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कैसी होगी डिजिटल करेंसी और क्या है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी?

Digital Currency

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने वित्त वर्ष 2022-23 का बजट पेश करते हुए ऐलान किया है कि आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से इस साल अप्रैल के बाद डिजिटल करेंसी लॉन्च की जाएगी और यह ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित करेंसी होगी। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह भी कहा कि बिटक्वाइन समेत अन्य क्रिप्टोकरेंसी को एसेट माना जाएगा और इससे होने वाली कमाई पर 30 फीसदी टैक्स देना होगा। इसके अलावा क्रिप्टोकरेंसी से ट्रांजेक्शन पर एक फीसदी टीडीएस देना है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि डिजिटल करेंसी क्या होती है और यह क्रिप्टोकरेंसी से कितना अलग होगा। बैंकों की इसमें क्या भूमिका होगी और डिजिटल करेंसी से आम लोगों को क्या फायदा होगा। साथ ही इसकी चुनौतियां क्या हैं, और हम जो डिजिटल पेमेंट कर रहे हैं, उनसे यह डिजिटल रुपया किस तरह अलग होगा?

इसे तकनीक का वरदान कहे या चमत्कार...भौतिक वजूद नहीं होते हुए भी इसने धीरे-धीरे असली और आभासी दुनिया की दूरियों को पाट कर रख दिया। इंटरनेट पर वर्चुअल और डिजिटल गेम खेलते-खेलते, कब हमने सोचा था कि दिन एक डिजिटल करेंसी से भी हम खेलने लगेंगे। वैसे तो पैसों का डिजिटल लेन-देन पूरी दुनिया में काफी पहले से आम है। लेकिन अब डिजिटल करेंसी को भी वजूद में लाने की शुरुआत हो चुकी है।

क्या है डिजिटल करेंसी ?

डिजिटल करेंसी होती क्या है?  तो, डिजिटल करेंसी एक ऐसी करेंसी होती है जो भौतिक रूप से मौजूद नहीं होती। लेकिन उस करेंसी का मूल्य होता है। दरअसल, कोई भी मुद्रा, पैसा या धन, जिसका इंटरनेट और कम्प्यूटर सिस्टम के जरिए प्रबंधन, संग्रहण और लेन-देन किया जाता है, उसे डिजिटल करेंसी कहते हैं। यह कैश यानी नकदी पैसे का इलेक्ट्रॉनिक रूप है। जैसे आप कैश का लेन-देन करते हैं, वैसे ही आप डिजिटल करेंसी का लेनदेन भी कर सकते है। आसान भाषा में इसे समझें तो, डिजिटल करेंसी हमारे नोट की तरह ही होती है। लेकिन इसमें एक अंतर यह होता है कि यह कागज पर छपा नोट नहीं होता है, बल्कि एक नंबर की तरह होता है जिसे आप अपने मोबाइल या कम्प्यूटर पर संभाल कर रख सकते हैं। और अगर आप उस नंबर को किसी के साथ साझा करते हैं तो उस नंबर में निहित रकम तुरंत ही दूसरे व्यक्ति के पास पहुंच जाती है। यानी जैसे आप अपनी जेब से नोट निकाल कर किसी दूसरे को देते हैं, उसी तरह आप अपने मोबाइल से एक नंबर निकाल कर दूसरे को दे कर अपना पेमेंट कर सकते हैं। यहां यह बात समझना बेहद जरूरी है कि सभी क्रिप्टोकरेंसी डिजिटल करेंसी ही है, क्यों ये भी डिजिटली संचालित होते हैं, लेकिन डिजिटल करेंसी क्रिप्टोकरेंसी नहीं है, क्योंकि यह बेनामी और विकेंद्रीकृत नहीं हैं बल्कि आरबीआई द्वारा संचालित होगी।

कौन जारी करेगा डिजिटल करेंसी ?

डिजिटल करेंसी का पूरा नाम Central Bank Digital Currency यानी CBDC होता है। इसे किसी भी देश का केंद्रीय बैंक ही जारी करता है। जिस देश का केंद्रीय बैंक इसे जारी करता है, उस देश की सरकार की मान्यता इसे मिली होती है। यह उस देश की केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट में भी शामिल होती है। इसकी खासियत यह कि इसे देश की सॉवरेन करेंसी में बदला जा सकता है। यानी उस देश की भौतिक रुपयों में बदला जा सकता है। वहीं क्रिप्टो करेंसी में इस तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है।

कितने तरह की डिजिटल करेंसी और कैसे करेगी काम ?

भारत की बात करें तो भारत में डिजिटल करेंसी को रिजर्व बैंक द्वारा जारी किया जाएगा। भारत के मामले में इसे ‘डिजिटल रुपया’ कहा जा सकता है। इसके तहत रिजर्व बैंक से डिजिटल करेंसी चाहने वालों को यह करेंसी मिलेगी और आप इसे जिस किसी को भी पेमेंट या ट्रांसफर करेंगे, उसके पास यह आसानी से पहुंच जाएगी। यह न तो किसी वॉलेट में जाएगी और न ही बैंक अकाउंट में। सीधे आपके मोबाइल या कम्प्यूटर में जाएगी और बिलकुल कैश या नगद की तरह काम करेगी लेकिन होगी डिजिटल। यानी बिना किसी बिचौलिए या बैंक के, इसके जरिए ट्रांजेक्शन संभव हो पाएगा। डिजिटल करेंसी दो तरह की होती है- रिटेल और होलसेल। रिटेल डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल आम लोग और कंपनियां करती हैं। वहीं, होलसेल डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल वित्तीय संस्थाओं द्वारा किया जाता है।

डिजिटल पेमेंट्स और डिजिटल करेंसी में अंतर

डिजिटल पेमेंट्स से डिजिटल करेंसी बिलकुल अलग होगी। कई लोगों के मन में यह सवाल भी उठ रहा होगा कि जब पहले से ही डिजिटल पेमेंट्स की कई सुविधाएं मौजूद हैं तो डिजिटल रुपया लाने की जरूरत क्या है? और यह अलग कैसे है?  दरअसल, ज्यादातर डिजिटल पेमेंट्स चेक की तरह काम करते हैं। इसमें आप बैंक को निर्देश देते है कि वह आपके अकाउंट में जमा राशि से इतने रुपये का पेमेंट या ट्रांजेक्शन कर दे, तब बैंक उतनी राशि का पेमेंट करता है। इस तरह डिजिटल ट्रांजेक्शन में कई संस्थाएं और लोग शामिल होते हैं जो इस प्रोसेस को पूरा करते हैं। आप इसे इस तरह से समझिए कि- अगर आपने क्रेडिट कार्ड से कोई पेमेंट किया तो क्या तुरंत ही सामने वाले को पैसा मिल गया? तो इसका जवाब है नहीं...। डिजिटल पेमेंट सामने वाले के अकाउंट में पहुंचने के लिए एक मिनट से 48 घंटे तक का समय ले लेता है। यानी, पेमेंट तत्काल नहीं होता, उसकी एक प्रक्रिया होती है। लेकिन जब आप डिजिटल करेंसी के जरिए किसी को पेमेंट करते हैं तो वह सामने वाले को तुरंत मिल जाता है और यही इसकी खूबी है। अभी हो रहे डिजिटल ट्रांजेक्शन किसी बैंक के खाते में जमा रुपए का ट्रांसफर है लेकिन CBDC नकद करेंसी की तरह काम करेगा।

डिजिटल करेंसी के फायदे

डिजिटल करेंसी के फायदे की बात करें तो कागज के नोट के मुकाबले इसमें खर्चा कम आएगा साथ ही यह बेहद तेज गति से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक भेजा जा सकता है। इसका कन्वर्जन और मूल्य, भौतिक धन के समान होगा। इससे बाजार की अस्थिरता से बचा जा सकता है। इसका इस्तेमाल 24 घंटे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से किया जा सकता है। इसके लिए बैंक खाते की जरूरत नहीं है। इसकी मॉनेटरी पॉलिसी रिजर्व बैंक के हाथ में होगा और वह तय करेगा कि डिजिटल रुपया कितना और कब जारी करना है। इस लिहाज से देखें तो मार्केट में रुपये की अधिकता या कमी को मैनेज किया जा सकेगा। डिजिटल करेंसी पर सरकार की नजर होने से इसकी ट्रैकिंग की जा सकती है और भ्रष्टाचार, आतंकवादी संगठन और गलत हाथों में जाने से इसे रोका जा सकता है।

डिजिटल करेंसी की चुनौतियां

हालांकि, डिजिटल करेंसी को लेकर कुछ चिंताएं और चुनौतियां भी हैं। डिजिटल करेंसी के साथ साइबर सुरक्षा और डिजिटल धोखाधड़ी एक बड़ी चुनौती हैं। इससे निपटने के लिए मजबूत सुरक्षा ढांचे के साथ दूसरे जरूरी उपाय करने की जरूरत है। एक अन्य चुनौति इसके यूजर्स की गोपनीयता से जुड़ी है। चूकि जो संचालक होगा वही डिजिटल पहचान पत्र एकत्र करने और प्रसारित करने के लिए जिम्मेदार है। ऐसे में उपयोगकर्ताओं की जानकारियों को गोपनीय रखना एक चुनौती होगी। एक बड़ी चुनौती अपराधियों द्वारा सूचनाओं को हैक करना और इसके दुरुपयोग से रोकना भी है। इसके साथ ही डिजिटल मुद्रा से जुड़े कानून और नियामक प्रक्रिया को कड़ा बनाना काफी जरूरी है। जैसे कोई नागरिक कितना सीबीडीसी खरीद सकता है। अगर लोगों ने बैंकों से बहुत अधिक पैसा निकाल लिया और सीबीडीसी खरीद लिया तो बैंकों पर दबाव बढ़ सकता है। एक सवाल ये भी है कि क्या डिजिटल मुद्रा को दूसरे देशों में इस्तेमाल और विनियमित किया जा सकता है। डिजिटल करेंसी की राह में साक्षरता भी एक बाधा है।

सीबीडीसी को लाने के लिए कानूनी बदलाव की भी जरूरत पड़ सकती है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत मौजूदा प्रावधान मुद्रा के भौतिक रूप को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं। इसके परिणामस्वरूप सिक्का अधिनियम, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम यानी फेमा और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम आदि में भी संशोधन की जरूरत पड़ सकती है।

क्या है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी?

सरकार ने डिजिटल करेंसी को ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी और अन्य टेक्नोलॉजी के जरिए पेश करने की बात कही है। ऐसे में यह भी जानना जरूरी है कि ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी है क्या? दरअसल, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी को बेहद सुरक्षित माना जाता है। इस तकनीक में हर ब्लॉक एन्क्रिप्टेड यानी कूट भाषा से जाने जाते हैं और एक-दूसरे से इलेक्ट्रॉनिक रूप से जुड़े होते हैं। इसमें बैंक और बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाती है और पीअर टू पीअर (Peer to Peer) यानी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सीधे ट्रांजैक्शन हो जाता है। ब्लॉकचेन दरअसल एक Distributed ledger या डेटा बेस है, जिसकी जानकारी लेनदेन से जुड़े हर नोड या कम्प्यूटर या इंसान तक होती है। आमतौर पर बही खाते या रजिस्टर में दर्ज जानकारियां सिर्फ बैंक के पास होती हैं, लेकिन ब्लॉकचेन तकनीक में लेनदेन से जुड़ी हर जानकारी उससे जुड़े नोड्स या यूजर्स के पास होती है। लेकिन कोई भी लेनदेन तब ही मुमकीन होता है, जब चेन से जुड़े लोग ऐसा करने की अनुमति दें। इस तरह यह जानकारी सबसे लिए सार्वजनिक होते हुए भी बेहद गोपनीय रहती है। इसे तरह से समझा जा सकता है कि...

मान लीजिए कुछ लोगों का ग्रुप आपस में मिलकर व्यापार करता है और इस ग्रुप में से राम नाम का व्यापारी श्याम नाम के व्यापारी को कुछ पैसा या क्रिप्टो करेंसी भेजना चाहता है। इसके लिए राम और श्याम नोड्स के जरिए जुड़ेंगे। राम, श्याम को करेंसी का ट्रांसफर जैसे ही करेगा, वो ट्रांजैक्शन ब्लॉक में दर्ज हो जाएगा। ब्लॉक में दर्ज हुई जानकारी सभी लोगों तक पारदर्शी तरीके से पहुंच जाएगी लेकिन मामला यहीं तक सीमित नहीं होगा। अब ये ट्रांजैक्शन सही है कि नहीं, इसे चेक करने के लिए इसे वैलिडेट या मंजूर किया जाएगा। लेनदेन का सत्यापन होने के बाद उसकी जानकारी हमेशा- हमेशा के लिए ब्लॉक में दर्ज हो जाएगी और आखिर में यह ब्लॉक लेनदेन के दूसरे ब्लॉक के साथ जुड़ जाएगा। और यही है ब्लॉक चेन। ब्लॉक चेन के जुड़ जाने से राम का भेजा हुआ पैसा आखिरकार श्याम को मिल जाएगा।

ट्रांजैक्शन को पूरा करने के लिए ब्लॉक को सॉल्व करना बेहद जरूरी होता है, लेकिन इसमें एक बहुत ही जटिल गणितीय प्रणाली होती है जिसे प्रूव करने के लिए आपको लाखों कैलकुलेशन प्रति सेकेंड करने पड़ते हैं। उसके बाद ही यह ट्रांजैक्शन कंफर्म होता है। इसीलिए इसे बेहद सुरक्षित माना जाता है।  ब्लॉकचेन तकनीक में सिर्फ करेंसी का ही निर्माण नहीं होता है, बल्कि यहां किसी भी चीज को डिजिटल बनाकर उसका रिकॉर्ड रख सकते हैं।

डिजिटल करेंसी, ब्लॉकचेन और क्रिप्टोकरेंसी की शुरुआत

डिजिटल करेंसी की बात करें तो 1980 के दशक में डिजिटल करेंसी पर विचार शुरू हुई और 1989 में डेविड चॉम ने सबसे पहले इंटरनेट करेंसी ‘डिजी कैश’ की शुरुआत की। वहीं, ब्लॉकचेन तकनीक का सबसे पहले इस्तेमाल 1991 में हुआ, जब Stuart Haber and W. Scott Stornetta ने इस डिजिटल डॉक्यूमेंटस को टाइमस्टैम्प करने के लिए यूज किया था। इसी ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर 2009 में जापान के सतोशी नाकामोतो ने क्रिप्टोकरेंसी Bitcoin का आविष्कार किया। इसके बाद सैकड़ों क्रिप्टोकरेंसी का इजाद हो चुका है, जो ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित हैं। हालांकि बिटक्वाइन या अन्य क्रिप्टोकरेंसियों के जरिए सिर्फ कुछ चीजें बेंची या खरीदी जा सकती हैं। ये डिजिटल करेंसी नहीं हैं क्योंकि असल दुनिया में इनका कोई वैल्यू नहीं है, और इन्हें कैश नहीं किया जा सकता।

डिजिटल करेंसी और क्रिप्टोकरेंसी में अंतर

बिटक्वाइन या अन्य क्रिप्टोकरेंसी का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं हैं, क्योंकि इसका मुद्रण नहीं किया जा सकता है। साथ ही इसको कंट्रोल करने के लिए कोई देश, सरकार या संस्था भी नहीं है। इस वजह से इसकी कीमत कभी बहुत ज्यादा होती है, तो कभी उसमें भारी गिरावट होती है। बिटकॉइन के ज़रिए ड्रग्स, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद जैसी गतिविधियों को तेजी से फ़ैलाया जा सकता है। 2021 में अमेरिका की एक तेल कंपनी के कम्प्यूटरों को हैकरों ने हैक कर लिया था, और उसे ठीक करने के लिए भारी मात्रा में क्रिप्टो करेंसी की मांग की। इससे पहले रैनसमवेयर साइबर हमला हुआ था तब भी हैकर्स ने बिटक्वाइन में ही भुगतान मांगा था।

डिजिटल करेंसी लॉन्च करने के लिए दुनिया भर में पहल

यही वजह है कि भारत समेत दुनिया के अनेक देशों के केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी जारी करने की मांग कुछ समय से कर रहे थे। ताकि डिजिटल करेंसी के रूप में बिटक्वॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी का विकल्प तैयार किया जा सके। Bank of International Settlements के मुताबिक दिसंबर 2021 तक दुनिया के करीब 87 देश CBDC यानी डिजिटल करेंसी पर काम कर रहे हैं। बहामास, नाइजीरिया समेत 9 देश तो पूरी तरह से डिजिटल मुद्रा लॉन्च कर चुके हैं। वहीं, चीन और दक्षिण कोरिया समेत 14 देश अपना सीबीडीसी लॉन्च करने को लेकर पायलट प्रोजेक्ट चला रहे हैं। कनाडा, जापान, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ-साथ यूरोपीय यूनियन भी बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के साथ मिलकर डिजिटल करेंसी पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा दुनिया के अनेक देश डिजिटल करेंसी लाने की संभावनाओं की तलाश में जुटे हुए हैं।

डिजिटल करेंसी को लेकर अच्छी बात यह है कि य़ह एक लिगल टेंडर की तरह काम करेगा, लेकिन इसे लेकर अभी भी काफी सारे काम करने की जरूरत पड़ सकती है। मसलन डिजिटल मुद्रा से जुड़े कानून और नियामक प्रक्रिया क्या होगी... साथ ही मुद्रा से जुड़े मौजूदा अधिनियमों में किस तरह की बदलाव की जरूरत पड़ेगी। टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन से जुड़ी चुनौतियों के साथ ही फाइनेंशियल स्टेबिलिटी, डिजाइन प्लान और लागू करने की प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी भी लोगों को देनी होगी, ताकि बिना किसी बाधा के आम लोग आसानी से इसका इस्तेमाल कर सकें।

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