विश्व खाद्य दिवस: चुनौतियां और संभावनाएं
कृषि-खाद्य सिस्टम एक जटिल और आमतौर पर आसानी से समझ में नहीं आने वाली चीज है। इसकी वास्तविकता से हम अक्सर अनजान रहते है या इसे समझने की कोशिश नहीं करते। अगर खेती नहीं होगी, हमें खाने को खाद्य पदार्थ नहीं मिलेंगे तो शायद हमारा अस्तित्व ही न रहे। इसलिए हम सब का जीवन इस प्रणाली पर बहुत हद तक निर्भर करता है। हर बार जब हम खाना खाते हैं तो कहीं न कहीं इस सिस्टम के हिस्सा होते हैं। हम जो अनाज पसंद करते हैं और जिस तरह से उसकी खेती करते हैं, उसे तैयार करते हैं और उनका संरक्षण करते हैं, वह हमें इस कृषि-खाद्य प्रणाली का अभिन्न और सक्रिय हिस्सा बनाता है।
एक स्थायी कृषि-खाद्य प्रणाली वह है जिसमें सभी के लिए पर्याप्त, पौष्टिक और सुरक्षित खाद्य पदार्थ सस्ती कीमत पर उपलब्ध हो, और कोई भी भूखा न रहे या किसी भी तरह के कुपोषण से पीड़ित न हो। स्थानीय बाजार में खाद्य पदार्थों का भंडारण, रख-रखाव में अनाज का बर्बाद होना, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति श्रृंखला में गड़बड़ी, मौसम की मार, मूल्यों में बढ़ोत्तरी और वैश्विक महामारी जैसी समस्याएं खाद्यों की उपलब्धता पर तो असर डालती ही है लेकिन साथ में पर्यावरण में असंतुलन और जलवायु परिवर्तन इस समस्या को और भी विकराल बना देते हैं। दरअसल, टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणाली का उद्देश्य मौजूदा आबादी और आने वाली पीढ़ियों को खाद्य सुरक्षा और पोषण उपलब्ध कराना होता है और वह भी आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण से समझौता किए बिना। उनका मकसद- बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, एक बेहतर वातावरण और सभी के लिए एक बेहतर जीवन उपलब्ध कराने का रास्ता तैयार करना है।
कृषि तकनीक और उर्वरकों के विकास की वजह से 1960 के दशक से वैश्विक खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि है, लेकिन इसके बावजूद आज पूरे विश्व में भूखे और कुपोषित व्यक्तियों की संख्या पहले की तुलना में कहीं ज्यादा हो गई है और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
वैश्विक स्तर पर चिंताजनक स्थिति
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक वैश्विक आबादी की करीब 40 फीसदी लोग जिनकी संख्या 3 अरब से ज्यादा है, वे अपने स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते हैं। करीब 2 अरब से ज्यादा लोग खराब आहार और गतिहीन जीवन शैली की वजह से अधिक वजन वाले या मोटे हो गए हैं। इस वजह से गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और साल 2030 तक स्वास्थ्य संबंधित देखभाल पर सालाना 1.3 ट्रिलियन डॉलर से अधिक खर्च होने की संभावना जताई गई है।
अन्य क्षेत्रों के मुकाबले सबसे ज्यादा लोग कृषि और खाद्य प्रणाली में
यह स्थिति तब है जब विश्व खाद्य प्रणाली में करीब एक अरब लोगों को रोजगार मिला हुआ है जो किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में अधिक है। यही नहीं, गरीबी, पैसा और प्रशिक्षण की कमी के साथ ही प्रौद्योगिकी तक पहुंच नहीं होने के बावजूद छोटे किसान दुनिया के कुल खाद्य पदार्थ का 33 फीसदी उत्पादन करते हैं। वैश्विक स्तर पर 25 से 34 साल आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में 20 फीसदी अधिक महिलाएं अत्यंत गरीबी में रहती हैं और 18 फीसदी से अधिक स्वदेशी महिलाएं 1.90 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करती है।
रखरखाव और आपूर्ति में कमी से 14 फीसदी भोजन बर्बाद
अपर्याप्त कटाई, रख-रखाव में कमी, भंडारण और पारगमन की असुविधा की वजह से दुनिया का 14 फीसदी भोजन नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही 17 फीसदी भोजन उपभोक्ता के स्तर पर बर्बाद हो जाता है। जबकि खाद्य उपलब्धता और आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है। वर्तमान में विश्व की 55 फीसदी जनसंख्या शहरों में निवास करती है और 2050 तक इसके बढ़कर 68 फीसदी हो जाने की संभावना है। अगर हालात यही रहें तो समस्याएं और भी विकराल हो जाएंगी। दूषित खाद्य पदार्थ खाने से भी बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं। वैश्विक आबादी का करीब 10 फीसदी लोग बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या रासायनिक पदार्थों से दूषित असुरक्षित खाद्य आपूर्ति सें प्रभावित होते हैं। हालांकि वैश्विक स्तर पर कुल मानव जनित ग्रीन हाउस उत्सर्जन में से 33 फीसदी से ज्यादा हिस्सा विश्व की वर्तमान खाद्य प्रणालियों की वजह से होता है।
जलवायु परिवर्तन एक गंभीर चुनौती
जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौती भी खाद्यान्नों के उत्पादन में कमी और गरीबी को बढ़ाने का एक प्रमुख कारण है। इसकी वजह से न केवल अनाजों में प्रोटीन, आवश्यक खनिज पदार्थों और विटामिनों में कमी होती है बल्कि यह मुख्य फसलों की पोषक संरचना को बदलने का भी प्रमुख कारण है। इन सब के साथ ही कृषि पर बढ़ते दबाव की वजह से जैव विविधता और मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी काफी प्रभावित हो रही है। भोजन की बढ़ती खपत की वजह से ज्यादा से ज्यादा फसलों के उत्पादन का दबाव बढ़ रहा है और इसके परिणामस्वरूप मिट्टी का क्षरण लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
विश्व खाद्य दिवस और मकसद
भोजन को हर व्यक्ति का मौलिक और बुनियादी अधिकार मानते हुए संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन हर साल 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाता है। इसका उद्देश्य भुखमरी से पीड़ित लोगों को जागरूक करना और हर व्यक्ति को भूख से बचाना है। यह संगठन बदलती टेक्नोलॉजी के साथ कृषि, पर्यावरण, पोषक तत्व और खाद्य सुरक्षा के बारे में जानकारी देता है और वैश्विक स्तर पर लोगों को जागरूक करता है। ताकि पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बढ़ाई जा सके और कुपोषण को रोका जा सके।
विश्व खाद्य दिवस का इतिहास
साल 1945 में 16 अक्टूबर को ही खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना हुई थी। पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों को लेकर जागरूकता फैलाने और भुखमरी को खत्म करने के उद्देश्य से इसने अपने 20वें महासम्मेलन में साल 1979 में विश्व खाद्य दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद से साल 1981 से हर साल विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। आज दुनियाभर के 150 देश मिलकर विश्व खाद्य दिवस मनाते हैं।
विश्व खाद्य दिवस का थीम
खाद्य पदार्थों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल दुनियाभर में अलग-अलग थीम के साथ वर्ल्ड फूड डे मनाया जाता है। 2021 का विश्व खाद्य दिवस का थीम है “हमारे कार्य हमारा भविष्य हैं- बेहतर उत्पादन, बेहर पोषण, बेहतर वातावरण और बेहतर जीवन”(Our action are our future- Better production, better nutrition, a better environment and a better life).
इसी तरह साल 2020 में विश्व खाद्य दिवस का थीम था “Grow, nourish, sustain. Together. Our actions are our future”. यानी “साथ में पोषण, पालन और बढ़ना है, हमारी कोशिश ही हमारा भविष्य है”।
भारत में हर साल 40 फीसदी खाना बर्बाद होता है
भारत की बात करें तो देश में खाने के अभाव में हर दिन भूखे पेट सोने वाले लोगों की संख्या 20 करोड़ से अधिक है। वहीं एक बड़ी आबादी को पौष्टिक खाना नसीब नहीं हो पाता है। वो भी तब जब देश में हर साल प्रति व्यक्ति पर 50 किलो खाना बर्बाद होता है। भारत में कुल खाने की बर्बादी का आकलन करें तो हर साल 68 करोड़ 760 लाख टन से ज्यादा खाना बर्बाद होता है। यह स्थिति तब है जब देश में हर साल पैदा होने वाला 40 फीसदी खाद्य पदार्थ रखरखाव या आपूर्ति की अव्यवस्था की वजह से खराब हो जाता है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत 101वें स्थान पर
अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन होने के बावजूद भारत वैश्विक भूख सूचकांक यानी ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 की सूची में 2020 की तुलना में सात पायदान नीचे खिसककर 101वें स्थान पर आ गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में शामिल कुल 116 देशों की सूची में भारत का स्थान 101वां है जबकि इससे पहले 2020 में भारत 94वें स्थान पर था। इस सूची में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल भी से भी पीछे है। रिपोर्ट में भारत का जीएचआई स्कोर 27.5 बताया गया है। जो काफी चिंताजनक है। भारत की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए 2021 में आशावादी होना मुश्किल है क्योंकि अब भूख बढ़ाने वाली ताकतें अच्छे इरादों और ऊंचे लक्ष्यों पर हावी हो रही हैं।
2020-21 में रिकॉर्ड अनाज उत्पादन
भारत में भुखमरी की यह हालात तब है जब मई 2021 में कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग ने 2020-21 के लिए प्रमुख कृषि फसलों के उत्पादन के तीसरे अग्रिम अनुमान में रिकॉर्ड उत्पादन का दावा किया था। इसके मुताबिक देश में 2020-21 के दौरान कुल खाद्यान्न उत्पादन 30.544 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया था जो 2019-20 के दौरान हुए कुल 29.75 टन खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 79.4 लाख टन ज्यादा है। इसके साथ ही 2020-21 के दौरान खाद्यान्न उत्पादन पिछले पांच सालों (2015-16 से 2019-20) के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 2.666 करोड़ टन ज्यादा है।
इसके बावजूद 2017 से 2019 के बीच करीब 31.6 फीसदी भारतीय खाद्य सुरक्षा के मामले में मध्यम या गंभीर स्तर का खतरा झेल रहे थे। वहीं 2014 से 2016 के बीच 42.65 करोड़ भारतीय खाद्य सुरक्षा से जूझ रहे थे जबकि 2017 से 2019 के बीच इनकी संख्या बढ़कर 48.86 करोड़ हो गई। इसके साथ ही 4 साल से कम उम्र के आधे से ज्यादा बच्चों का वजन और कद-काठी कुपोषण की वजह से सामान्य से कम पाया गया।
बच्चों के सेहत और उनके पोषण पर काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था सेव द चिल्ड्रेन की ओर से जारी वार्षिक रिपोर्ट “ Change for Children: 2020” में कुपोषण के शिकार बच्चों के सामने जलवायु परिवर्तन का दोहरे खतरे पर गंभीर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर सूखा, बाढ़ समेत अन्य मौसमी आपदाओं से बच्चों का विकास प्रभावित हो रहा है।
भारत में कुपोषण दूर करने के लिए उठाए गए कदम
हालांकि भारत में सरकार ने कुपोषण को खत्म करने के लिए कई कार्यक्रमों की शुरुआत की है जिनमें राष्ट्रीय पोषण मिशन, स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय का निर्माण, मिशन इंद्रधनुष, जल जीवन मिशन आदि शामिल है। इसके अलावा कुपोषण को खत्म करने के लिए प्रोटीन, आयरन, जिंक आदि पोषक तत्वों से समृद्ध खाद्यान्न अनाजों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके साथ ही सरकार साल 2022 तक भारत को ट्रांस फैट से मुक्त करने का लक्ष्य भी निर्धारित किया है। देश में कुपोषण दूर करने के लिए सरकार द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम एसएसीएस-4028 को यूनिसेफ ने सराहा भी है, लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद भारत में अभी भी कुपोषण और भुखमरी की समस्या गंभीर बनी हुई है।
वैश्विक स्तर पर कुपोषण के शिकार बच्चे
संकट और महामारी के दौरान भावी पीढ़ियों तक सुरक्षित और पौष्टिक भोजन पहुंचाए बिना हम उनके सुरक्षित भविष्य की कल्पना नहीं कर सकते। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक जिन बच्चों को उनके जीवन के पहले एक हजार दिनों के दौरान उचित पोषण दिया जाता है, उनके वयस्क के रूप में गरीबी से बचने की संभावना 33 फीसदी ज्यादा होती है। आज 5 साल से कम आयु के 151 मिलियन से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
2020 में प्रकाशित विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 690 मिलियन लोग जो कुल वैश्विक आबादी के 8.9 फीसदी हैं, भूख से प्रभावित हैं। पिछले पांच सालों में इनकी संख्या 60 मिलियन बढ़ी है। दुनिया के 3 अरब से ज्यादा लोग स्वस्थ आहार के महंगा होने से उसे खरीद पाने में असमर्थ हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनियाभर में दूषित खाद्य जनित बीमारी के करीब 600 मिलियन मामले सामने आते हैं और बच्चों के साथ-साथ गरीब लोग इसका खामियाजा उठाते हैं।
सभी को मिलकर करना होगा प्रयास
कोविड-19 महामारी ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है। पहले से ही जलवायु परिवर्तन का मार झेल रहे किसानों के लिए महामारी ने हालात को और कठिन बना दिया है। किसान अपनी फसलों को सस्ते दामों पर बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं। साथ ही बढ़ती गरीबी भी हालात को भयावह बना रही है। स्थायी कृषि-खाद्य प्रणालियों को नए तरीके और तकनीक को अपनाने की जरूरत है ताकि 2050 तक दस अरब लोगों को पोषण देने में सक्षम हो सके। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य यानी एसडीजी के 2030 के एजेंडे को हासिल करने के लिए भी यह बेहद जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि सरकारें, निजी क्षेत्र, सिविल सोसायटी, अतंर्राष्ट्रीय संगठन और शिक्षाविद मिलकर काम करें। हमें अपने वर्तमान आबादी और आने वाली पीढ़ी के लिए बढ़ती खाद्य जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ भोजन की बर्बादी को कम से कम करने की जरूरत पर ध्यान देना होगा। साथ ही जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण सुरक्षा को भी ध्यान में रखना होगा। अगर दुनिया की करीब आधी आबादी भूख से पीड़ित रहेगी तो विकास की हर कल्पना भी अधूरी रहेगी। इसके लिए जरूरी है कि लोगों को बड़ी संख्या में वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थ और उसकी सुरक्षा को लेकर जागरूक किया जाए। साथ ही कृषि में नए-नए आविष्कार पर जोर दिया जाए और उपभोक्ता, उत्पादक, व्यापारी और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला इन सभी प्रणालियों में सकारात्मक परिवर्तन लाकर भविष्य को सुरक्षित करने का ठोस उपाय किए जाएं।