G20 शिखर सम्मेलन, 2021: ‘रोम घोषणापत्र’ और बदलते वैश्विक परिवेश में जी20 की प्रासंगिकता
इटली के रोम में आयोजित दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन जी20, 31 अक्टूबर को समाप्त हो गया। दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था का 80 फीसदी हिस्सा साझा करने वाले देशों ने जी20 सम्मेलन में कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने, स्वास्थ्य अवसंरचना में सुधार, आर्थिक सहयोग को बढ़ाने और नवाचार को प्रोत्साहन देने जैसे मुद्दों पर सहमति जताई। साथ ही जलवायु परिवर्तन के तत्काल खतरे से निपटने के लिए सार्थक और प्रभावी कदम उठाने पर प्रतिबद्धता भी जताई। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि रोम में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन कितना सार्थक रहा और जी20 शिखर सम्मेलन अब तक अपने उद्देश्यों को हासिल करने में कितना सफल रहा है।
G20 शिखर सम्मेलन, 2021
जी20 यानी दुनिया के सबसे ताकतवर देश... और जब दुनिया के ये ताकतवर देश मिलते हैं तो बरबस... सबकी निगाहें इस सम्मेलन और इसके घोषणापत्र पर टिक जाती है। दुनिया की आर्थिक, राजनीतिक और स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए इन देशों की प्रतिबद्धता और प्रयास बेहद महत्वपूर्ण है। 16वां जी20 शिखर सम्मेलन 30 से 31 अक्टूबर 2021 तक इटली के रोम में आयोजित हुआ, जिसमें जी20 के सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं ने भाग लिया। सम्मेलन के दौरान जिन मुद्दों पर चर्चा हुई उसे जी20 नेताओं ने ‘रोम घोषणापत्र’ के रूप में स्वीकार किया। इस घोषणा पत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने पर बल दिया गया और कहा गया कि कोविड-19 रोधी टीकाकरण वैश्विक स्तर पर जनता के हित में हैं। साथ ही इसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने, जलवायु अनुकूलन और वित्त पोषण को बढ़ाने की बात भी शामिल की गई।
G20 शिखर सम्मेलन, 2021 और ‘रोम घोषणापत्र’
रोम घोषणा पत्र के मुताबिक शिखर सम्मेलन में जी20 के नेताओं ने जिन मुद्दों पर सहमति जताई उनमें ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना, सदी के मध्य तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में नेट जीरो यानी कार्बन न्यूट्रेलिटी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रयास तेज करना शामिल है। हालांकि नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए समय सीमा के तौर पर 2050 का उल्लेख इसमें नहीं किया गया है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए गरीब देशों की सहायता करने को लेकर सालाना 100 अरब डॉलर जुटाने के अमीर देशों के पुराने वादे को दोहराना और अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली को स्थायी और निष्पक्ष बनाने के लिए 2023 तक 15 प्रतिशत वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स को लागू करने का समझौता शामिल है। इसके अलावा निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कोविड-19 टीकों की बेहतर और समय पर पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करना और महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त वित्त पोषण सुनिश्चित करने के लिए एक G20 Joint Finance-Health Task Force का गठन करना शामिल है।
‘रोम घोषणापत्र’ और कोविड-19 टीकाकरण
रोम घोषणापत्र में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि GFX IN कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए टीकाकरण ही एकमात्र उपाय है। इसमें 2021 के अंत तक सभी देशों में कम से कम 40 फीसदी और 2022 के मध्य तक 70 फीसदी आबादी के टीकाकरण के लक्ष्य को हासिल करने की बात कही गई है। इसके लिए वैक्सीन निर्माण में तेजी लाने और दुनिया भर में न्यायसंगत वैक्सीन वितरण के लिए मजबूत आपूर्ति श्रृंखला बनाने की बात भी कही गई है।
सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने का प्रयास
सम्मेलन में जी20 के नेताओं ने GFX IN सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपने प्रयासों में तेजी लाने और दुनिया भर में एक स्थायी और समावेशी विकास प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। इनमें सभी के लिए खाद्य सुरक्षा और पर्याप्त पोषण की बात भी शामिल है। जी20 में शामिल सभी राष्ट्रों ने 2030 तक जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिए अपने कार्यों में और तेजी लाने के लिए प्रतिबद्धता जताई।
भारत की पहल: ‘एक धरती - एक स्वास्थ्य’
भारत की तरफ से जी20 सम्मेलन में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐलान किया कि कोविड19 महामारी से लड़ने के लिए भारत का लक्ष्य अगले साल तक 500 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन बनाने की है। हालांकि इसके लिए कच्चे माल की सप्लाई चेन सुचारू रूप से जारी रहना बहुत जरूरी है जिसकी चर्चा प्रधानमंत्री ने भी किया। इसके साथ ही उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन से मांग की कि भारत के इस कदम से कोरोना के वैश्विक संकट को रोकने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी, इसलिए WHO को भारतीय वैक्सीन को तुरंत मान्यता देनी चाहिए... और ये वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते ताकत का असर ही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत की मांग को स्वीकार करते हुए भारतीय टीका कोवैक्सीन को वैश्विक इस्तेमाल की मंजूरी प्रदान कर दी। WHO की मान्यता मिलने के बाद अब कोवैक्सीन लेने वाले को दूसरे देशों में क्वारंटाइन नहीं होना पड़ेगा। हालांकि इससे पहले दुनिया के अनेक देश कोवैक्सीन को मान्यता दे चुके हैं। भारत ने कोरोना काल के दौरान फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड की भूमिका निभाते हुए भारत ने 150 से ज्यादा देशों को दवाइयां पहुंचाई। प्रधानमंत्री ने कोरोना वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए ‘एक धरती-एक स्वास्थ्य’ का विजन दुनिया के सामने रखा। यह आठवा जी20 शिखर सम्मेलन था जिसमें प्रधानमंत्री मोदी शामिल हुए।
G20 शिखर सम्मेलन, 2021 की थीम
इस बार जी20 सम्मेलन की थीम थी ‘Planet, People and Prosperity’ यानी पृथ्वी, लोग और समृद्धि। यह विषय संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के एजेंडा 2030 पर आधारित थी। पिछले साल जी20 शिखर बैठक कोरोना महामारी की वजह से वर्चुअल हुई थी। उसकी मेजबानी सऊदी अरब ने की थी।
G20 सम्मेलन: गठन और इतिहास
जी20 के गठन और इतिहास की बात करें तो जी20 की शुरुआत 1997 में एशिया में आई आर्थिक संकट के बाद हुआ। इस आर्थिक संकट के बाद एक नए संगठन की मांग होने लगी जो जी7 से अलग हो और जिसमें नए और उभरते देशों की भी हिस्सेदारी हो। इसे ध्यान में रखते हुए जून 1999 में जर्मनी के कोलोन में जी7 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक हुई। इस बैठक में दुनिया के 20 शक्तिशाली अर्थव्यवस्था वाले देशों को एक मंच पर लाने का फैसला लिया गया। इसके बाद सितंबर 1999 में औपचारिक रूप से जी20 यानी GROUP OF TWENTY का गठन हुआ... जिसमें 19 देशों और यूरोपियन यूनियन के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों को सदस्य बनाया गया। इसके बाद दिसंबर 1999 में बर्लिन में जी20 की पहली बैठक हुई। इस तरह पहली बार एक ऐसे समूह का गठन हुआ जिसमें विकसित और विकासशील दोनों देश शामिल थे। वहीं, 2008 में अमेरिका में आए वित्तीय संकट के बाद जी20 के स्वरूप को और अधिक विस्तार देते हुए इसके सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष और शीर्ष नेता भी जी20 सम्मेलन में हिस्सा लेने लगे। जी20 का पहला शिखर सम्मेलन नवंबर 2008 में वाशिंगटन डी सी में हुआ।
G20 और सदस्य देश
जी20 समूह में भारत, ब्राजील, कनाडा, चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेटीना, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, इंडोनेशिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं। दुनिया की कुल जीडीपी में इन देशों की हिस्सेदारी 80 फीसदी है। वहीं वैश्विक व्यापार में इन देशों का हिस्सा दो तिहाई है जबकि दुनिया की करीब 60 फीसदी आबादी इन देशों में निवास करती है। जी20 का कोई स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं है।
G20 और कामकाज के तरीके
जी20 का कोई स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं है। इसकी अध्यक्षता हर साल बदलती रहती है। प्रत्येक साल जब एक सदस्य देश अध्यक्ष बनता है तो वह पिछले साल के अध्यक्ष देश और अगले साल होने वाले अध्यक्ष देश के साथ मिलकर कार्य करता है। इस प्रक्रिया को सामूहिक रूप से ट्रोइका कहा जाता है। ट्रोइका सम्मेलन के एजेंडे अनुरूप कार्य को सुनिश्चित करता है। वहीं जी20 सदस्य देशों के नेताओं के प्रतिनिधि को शेरपा कहा जाता है। शेरपा सदस्य देशों के साथ मिलकर आर्थिक, राजनीतिक और वैश्विक मुद्दे पर चर्चा करता है, और एजेंडे के बीच समन्वय बनाता है।
G20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता
हर साल एक नया देश जी20 सम्मेलन का अध्यक्ष होता है। दरअसल, जिस देश में इस सम्मेलन का आयोजन होता है वही इसकी अध्यक्षता करता है। 2022 में जी20 शिखर सम्मेलन इंडोनेशिया में आयोजित होगा। भारत 1999 में जी20 की स्थापना के समय से ही इसका सदस्य है और साल 2023 में जी20 सम्मेलन का मेजबानी भी करेगा। भारत में जी20 शिखर सम्मेलन का आयोजन दिल्ली के प्रगति मैदान में होगा।
G20 शिखर सम्मेलन का उद्देश्य
जी20 का मकसद वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विकसित और विकासशील देशों को एक साथ लाना। अलग-अलग देशों की आर्थिक और व्यापार नीतियों में सामंजस्य लाना और ऐसे वित्तीय नियमों को बढ़ावा देना जो जोखिम कर करते हैं और भविष्य में वित्तीय संकटों को रोकने में सक्षम हों।
सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी20 की प्रतिबद्धता जरूरी
हालांकि तमाम प्रयासों के बावजूद एक ओर असमान गति से विकास दर बढ़ने की वजह से अमीर और गरीब देशों के बीच फासला बढ़ता ही जा रहा है। यह विघटन सिर्फ अमीर-गरीब के बीच ही नहीं, बल्कि सामाजिक वर्गों के बीच भी बढ़ रहा है। कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए गरीब देशों को वैक्सीनेशन, टेक्नोलॉजी और अन्य वित्तीय और चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध कराना भी एक कठिन चुनौती है। इन समस्याओं का समाधान करन के लिए जी20 देशों को महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। तभी हम सतत विकास के लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे।