परमाणु हमले के लिए हिरोशिमा और नागासाकी को ही क्यों चुना गया? दुनिया का पहला परमाणु हमला और बर्बादी की कहानी...
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान पर गिराए गए परमाणु बम की भयावह घटना को कोई कैसे भूल सकता। दुनिया के इतिहास में घटे इस सबसे बड़ी युद्ध त्रासदी ने पलक झपकते ही दो हंसते-खेलते शहरों को मिट्टी में मिला दिया, बर्बादी की ऐसी पराकाष्ठा लिखी दी, जो न कभी हुआ था और ना ही उसकी कल्पना की जा सकती थी। सात दशक से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद, आज भी हिरोशिमा और नागासाकी के लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं उस घटना को याद कर। इस परमाणु हमले ने लाखों लोगों की जीवन को लील लिया। लाखों लोगों के जीवन को जिंदा नरक बना दिया। दरअसल इस वीभत्स हमले में जो मरे...वो बेहद दुखदायी तो था ही...लेकिन असल दुर्भाग्य तो उन लोगों और पीढ़ियों का शुरू हुआ जो इसमें बच गए, जख्मों औ परमाणु विकिरण से तिल-तिल मरने के लिए।
हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले की वजह
वह दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम चरण का दौर था... अमेरिका के नेतृत्व में मित्र राष्ट्रों ने धुरी राष्ट्र जिसमें जर्मनी, इटली और जापान शामिल थे... उनको लगभग हरा दिया था। जर्मनी ने मई 1945 में हार स्वीकार करते हुए बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था। जर्मनी के आत्मसमर्पण के बाद युद्ध करीब-करीब खत्म हो चुका था, लेकिन पश्चिमी प्रशांत सागर क्षेत्र में कब्जा जमाने के बाद जापान प्रशांत क्षेत्र में लगातार युद्ध जारी रखे हुए था। हालांकि वह कई मोर्चों पर अमेरिका से हारने के बावजूद आत्मसमर्पण करने को तैयार नहीं था। मित्र राष्ट्रों के लिए पूरी तरह से युद्ध जीतने के लिए यह जरूरी था कि जापान आत्मसमर्पण करे... जो इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं था। अमेरिका के लिए यह नाक का सवाल बन गया था। उसे दो तरफ से नुकसान हो रहा था। एक तरफ जापानियों के हाथों पर्ल हार्बर खोने का दर्द तो दूसरी तरफ प्रशांत क्षेत्र में जापान से युद्ध में लगातार हो रही जन-धन की हानी।
इन्ही हालातों में अप्रैल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैरी एस ट्रूमैन ने एक ऐसी योजना बनाई जो इससे पहले इतिहास में कभी नहीं हुआ था। जिसके दुष्परिणामों को मानव ने न कभी देखा था और न ही इसकी कल्पना की थी। वह खतरनाक योजना थी जापान पर परमाणु बम से हमला।
जापान को सबक सिखाने के साथ ही सोवियत संघ को दिखानी थी अमेरिकी ताकत
हालांकि कुछ हद तक परमाणु बम गिराने का मकसद सिर्फ जापान को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करना ही नहीं था, बल्कि जर्मनी को हराने के बाद एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहे सोवियत संघ से आगे निकलने की होड़ में शक्ति प्रदर्शन करना भी शामिल था।
कैसे तैयार हुआ दुनिया का पहला परमाणु बम?
उस समय दुनिया में सिर्फ दो ही परमाणु बम मौजूद थे जो अमेरिका के पास था। जिसे मैनहट्टन प्रोजेक्ट के नाम से एक गुप्त मिशन के तहत करीब तीन साल तक एक लाख तीस हजार लोगों की मेहनत और आज के हिसाब से करीब 25 बिलियन डॉलर खर्च करने के बाद तैयार किया गया था। 16 जुलाई 1945 को अमेरिका ने इसमें से एक परमाणु बम जिसका कोड नाम ‘द गैजेट’ था, उसका न्यू मेक्सिको में ‘ट्रिनिटी’ कोड नाम से परीक्षण किया था। यह दुनिया का पहला परमाणु बम परीक्षण था। हालांकि बाद में इस बम का नाम बदलकर ‘फैट मैन’ रख दिया गया। इस परीक्षण के ठीक 21 दिन और 24 दिन बाद यानी 6 अगस्त और 9 अगस्त को 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर ये बम कहर बन कर गिरे।
दरअसल जापान पर परमाणु बम गिराने की तैयारी मई 1945 से ही शुरू हो गई थी। किस शहर पर गिराया जाए, इसका चुनाव करने के लिए अमेरिका में एक ‘टारगेट कमेटी’ का गठन किया गया था। टारगेट कमेटी ने पांच शहरों का चुनाव किया था। जिनमें योकोहामा, क्योटो, हिरोशिमा, कोकुरा और निगाटा शामिल थे।
हिरोशिमा को ही क्यों चुना गया?
बम गिराने के लिए जापानी शहर का चुनाव बेहद रणनीतिक तरीके से किया गया। इसके लिए ऐसा शहर चुना गया, जहाँ पहले से बमबारी की वजह से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ हो ताकि बमबारी से होने वाले नुकसान की तस्वीर ली जा सके। ट्रूमेन चाहते थे कि शहर ऐसा हो जहां सैन्य उत्पादन ज्यादा होता हो ताकि उसे भी नष्ट किया जा सके और वो जापानी संस्कृति का हिस्सा रहा हो। इन सभी लिहाज से हिरोशिमा काफी मुफीद था जो एक प्रमुख बंदरगाह होने के साथ ही एक सैन्य मुख्यालय भी था और जापान का सातवां सबसे बड़ा शहर भी।
इस सभी कारणों को देखते हुए 2 अगस्त 1945 को परमाणु हमले के लिए सबसे पहले हिरोशिमा का चुनाव किया गया... और बम गिराने का टारगेट तय हुआ 6 अगस्त 1945...
चेतावनी और बम गिराने का फैसला
हालांकि परमाणु बम गिराने से पहले मित्र राष्ट्रों की ओर से जुलाई 1945 में पोस्ट डैम घोषणा पत्र जारी किया गया था, जिसमें जापान से तुरंत बिना शर्त आत्मसमर्पण करने की बात कही गई थी। साथ ही चेतावनी भी दी गई थी कि अगर जापान आत्मसमर्पण नहीं करेगा तो उसे ‘शीध्र और पूर्ण विनाश’ का सामना करना पड़ेगा।
जब जापानी सेना ने इस घोषणापत्र को मानने से इंकार कर दिया, तब अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने का अंतिम आधिकारिक आदेश जारी कर दिया।
क्या हुआ था 6 अगस्त 1945 को?
ट्रूमैन के आदेश के बाद 6 अगस्त 1945 को रात के करीब दो बजे अमेरिकी वायुसेना का बमवर्षक बी-29 विमान ‘एनोला गे’ परमाणु बम, जिसका नाम ‘लिटिल ब्वाय’ रखा गया था, उसे लेकर तिनियन द्वीप से हिरोशिमा के लिए उड़ान भरा। ‘लिटिल ब्वाय’ दस फीट लंबा और साढ़े चार टन वजनी और 20 हजार टन टीएनटी विस्फोटक के बराबर क्षमता वाला एक ऐसा बम था जो 5 किलोमीटर के दायरे के अंदर की सभी चीजों को पल भर में खत्म करने की ताकत रखता था।
हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने वाले अमेरिकी विमान ‘एनोला गे’ के पायलट दल के सदस्य थियोडोर ‘डच’ वैन किर्क ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि “जहाज पर बहुत ज्यादा मात्रा में विस्फोटक लदे होने के कारण इसके टेक ऑफ के दौरान दुर्घटना होने की आशंका थी। ऐसे में ‘एनोला गे’ को टेक ऑफ कराना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। तय हुआ कि परमाणु बम ‘लिटिल ब्वाय’ को पूरी तरह से फिट कर जहाज में नहीं रखा जाएगा। अगर टेक ऑफ के दौरान ही फट गया तो बम हिरोशिमा पर गिराने से पहले तिनियन द्वीप ही बर्बाद हो जाएगा। इस वजह से जब बी-29 टेक ऑफ कर गया तो दस हजार फीट की ऊंचाई पर जाने के बाद परमाणु बम को पूरी तरह से असेम्बल किया गया और हिरोशिमा के ऊपर तीस हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद बम को नीचे गिराया गया”।
6 अगस्त 1945 की सुबह हिरोशिमा के लोगों के लिए अन्य दिनों की सुबह जैसी ही थी। लोग अपनी दिनचर्या के काम में जुटने लगे थे। बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे। वहीं आम लोग दुकान और ऑफिस जाने के लिए घर से निकल चुके थे। ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा हो।
इन सब के बीच सुबह के सात बजे जापानी रडारों ने दक्षिण की ओर से आते अमेरिकी विमानों को देख लिया। चेतावनी के सायरन बज उठे और पूरे जापान में रेडियो कार्यक्रम रोक दिए गए। हालांकि कुछ ही देर में आसमान साफ हो गया और बमवर्षक जहाज गायब हो गए। लोगों को लगा कि सब कुछ सामान्य हो गया और फिर से वे अपने कामकाज में जुट गए।
सुबह 8 बजे एक बार फिर जापानी रडारों ने आसमान में 26 हजार फिट पर उड़ते अमेरिकी बमवर्षक जहाजों को ढूंढ लिया और एक बार फिर रेडियो से शहर वासियों को चेतावनी जारी की गई। लेकिन लोगों ने इसपर ध्यान नहीं दिया और अपने-अपने काम में लगे रहे।
पल भर में सब कुछ खत्म हो गया
ठीक 8 बजकर 15 मिनट पर बी-29 बॉम्बर ‘एनोला गे’ में मौजूद मेजर थॉमस फ्री बी ने हिरोशिमा के पास होनकावा और मोटोयासु नदियों के जंक्शन पर एक टी-आकार के पुल को लक्ष्य बनाकर ‘लिटिल ब्वाय’ को गिराया... बम को नीचे आने में पूरे 43 सेकेंड लगे। तेज हवाओं की वजह से बम अपने लक्ष्य से 250 मीटर दूर ‘शीमा सर्जिकल हॉस्पीटल’ के ऊपर जमीन से 19 सौ फीट की ऊंचाई पर फटा। इसकी शक्ति करीब 15 हजार टन टीएनटी के बराबर थी, और जब ये फटा तो ऐसा लगा मानो प्रलय आ गया।
हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने वाले अमेरिकी विमान ‘एनोला गे’ के पायलट दल के सदस्य थियोडोर ‘डच’ वैन किर्क के मुताबिक “बम को नीचे तक गिरने में 43 सेकेंड लगे। बम गिरने के बाद सबसे पहले हमें धुएं और गुबार का उजला गोला ऊपर उठते हुए दिखाई दिया। कुछ ही देर में हिरोशिमा आग के गोले में तब्दील हो चुका था”।
इसके फटने के बाद तापमान अचानक दस लाख डिग्री सेल्सिय तक पहुंच गया। करीब साढ़े आठ सौ फीट के घेरे में आग का गोला बन गया। 5 मील से ज्यादा दूर तक के प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इसकी चमक सूर्य से दस गुना अधिक थी। एक सेकेंड से भी कम समय में आग का गोला 9 सौ फीट तक फैल गया। 80 हजार से एक लाख 40 हजार लोग तो पल भर में मौत के मुंह में गए। एक लाख से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। विस्फोट की लहर ने दस मील दूर तक की खिड़कियों को चकनाचूर कर दिया और इसकी आवाज 37 मील तक महसूस की गई। हिरोशिमा की दो तिहाई से अधिक इमारतें नष्ट हो चुकी थीं। इस बम ने साढ़े चार मील की दूरी तक सबकुछ भस्म कर दिया था।
माई गॉड, ये हमने क्या कर दिया?
जब बम गिराने वाले जहाज ‘एनोला गे’ के चालक दल को आग की लपटें, धुएं के गुबार और धूल की वजह से ऊपर से हिरोशिमा दिखाई देना बंद हो गया, तब चालक दल के को-पायलट कैप्टन रॉबर्ट लुईस ने विचलित होते हुए कहा – माई गॉड, ये हमने क्या कर दिया?
बम गिरने के करीब आधे घंटे बाद हिरोशिमा के उत्तर-पश्चिम इलाकों में तेज बारिश शुरू हो गई। यह ‘काली बारिश’ गंदगी, धूल, कालिख और रेडियोएक्टिव कणों से भरी हुई थी जो विस्फोट से पैदा हुई आग के दौरान हवा में मिल गए थे। इसने उन इलाकों में भी प्रदूषण फैलाया जो विस्फोट से दूर थे।
कुछ ही देर में हरा-भरा हिरोशिमा शहर खंडहर में तब्दील हो चुका था। स्टील और कंक्रीट की इमारतें पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी। क्या इंसान, क्या जानवर, क्या प्रकृति... सब कुछ अमेरिकी परमाणु हमले की भेट चढ़ चुके थे।
‘हिबाकुशा’ की जुबानी, बर्बादी की कहानी
इस बमबारी में जीवित बचे लोगों को ‘हिबाकुशा’ कहा जाता है। इन हिबाकुशा यानी जीवित बचे लोगों की जिंदगी तो मौत से भी बदतर हो गई। उन्हें किसी भी तरह की प्राथमिक चिकित्सा नहीं मिल पाई, क्योंकि 90 फीसदी चिकित्सा कर्मी इस हमले में या तो मारे गए थे या विकलांग हो गए थे। जो थोड़ी बहुत चिकित्सा सुविधाएं मौजूद थी वो भी जल्दी ही खत्म हो गई। ऐसे में घायलों को उनके हालात पर छोड़ देने के लिए मजबूर होना पड़ा। परमाणु विकिरण की वजह से हजारों लोग वर्षों बाद तक तिल-तिल कर दम तोड़ते रहे। उन्हें मितली, अधिक रक्तस्राव, बालों के झड़ने से लेकर फ्लैश बर्न, ल्यूकेमिया, मोतियाबिंद, ट्यूमर के साथ कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा।
फादर जॉन जिमिश टोक्यो के एक विश्वविद्यालय में फिलॉसफी पढ़ाते थे। उन दिनों वे हिरोशिमा आए हुए थे। संजोग से वे इस हमले में बच गए। उन्होंने बाद में एक साक्षात्कार में बताया कि ‘जब बम गिरा तो वे अपने कमरे में बैठे हुए थे। खिड़की से बाहर उन्हें एक काफी चमकती हुई रोशनी दिखाई पड़ी। पहले तो कुछ समक्ष में नहीं आया लेकिन कुछ ही पल में कमरे की सारी खिड़कियां टूट चुकी थी। मकान का ज्यादातर हिस्सा इस बम के धमाके से बर्बाद हो चुका था। मेरे घर से सौ फीट की दूरी पर सारे मकान जल रहे थे। उन्होंने बहुत सारे गंभीर रूप से घायल लोगों की मदद करने की कोशिश की। लेकिन सब कुछ खत्म हो चुका था और चाह कर भी ज्यादा मदद नहीं कर पाए।
यैसे ही ‘यासुकी यामाशिता’ जो इस घटना में बच गए। बाद में उन्होंने बताया कि हमले के दौरान उनकी माँ उन्हें बचाने के लिए उन्हें जमीन पर लिटा कर खुद उनके ऊपर लेट गईं। उनके बहन के सिर खून बह रहा था लेकिन धुंए की वजह से उन लोगों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। उनकी बहन के सिर में शीशे के अनेक छोटे-छोटे टुकड़े धंसे हुए थे जो उनकी मां ने बाद में खुद ही निकाले और सिर से खून साफ किया।
नागासाकी पर बर्बादी का बम
मानव इतिहास के इस सबसे वीभत्स घटना के जख्म अभी भरे भी नहीं थे कि 72 घंटे बाद ही अमेरिका ने एक बार फिर जापान पर आसमान से मौत बरसा दी। इस बार बर्बाद होने वाला शहर था नागासाकी। हालांकि पहले से तय टारगेट था औद्योगिक नगर कोकुरा... जहां जापान की सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा गोला-बारूद बनाने वाली फैक्ट्रियां थीं। लेकिन शायद उसके लोग भाग्यशाली थे और नागासाकी के लोगों का भाग्य उनसे रूठा हुआ था।
मूल प्लान में यह बम 11 अगस्त 1945 को गिराना था लेकिन खराब मौसम की वजह से समय को कम कर 9 अगस्त का दिन तय कर दिया गया।
‘फैट मैन’ का कहर
9 अगस्त की सुबह बमवर्षक विमान ‘बोक्स कार’ के पायलट मेजर चार्ल्स स्वीनी जब सुबह ‘फैट मैन’ परमाणु बम लेकर कोकुरा पहुंचे, तो शहर के ऊपर बादलों और धुंए का कब्जा था और नीचे से विमान भेदी तोपें आग उगल रहीं थीं। विमान का ईंधन भी खत्म हो रहा था। ऐसे में मेजर स्वीनी ने जहाज को नागासाकी की तरफ मोड़ दिया। नागासाकी के ऊपर आसमान साफ था और ठीक दस बजकर 58 मिनट पर कैप्टन करमिट बिहम ने बम को नागासाकी के ऊपर गिरा दिया।
52 सेकेंड तक गिरते रहने के बाद बम नागासाकी शहर के ऊपर 18 सौ 40 फीट की ऊंचाई पर 22 हजार टन टीएनटी विस्फोट के बराबर बल से फटा।
कुदरत ने कम कर दिया नागासाकी के विनाश को
इसे नागासाकी की बदकिस्मती कहें या खुशकिस्मती कि लिटिल ब्वाय से बहुत ज्यादा शक्तिशाली और प्लूटोनियम इमप्लोजन टाइप ‘फैट बम’ नागासाकी शहर के पहाड़ों से घिरे होने की वजह से केवल सात किलोमीटर क्षेत्र में ही तबाही मचा पाया। अन्यथा इसकी तबाही का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। हिरोशिमा में जहां एक लाख 40 हजार लोग मारे गए वहीं नागासाकी में करीब 74 हजार लोगों ने अपनी जान गवाईं। बम ने तीन मील तक भीतर की सभी चीजों को खत्म कर दिया।
जापान का आत्मसमर्पण और दूसरे विश्वयुद्ध का अंत
जापान ने नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के पांच दिन बाद 14 अगस्त 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया। दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था लेकिन अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमला कर मानव इतिहास में एक ऐसी भीषण त्रासदी की इबारत लिख दी जिसे न कभी भूला जा सकता है और न ही मिटाया जा सकता है।
हिरोशिमा दिवस
हिरोशिमा के लोग हर साल अपने शहर पर गिराए गए परमाणु बम से हुए मानवीय संहार को ध्यान में रखते हुए 6 अगस्त को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं जिसे हिरोशिमा दिवस कहा जाता है। इस मौके पर लोग इकट्ठा होकर इस हमले में मारे गए लोगों की याद में प्रार्थना करते हैं। इस दिवस को परमाणु हथियारों के खतरे और परमाणु ऊर्जा के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी याद किया जाता है।
1945 में जापान पर हुए परमाणु हमले ने उसे दशकों पीछे धकेल दिया। परमाणु हमले का दर्द वर्षों तक रिस-रिस कर बाहर आता रहा। आज भी इसके दर्द और टिस को जापानी लोगों में महसूस किया जा सकता है। 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में प्रलय मचाने के बाद पूरी दुनिया को इस बम की विध्वंसकारी ताकत का अंदाजा हुआ... और तब से लेकर अब तक इसे खत्म करने और रोकने के प्रयास दुनिया भर में चल रहे हैं। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण की तमाम कोशिशों के बावजूद परमाणु हथियारों की होड़ से दुनिया को मुक्त नहीं किया जा सका है और 1945 में दो परमाणु बम से यह संख्या बढ़कर आज दुनिया भर में करीब साढ़े बारह हजार से ज्यादा हो गई है। इन घातक हथियारों से दुनिया को बचाने का एक ही रास्ता है और वो है इन्हें पूरी तरह से खत्म करना।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान पर गिराए गए परमाणु बम की भयावह घटना को कोई कैसे भूल सकता। दुनिया के इतिहास में घटे इस सबसे बड़ी युद्ध त्रासदी ने पलक झपकते ही दो हंसते-खेलते शहरों को मिट्टी में मिला दिया, बर्बादी की ऐसी पराकाष्ठा लिखी दी, जो न कभी हुआ था और ना ही उसकी कल्पना की जा सकती थी। सात दशक से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद, आज भी हिरोशिमा और नागासाकी के लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं उस घटना को याद कर। इस परमाणु हमले ने लाखों लोगों की जीवन को लील लिया। लाखों लोगों के जीवन को जिंदा नरक बना दिया। दरअसल इस वीभत्स हमले में जो मरे...वो बेहद दुखदायी तो था ही...लेकिन असल दुर्भाग्य तो उन लोगों और पीढ़ियों का शुरू हुआ जो इसमें बच गए, जख्मों औ परमाणु विकिरण से तिल-तिल मरने के लिए।
हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले की वजह
वह दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम चरण का दौर था... अमेरिका के नेतृत्व में मित्र राष्ट्रों ने धुरी राष्ट्र जिसमें जर्मनी, इटली और जापान शामिल थे... उनको लगभग हरा दिया था। जर्मनी ने मई 1945 में हार स्वीकार करते हुए बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था। जर्मनी के आत्मसमर्पण के बाद युद्ध करीब-करीब खत्म हो चुका था, लेकिन पश्चिमी प्रशांत सागर क्षेत्र में कब्जा जमाने के बाद जापान प्रशांत क्षेत्र में लगातार युद्ध जारी रखे हुए था। हालांकि वह कई मोर्चों पर अमेरिका से हारने के बावजूद आत्मसमर्पण करने को तैयार नहीं था। मित्र राष्ट्रों के लिए पूरी तरह से युद्ध जीतने के लिए यह जरूरी था कि जापान आत्मसमर्पण करे... जो इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं था। अमेरिका के लिए यह नाक का सवाल बन गया था। उसे दो तरफ से नुकसान हो रहा था। एक तरफ जापानियों के हाथों पर्ल हार्बर खोने का दर्द तो दूसरी तरफ प्रशांत क्षेत्र में जापान से युद्ध में लगातार हो रही जन-धन की हानी।
इन्ही हालातों में अप्रैल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैरी एस ट्रूमैन ने एक ऐसी योजना बनाई जो इससे पहले इतिहास में कभी नहीं हुआ था। जिसके दुष्परिणामों को मानव ने न कभी देखा था और न ही इसकी कल्पना की थी। वह खतरनाक योजना थी जापान पर परमाणु बम से हमला।
जापान को सबक सिखाने के साथ ही सोवियत संघ को दिखानी थी अमेरिकी ताकत
हालांकि कुछ हद तक परमाणु बम गिराने का मकसद सिर्फ जापान को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करना ही नहीं था, बल्कि जर्मनी को हराने के बाद एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहे सोवियत संघ से आगे निकलने की होड़ में शक्ति प्रदर्शन करना भी शामिल था।
कैसे तैयार हुआ दुनिया का पहला परमाणु बम?
उस समय दुनिया में सिर्फ दो ही परमाणु बम मौजूद थे जो अमेरिका के पास था। जिसे मैनहट्टन प्रोजेक्ट के नाम से एक गुप्त मिशन के तहत करीब तीन साल तक एक लाख तीस हजार लोगों की मेहनत और आज के हिसाब से करीब 25 बिलियन डॉलर खर्च करने के बाद तैयार किया गया था। 16 जुलाई 1945 को अमेरिका ने इसमें से एक परमाणु बम जिसका कोड नाम ‘द गैजेट’ था, उसका न्यू मेक्सिको में ‘ट्रिनिटी’ कोड नाम से परीक्षण किया था। यह दुनिया का पहला परमाणु बम परीक्षण था। हालांकि बाद में इस बम का नाम बदलकर ‘फैट मैन’ रख दिया गया। इस परीक्षण के ठीक 21 दिन और 24 दिन बाद यानी 6 अगस्त और 9 अगस्त को 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर ये बम कहर बन कर गिरे।
दरअसल जापान पर परमाणु बम गिराने की तैयारी मई 1945 से ही शुरू हो गई थी। किस शहर पर गिराया जाए, इसका चुनाव करने के लिए अमेरिका में एक ‘टारगेट कमेटी’ का गठन किया गया था। टारगेट कमेटी ने पांच शहरों का चुनाव किया था। जिनमें योकोहामा, क्योटो, हिरोशिमा, कोकुरा और निगाटा शामिल थे।
हिरोशिमा को ही क्यों चुना गया?
बम गिराने के लिए जापानी शहर का चुनाव बेहद रणनीतिक तरीके से किया गया। इसके लिए ऐसा शहर चुना गया, जहाँ पहले से बमबारी की वजह से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ हो ताकि बमबारी से होने वाले नुकसान की तस्वीर ली जा सके। ट्रूमेन चाहते थे कि शहर ऐसा हो जहां सैन्य उत्पादन ज्यादा होता हो ताकि उसे भी नष्ट किया जा सके और वो जापानी संस्कृति का हिस्सा रहा हो। इन सभी लिहाज से हिरोशिमा काफी मुफीद था जो एक प्रमुख बंदरगाह होने के साथ ही एक सैन्य मुख्यालय भी था और जापान का सातवां सबसे बड़ा शहर भी।
इस सभी कारणों को देखते हुए 2 अगस्त 1945 को परमाणु हमले के लिए सबसे पहले हिरोशिमा का चुनाव किया गया... और बम गिराने का टारगेट तय हुआ 6 अगस्त 1945...
चेतावनी और बम गिराने का फैसला
हालांकि परमाणु बम गिराने से पहले मित्र राष्ट्रों की ओर से जुलाई 1945 में पोस्ट डैम घोषणा पत्र जारी किया गया था, जिसमें जापान से तुरंत बिना शर्त आत्मसमर्पण करने की बात कही गई थी। साथ ही चेतावनी भी दी गई थी कि अगर जापान आत्मसमर्पण नहीं करेगा तो उसे ‘शीध्र और पूर्ण विनाश’ का सामना करना पड़ेगा।
जब जापानी सेना ने इस घोषणापत्र को मानने से इंकार कर दिया, तब अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने का अंतिम आधिकारिक आदेश जारी कर दिया।
क्या हुआ था 6 अगस्त 1945 को?
ट्रूमैन के आदेश के बाद 6 अगस्त 1945 को रात के करीब दो बजे अमेरिकी वायुसेना का बमवर्षक बी-29 विमान ‘एनोला गे’ परमाणु बम, जिसका नाम ‘लिटिल ब्वाय’ रखा गया था, उसे लेकर तिनियन द्वीप से हिरोशिमा के लिए उड़ान भरा। ‘लिटिल ब्वाय’ दस फीट लंबा और साढ़े चार टन वजनी और 20 हजार टन टीएनटी विस्फोटक के बराबर क्षमता वाला एक ऐसा बम था जो 5 किलोमीटर के दायरे के अंदर की सभी चीजों को पल भर में खत्म करने की ताकत रखता था।
हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने वाले अमेरिकी विमान ‘एनोला गे’ के पायलट दल के सदस्य थियोडोर ‘डच’ वैन किर्क ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि “जहाज पर बहुत ज्यादा मात्रा में विस्फोटक लदे होने के कारण इसके टेक ऑफ के दौरान दुर्घटना होने की आशंका थी। ऐसे में ‘एनोला गे’ को टेक ऑफ कराना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। तय हुआ कि परमाणु बम ‘लिटिल ब्वाय’ को पूरी तरह से फिट कर जहाज में नहीं रखा जाएगा। अगर टेक ऑफ के दौरान ही फट गया तो बम हिरोशिमा पर गिराने से पहले तिनियन द्वीप ही बर्बाद हो जाएगा। इस वजह से जब बी-29 टेक ऑफ कर गया तो दस हजार फीट की ऊंचाई पर जाने के बाद परमाणु बम को पूरी तरह से असेम्बल किया गया और हिरोशिमा के ऊपर तीस हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद बम को नीचे गिराया गया”।
6 अगस्त 1945 की सुबह हिरोशिमा के लोगों के लिए अन्य दिनों की सुबह जैसी ही थी। लोग अपनी दिनचर्या के काम में जुटने लगे थे। बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे। वहीं आम लोग दुकान और ऑफिस जाने के लिए घर से निकल चुके थे। ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा हो।
इन सब के बीच सुबह के सात बजे जापानी रडारों ने दक्षिण की ओर से आते अमेरिकी विमानों को देख लिया। चेतावनी के सायरन बज उठे और पूरे जापान में रेडियो कार्यक्रम रोक दिए गए। हालांकि कुछ ही देर में आसमान साफ हो गया और बमवर्षक जहाज गायब हो गए। लोगों को लगा कि सब कुछ सामान्य हो गया और फिर से वे अपने कामकाज में जुट गए।
सुबह 8 बजे एक बार फिर जापानी रडारों ने आसमान में 26 हजार फिट पर उड़ते अमेरिकी बमवर्षक जहाजों को ढूंढ लिया और एक बार फिर रेडियो से शहर वासियों को चेतावनी जारी की गई। लेकिन लोगों ने इसपर ध्यान नहीं दिया और अपने-अपने काम में लगे रहे।
पल भर में सब कुछ खत्म हो गया
ठीक 8 बजकर 15 मिनट पर बी-29 बॉम्बर ‘एनोला गे’ में मौजूद मेजर थॉमस फ्री बी ने हिरोशिमा के पास होनकावा और मोटोयासु नदियों के जंक्शन पर एक टी-आकार के पुल को लक्ष्य बनाकर ‘लिटिल ब्वाय’ को गिराया... बम को नीचे आने में पूरे 43 सेकेंड लगे। तेज हवाओं की वजह से बम अपने लक्ष्य से 250 मीटर दूर ‘शीमा सर्जिकल हॉस्पीटल’ के ऊपर जमीन से 19 सौ फीट की ऊंचाई पर फटा। इसकी शक्ति करीब 15 हजार टन टीएनटी के बराबर थी, और जब ये फटा तो ऐसा लगा मानो प्रलय आ गया।
हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने वाले अमेरिकी विमान ‘एनोला गे’ के पायलट दल के सदस्य थियोडोर ‘डच’ वैन किर्क के मुताबिक “बम को नीचे तक गिरने में 43 सेकेंड लगे। बम गिरने के बाद सबसे पहले हमें धुएं और गुबार का उजला गोला ऊपर उठते हुए दिखाई दिया। कुछ ही देर में हिरोशिमा आग के गोले में तब्दील हो चुका था”।
इसके फटने के बाद तापमान अचानक दस लाख डिग्री सेल्सिय तक पहुंच गया। करीब साढ़े आठ सौ फीट के घेरे में आग का गोला बन गया। 5 मील से ज्यादा दूर तक के प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इसकी चमक सूर्य से दस गुना अधिक थी। एक सेकेंड से भी कम समय में आग का गोला 9 सौ फीट तक फैल गया। 80 हजार से एक लाख 40 हजार लोग तो पल भर में मौत के मुंह में गए। एक लाख से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। विस्फोट की लहर ने दस मील दूर तक की खिड़कियों को चकनाचूर कर दिया और इसकी आवाज 37 मील तक महसूस की गई। हिरोशिमा की दो तिहाई से अधिक इमारतें नष्ट हो चुकी थीं। इस बम ने साढ़े चार मील की दूरी तक सबकुछ भस्म कर दिया था।
माई गॉड, ये हमने क्या कर दिया?
जब बम गिराने वाले जहाज ‘एनोला गे’ के चालक दल को आग की लपटें, धुएं के गुबार और धूल की वजह से ऊपर से हिरोशिमा दिखाई देना बंद हो गया, तब चालक दल के को-पायलट कैप्टन रॉबर्ट लुईस ने विचलित होते हुए कहा – माई गॉड, ये हमने क्या कर दिया?
बम गिरने के करीब आधे घंटे बाद हिरोशिमा के उत्तर-पश्चिम इलाकों में तेज बारिश शुरू हो गई। यह ‘काली बारिश’ गंदगी, धूल, कालिख और रेडियोएक्टिव कणों से भरी हुई थी जो विस्फोट से पैदा हुई आग के दौरान हवा में मिल गए थे। इसने उन इलाकों में भी प्रदूषण फैलाया जो विस्फोट से दूर थे।
कुछ ही देर में हरा-भरा हिरोशिमा शहर खंडहर में तब्दील हो चुका था। स्टील और कंक्रीट की इमारतें पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी। क्या इंसान, क्या जानवर, क्या प्रकृति... सब कुछ अमेरिकी परमाणु हमले की भेट चढ़ चुके थे।
‘हिबाकुशा’ की जुबानी, बर्बादी की कहानी
इस बमबारी में जीवित बचे लोगों को ‘हिबाकुशा’ कहा जाता है। इन हिबाकुशा यानी जीवित बचे लोगों की जिंदगी तो मौत से भी बदतर हो गई। उन्हें किसी भी तरह की प्राथमिक चिकित्सा नहीं मिल पाई, क्योंकि 90 फीसदी चिकित्सा कर्मी इस हमले में या तो मारे गए थे या विकलांग हो गए थे। जो थोड़ी बहुत चिकित्सा सुविधाएं मौजूद थी वो भी जल्दी ही खत्म हो गई। ऐसे में घायलों को उनके हालात पर छोड़ देने के लिए मजबूर होना पड़ा। परमाणु विकिरण की वजह से हजारों लोग वर्षों बाद तक तिल-तिल कर दम तोड़ते रहे। उन्हें मितली, अधिक रक्तस्राव, बालों के झड़ने से लेकर फ्लैश बर्न, ल्यूकेमिया, मोतियाबिंद, ट्यूमर के साथ कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा।
फादर जॉन जिमिश टोक्यो के एक विश्वविद्यालय में फिलॉसफी पढ़ाते थे। उन दिनों वे हिरोशिमा आए हुए थे। संजोग से वे इस हमले में बच गए। उन्होंने बाद में एक साक्षात्कार में बताया कि ‘जब बम गिरा तो वे अपने कमरे में बैठे हुए थे। खिड़की से बाहर उन्हें एक काफी चमकती हुई रोशनी दिखाई पड़ी। पहले तो कुछ समक्ष में नहीं आया लेकिन कुछ ही पल में कमरे की सारी खिड़कियां टूट चुकी थी। मकान का ज्यादातर हिस्सा इस बम के धमाके से बर्बाद हो चुका था। मेरे घर से सौ फीट की दूरी पर सारे मकान जल रहे थे। उन्होंने बहुत सारे गंभीर रूप से घायल लोगों की मदद करने की कोशिश की। लेकिन सब कुछ खत्म हो चुका था और चाह कर भी ज्यादा मदद नहीं कर पाए।
यैसे ही 'यासुकी यामाशिता’ जो इस घटना में बच गए। बाद में उन्होंने बताया कि हमले के दौरान उनकी माँ उन्हें बचाने के लिए उन्हें जमीन पर लिटा कर खुद उनके ऊपर लेट गईं। उनके बहन के सिर खून बह रहा था लेकिन धुंए की वजह से उन लोगों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। उनकी बहन के सिर में शीशे के अनेक छोटे-छोटे टुकड़े धंसे हुए थे जो उनकी मां ने बाद में खुद ही निकाले और सिर से खून साफ किया।
नागासाकी पर बर्बादी का बम
मानव इतिहास के इस सबसे वीभत्स घटना के जख्म अभी भरे भी नहीं थे कि 72 घंटे बाद ही अमेरिका ने एक बार फिर जापान पर आसमान से मौत बरसा दी। इस बार बर्बाद होने वाला शहर था नागासाकी। हालांकि पहले से तय टारगेट था औद्योगिक नगर कोकुरा... जहां जापान की सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा गोला-बारूद बनाने वाली फैक्ट्रियां थीं। लेकिन शायद उसके लोग भाग्यशाली थे और नागासाकी के लोगों का भाग्य उनसे रूठा हुआ था।
मूल प्लान में यह बम 11 अगस्त 1945 को गिराना था लेकिन खराब मौसम की वजह से समय को कम कर 9 अगस्त का दिन तय कर दिया गया।
‘फैट मैन’ का कहर
9 अगस्त की सुबह बमवर्षक विमान ‘बोक्स कार’ के पायलट मेजर चार्ल्स स्वीनी जब सुबह ‘फैट मैन’ परमाणु बम लेकर कोकुरा पहुंचे, तो शहर के ऊपर बादलों और धुंए का कब्जा था और नीचे से विमान भेदी तोपें आग उगल रहीं थीं। विमान का ईंधन भी खत्म हो रहा था। ऐसे में मेजर स्वीनी ने जहाज को नागासाकी की तरफ मोड़ दिया। नागासाकी के ऊपर आसमान साफ था और ठीक दस बजकर 58 मिनट पर कैप्टन करमिट बिहम ने बम को नागासाकी के ऊपर गिरा दिया।
52 सेकेंड तक गिरते रहने के बाद बम नागासाकी शहर के ऊपर 18 सौ 40 फीट की ऊंचाई पर 22 हजार टन टीएनटी विस्फोट के बराबर बल से फटा।
कुदरत ने कम कर दिया नागासाकी के विनाश को
इसे नागासाकी की बदकिस्मती कहें या खुशकिस्मती कि लिटिल ब्वाय से बहुत ज्यादा शक्तिशाली और प्लूटोनियम इमप्लोजन टाइप ‘फैट बम’ नागासाकी शहर के पहाड़ों से घिरे होने की वजह से केवल सात किलोमीटर क्षेत्र में ही तबाही मचा पाया। अन्यथा इसकी तबाही का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। हिरोशिमा में जहां एक लाख 40 हजार लोग मारे गए वहीं नागासाकी में करीब 74 हजार लोगों ने अपनी जान गवाईं। बम ने तीन मील तक भीतर की सभी चीजों को खत्म कर दिया।
जापान का आत्मसमर्पण और दूसरे विश्वयुद्ध का अंत
जापान ने नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के पांच दिन बाद 14 अगस्त 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया। दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था लेकिन अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमला कर मानव इतिहास में एक ऐसी भीषण त्रासदी की इबारत लिख दी जिसे न कभी भूला जा सकता है और न ही मिटाया जा सकता है।
हिरोशिमा दिवस
हिरोशिमा के लोग हर साल अपने शहर पर गिराए गए परमाणु बम से हुए मानवीय संहार को ध्यान में रखते हुए 6 अगस्त को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं जिसे हिरोशिमा दिवस कहा जाता है। इस मौके पर लोग इकट्ठा होकर इस हमले में मारे गए लोगों की याद में प्रार्थना करते हैं। इस दिवस को परमाणु हथियारों के खतरे और परमाणु ऊर्जा के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी याद किया जाता है।
1945 में जापान पर हुए परमाणु हमले ने उसे दशकों पीछे धकेल दिया। परमाणु हमले का दर्द वर्षों तक रिस-रिस कर बाहर आता रहा। आज भी इसके दर्द और टिस को जापानी लोगों में महसूस किया जा सकता है। 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में प्रलय मचाने के बाद पूरी दुनिया को इस बम की विध्वंसकारी ताकत का अंदाजा हुआ... और तब से लेकर अब तक इसे खत्म करने और रोकने के प्रयास दुनिया भर में चल रहे हैं। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण की तमाम कोशिशों के बावजूद परमाणु हथियारों की होड़ से दुनिया को मुक्त नहीं किया जा सका है और 1945 में दो परमाणु बम से यह संख्या बढ़कर आज दुनिया भर में करीब साढ़े बारह हजार से ज्यादा हो गई है। इन घातक हथियारों से दुनिया को बचाने का एक ही रास्ता है और वो है इन्हें पूरी तरह से खत्म करना।