

संयुक्त राष्ट्र की असफलता

अपनी तमाम सफलताओं के बावजूद संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों को हासिल करने में उतना सफल नहीं रहा है जितनी की इससे उम्मीद की गई थी। वैश्विक स्तर पर अनेक ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान संयुक्त राष्ट्र नहीं कर सका है। संयुक्त राष्ट्र की असफलता इसके शुरुआती दिनों से ही देखने को मिलने लगी। इसके गठन के तुरंत बाद विश्व दो गुटों- पूंजीवाद और समाजवाद- में बंट गया। दोनों ही गुटों ने अपने स्वार्थ के लिए संयुक्त राष्ट्र के हितों की ओर ध्यान नहीं दिया।

वियतनाम युद्ध

वैश्विक स्तर पर अनेक मामलों में संयुक्त राष्ट्र कोई प्रभावशाली कदम नहीं उठा सका और उसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे। वियतनाम में अमेरिका ने भंयकर बमबारी कर मानवता के साथ खुलकर खिलवाड़ किया लेकिन संयुक्त राष्ट्र सिवाय मूकदर्शक के कुछ नहीं कर सका।

वीटो का अधिकार और परमाणु शस्त्रों की होड़

संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों के विफल होने का एक बहुत बड़ा कारण है इसके सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होना। अपने हितों को साधने के लिए ये सदस्य संयुक्त राष्ट्र के किसी भी प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल कर उसे निरर्थक बना देते हैं। वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ रहे परमाणु शस्त्रों की होड़ को भी संयुक्त राष्ट्र रोकने में नाकाम रहा है।

हिंसा को रोकने में संयुक्त राष्ट्र असमर्थ

पिछले तीन दशकों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को प्रभावित करने वाली संकटों की संख्या में काफी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। इसकी वजह से पूरे विश्व को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। इन घटनाओं ने संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य को ही खतरे में डाल दिया है। सुरक्षा परिषद इस तरह के संकटों को रोकने में असमर्थ रही है और उन्हें हल करने में नाकाम भी रही है।

सुरक्षा परिषद का विस्तार जरूरी

संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि इसकी संरचना खासकर सुरक्षा परिषद में बदलाव किया जाए और इसके सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि सुरक्षा परिषद की बैठक में दृढ़तापूर्वक एक न्यायोचित निर्णय लिया जा सके। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 5 स्थायी सदस्य 1945 से हैं और बाकी 10 सदस्यों को 2 सालों के लिए महासभा द्वारा चुना जाता है। यह व्यवस्था पिछले करीब 60 सालों से चलती आ रही है, जब अधिकांश अफ्रीकी और एशियाई देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं थे। अब जबकि सदस्यों की संख्या करीब चार गुना बढ़ गई है तब यह जरूरी हो गया है कि इसके स्वरूप और संरचना में भी बदलाव किया जाए।

भारत सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का मजबूत दावेदार

जहां तक भारत की बात है तो भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का प्रबल दावेदार है। भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों मे से एक है। यही नहीं, भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन अभियानों में सर्वाधिक योगदान देने वाला देश होने के साथ ही दुनिया का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश और संसार का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भी है। भारत करीब 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला एक परमाणु संपन्न देश है। भारत लंबे समय से सुरक्षा परिषद के विस्तार और इसमें स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है। भारत अब तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सात बार अस्थायी सदस्य रह चुका है और आठवीं बार 2021-22 तक के लिए अस्थायी सदस्य चुना गया है। इस तरह जनसंख्या, क्षेत्रीय आकार, जीडीपी, आर्थिक क्षमता, संपन्न विरासत और सांस्कृतिक विविधता समेत सभी पैमाने पर सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने की योग्यता रखता है।

वर्तमान परिवेश में वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे चुनौतियों का सामना करने के लिए जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना में बदलाव कर इसका विस्तार किया जाए और इसके स्थायी सदस्यों की संख्या को बढ़ाया जाए। तभी संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों को हासिल करने में सफल हो पाएगा और समय के साथ अपनी प्रासंगिकता को बनाए रख पाएगा।

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