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रूस-यूक्रेन युद्ध: भाग-4, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले आर्थिक प्रभाव

Russia Ukraine Crisis Part4

रूस-यूक्रेन युद्ध सीरीज के तीसरे भाग में हमने बात की थी कि, नाटो क्या है, और रूस-यूक्रेन विवाद में नाटो की भूमिका कितनी बड़ी है? साथ ही हमने रूस-यूक्रेन की सैन्य क्षमता के साथ ही परमाणु हथियारों की चर्चा भी की थी। रूस-यूक्रेन युद्ध सीरीज के चौथे भाग में हम चर्चा करेंगे... रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर की। युद्ध न सिर्फ मानवीय त्रासदी के कारण बनते हैं, बल्कि आर्थिक बर्बादी भी लाते हैं। और खासकर तब, जब खुली अर्थव्यवस्था और ग्लोबल विलेज की वैश्विक संकल्पना के साथ दुनिया के हर देश व्यापार और कारोबार के जरिए एक दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हों। ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ना लाजिमी है।

रूस और यूक्रेन की अर्थव्यवस्था की तुलना

रूस और यूक्रेन यूरोप के दो बड़े देश हैं। अगर क्षेत्रफल के हिसाब से बात करें तो रूस क्षेत्रफल में यूक्रेन से 28 गुना बड़ा है और अमेरिका से करीब दोगुना। अगर भारत से तुलना करें तो रूस भारत से पांच गुना बड़ा है, जबकि यूक्रेन भारत से पांच गुना छोटा। वहीं, अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी रूस यूक्रेन से काफी आगे है। रूस की अर्थव्यवस्था यूक्रेन से करीब दस गुना ज्यादा बड़ी है। रूस की सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी जहाँ 1.7 ट्रिलियन डॉलर की है, तो यूक्रेन की जीडीपी 130 अरब डॉलर के आसपास। यूक्रेन का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद करीब तीन हजार डॉलर है। जबकि रूस का यूक्रेन से चार गुणा ज्यादा यानी करीब साढ़े ग्यारह हजार डॉलर है। साल 2021 में यूक्रेन की मुद्रास्फीति की दर दस फीसदी रही। वहीं, रूस की मुद्रास्फीति की दर करीब साढ़े आठ फीसदी ही थी।

रूस की अर्थव्यवस्था में गिरावट

हालांकि, 2014 के बाद से रूसी अर्थव्यवस्था की रफ्तार में कमी आई। इस कमी की वजह बना 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जे के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा रूस पर लगाया गया आर्थिक प्रतिबंध। 2014 के बाद यूरोपीय संघ के पूंजी बाजारों तक रूस की पहुँच को रोक कर दिया गया। रूस से हथियार और उससे जुड़ी सामग्री के आयात और निर्यात पर रोक लगा दी गई। सैन्य उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं और प्रौद्योगिकी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। रूस के सागर क्षेत्र में गहरे पानी में तेल की खोज और उत्पादन के साथ ही शेल ऑयल की खोज और उत्पादन पर भी अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रोक लगा दी। इससे रूस की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुँचा। इन सब की वजह से रूस की जीडीपी 2013 के 2.3 ट्रिलियन डॉलर के मुकाबले घटकर 2021 में 1.7 ट्रिलियन डॉलर रह गई।  

रूस-यूक्रेन के बीच व्यापार

वहीं, 2014 में क्रीमिया और डोनबास विवाद के बाद से यूक्रेन को भी काफी आर्थिक खामियाजा भुगतना पड़ा है। क्रीमिया युद्ध से पहले 2013 में यूक्रेन-रूस के बीच 40 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ, वहीं 2019 में यह घटकर मात्र 11 बिलियन डॉलर रह गया। 2013 में यूक्रेन के विदेशी व्यापार में रूस की हिस्सेदारी 27 फीसदी थी, जो 2019 में घटकर केवल 9 फीसदी रह गई। और 2019 में 12 फीसदी हिस्सेदारी के साथ चीन पहली बार रूस की तुलना में यूक्रेन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। वर्तमान में यूक्रेन के व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 13 फीसदी से ज्यादा है। 2013 में यूक्रेन रूस का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था जो 2019 में घटकर 15वें स्थान पर चला गया।

रूस और पश्चिमी देशों के बीच व्यापार

इन सब के बीच अमेरिका 20.9 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी के साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बना हुआ है। इसकी तुलना में रूस की 1.7 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी वाली अर्थव्यवस्था कहीं नहीं टिकती है। यहाँ तक कि जीडीपी के मामले में रूस... ब्रिटेन, इटली और फ्रांस से भी पीछे है। लेकिन अमेरिका जहाँ यूरोप से 6 हजार किलोमीटर दूर रूस-यूक्रेन युद्ध के आर्थिक परिणाम से लगभग अछूता रहने वाला है, वहीं यूरोप इससे बुरी तरह प्रभावित होगा। क्योंकि रूस यूरोपीय संघ का पांचवा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। साथ ही ऊर्जा का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता भी। जबकि अमेरिका इस मामले में शीर्ष तीस देशों में भी बमुश्किल आता है। 2021 में यूरोपीय संघ ने जहाँ 104 बिलियन डॉलर का निर्यात रूस को किया। वहीं रूस से 178 बिलियन डॉलर के करीब आयात किया। इससे व्यापार के मामले में यूरोपीय संघ की निर्भरता रूस पर साफ जाहिर होती है।

प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है रूस

विशाल प्राकृतिक संसाधनों खासकर तेल और प्राकृतिक गैस के साथ ही रूस यूरोप की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वहीं, जीडीपी के हिसाब से दुनिया की ग्यारहवीं और क्रय शक्ति के आधार पर छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। रूस, अमेरिका और सऊदी अरब के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। साथ ही प्राकृतिक गैस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक। रूस के पास दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार, दूसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार और आठवां सबसे बड़ा कच्चे तेल का भंडार है। इसके साथ ही रूस स्टील और प्राथमिक एल्युमिनियम जैसी धातुओं का शीर्ष निर्यातक भी है। ऐसे में रूस पर लगने वाले आर्थिक प्रतिबंध से न केवल रूस प्रभावित होगा बल्कि दुनिया के अन्य देश भी इससे अछूते नहीं रह पायेंगे।

रूस-यूक्रेन युद्ध से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में इस युद्ध का सबसे ज्यादा असर ऊर्जा क्षेत्र पर पड़ने की आशंका है। युद्ध के कारण अगर काला सागर क्षेत्र से आवागमन और परिवहन में किसी भी तरह की रुकावट आती है, तो दुनिया भर में अनाज और ईंधन की कीमतें भूचाल खड़ा कर सकती हैं। इसका प्रभाव गेंहू और ऊर्जा की कीमतों के साथ ही इस क्षेत्र के सॉवरेन बांड से लेकर सुरक्षित-संपत्ति और शेयर बाजार तक महसूस किया जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक इस युद्ध में प्रतिदिन रूस का खर्चा करीब 20 बिलियन डॉलर है, जो लक्जेमबर्ग, स्लोवेनिया और ओमान जैसे देशों के कुल जीडीपी से भी ज्यादा है। ऐसे में यह युद्ध जितना लंबा चलेगा उसके दुष्परिणाम रूस समेत दुनिया की अर्थव्यवस्था पर उतने ही गंभीर देखने को मिलेंगे। इससे वैश्विक कारोबार, पूंजी प्रवाह, वित्तीय बाजार, और तकनीकी पहुंच को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा। इस स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था भी अछूती नहीं रह पाएगी।

ऊर्जा के लिए रूस पर निर्भर हैं यूरोपीय देश

रूस में उपलब्ध प्रचुर ऊर्जा संसाधन यूरोपीय देशों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। क्योंकि, ऊर्जा संसाधनों के लिए यूरोपीय देशों की निर्भरता रूस पर ही है। यूरोपीय देशों में आयात होने वाली कुल प्राकृतिक गैस का 35 फीसदी हिस्सा अकेले रूस पूरा करता है, जो पाइपलाइन के सहारे यूक्रेन, बेलारूस और पोलैंड के जरिए जर्मनी और यूरोप तक जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि रूस के 70 फीसदी से ज्यादा गैस भंडार पर सरकारी ऊर्जा कंपनी गैजप्रोम का मालिकाना हक है। अगर इस गैस सप्लाई पर प्रतिबंध लगता है, तो यूरोप को होने वाली गैस आपूर्ति पूरी तरह से बाधित हो सकती है। इससे पूरे यूरोप में ऊर्जा संकट पैदा हो जाएगा। वहीं, इन सब के बीच अमेरिका को काफी फायदा मिल सकता है, क्योंकि उस स्थिति में वह यूरोप को अपने मनमानी की कीमत पर गैस सप्लाई करेगा।

युद्ध से रूस को होने वाले आर्थिक नुकसान

रूस पर अमेरिका, पश्चिमी यूरोपीय देश समेत अनेक वैश्विक संगठन तमाम तरह के प्रतिबंध लगा चुके हैं। इससे रूस को भी काफी आर्थिक नुकसान होगा। जर्मनी ने रूस के प्रस्तावित गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम-2 परियोजना को फिलहाल बंद करने का फैसला किया है। करीब बारह सौ किलोमीटर लंबी यह गैस पाइपलाइन बाल्टिक सागर से होते हुए पश्चिमी रूस से उत्तर-पूर्वी जर्मनी तक जाती है। इसके जरिए रूस से जर्मनी जाने वाली प्राकृतिक गैस की सप्लाई को दोगुना करने का लक्ष्य था। अभी रूस से जर्मनी जाने वाली गैस नॉर्ड स्ट्रीम-1 पाइपलाइन से होकर जाती है, जिसे 2011 में बनाया गया था। यह रूस के लेनिनग्राद में वायबोर्ग से जर्मनी के ग्रिफ्सवाल्ड के पास लुम्बिन तक जाती है। नॉर्ड स्ट्रीम-2 के जरिए जर्मनी को हर साल 55 अरब घन मीटर गैस की सप्लाई हो सकेगी। यह परियोजना 2021 में पूरी हो गई, लेकिन यूरोपीय नियामको से मंजूरी नहीं मिलने के कारण चालू नहीं हो पाई। इस परियोजना के रूक जाने से रूस और जर्मनी दोनों की मुश्किलें बढ़ जाएगी। यह पाइपलाइन रूस की विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसका विरोध अमेरिका, यूक्रेन और पोलैंड समेत कई देश पहले से कर रहे थे। यहीं नहीं, वर्तमान स्थिति को देखते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ ने रूस के वित्तीय संस्थानों, बैंकों और रूस को मिलने वाले ऋण पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उसका भी रूस की अर्थव्यवस्था पर काफी गंभीर असर पड़ेगा।

इन सब के बीच अमेरिका ने रूस से कच्चे तेल, कई पेट्रोलियम उत्पाद समेत नेचुरल गैस और कोयले के आयात पर रोक लगा दी है। ब्रिटेन ने भी ऐलान कर दिया है कि साल 2022 के अंत तक वो रूस से तेल खरीदना पूरी तरह बंद कर देगा। रूसी तेल निर्यात पर इस संभावित रोक के बीच अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। जिसकी वजह से महंगाई हर स्तर पर बढ़ जाएगी।

प्राकृतिक गैस आपूर्ति भी होगी बाधित

प्राकृतिक गैस के अलावा यूरोप की जरूरत का करीब 30 फीसदी कच्चे तेल का निर्यात भी अकेले रूस करता है। यूक्रेन, रूसी तेल को स्लोवाकिया, हंगरी और चेक गणराज्य में भेजता है। अगर यह सप्लाई रूकती है, तो पूरे यूरोप में ऊर्जा संकट पैदा हो जाएगा। ऐसी स्थिति में तेल बाजार भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। इससे वैश्विक मुद्रास्फीति काफी बढ़ जाएगी। आर्थिक विकास रुक जाएगा और वैश्विक स्तर पर बेरोजगारी बढ़ जाएगी।

खाद्यान्न संकट और मुद्रास्फीति बढ़ने की आशंका

रूस-यूक्रेन युद्ध से एक अन्य संकट अनाज और गेहूं की सप्लाई पर भी पड़ने की आशंका है। क्योंकि यूक्रेन, रूस, कजाकिस्तान और रोमानिया काला सागर के जरिए दुनिया भर में गेहूं और अन्य अनाज भेजते हैं। वैश्विक स्तर पर रूस अकेले 18 फीसदी से ज्यादा गेहूं का निर्यात करता है। जबकि रूस-यूक्रेन मिलकर दुनिया के करीब एक तिहाई गेहूं का निर्यात करते हैं। अफ्रीका के ज्यादातर देश गेहूं के लिए पूरी तरह से रूस और यूक्रेन पर निर्भर हैं। यहीं नहीं रूस-यूक्रेन मक्का और सूरजमुखी के तेल के प्रमुख आपूर्तिकर्ता भी हैं। ऐसे में अगर युद्ध की वजह से इनकी सप्लाई में रुकावट पैदा होगी तो इसका असर पूरी दुनिया को झेलना पड़ेगा। इससे खाद्यान्न की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी होगी और आगे चलकर खाद्य-ईंधन और मुद्रास्फीति पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा यूक्रेन के पास सेमीकंडक्टर बनाने में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ मिनरल का यूरोप में सबसे बड़ा भंडार है। जो अमेरिका समेत पूरी दुनिया को निर्यात करता है। अगर इसकी सप्लाई चेन टूटेगी तो वाहन उद्योग को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

आर्थिक प्रतिबंध से रूस पर संकट

हालांकि, युद्ध और आर्थिक प्रतिबंध की वजह से रूस और यूक्रेन की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित होगी। रूस की बात करें तो, रूस में ब्याज दरें दोगुनी हो गई हैं। स्टॉक मार्केट बंद है। रूस की मुद्रा रूबल का युद्ध के बाद से करीब 50 फीसदी अवमूल्यन हो चुका है। और उसकी कीमत एक अमेरिकी सेंट भी कम हो गई है। जो अबतक का सबसे ज्यादा गिरावट है। युद्ध से पहले रूस की  अर्थव्यवस्था दो फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद थी, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक अगले साल इसमें सात फीसदी की गिरावट आएगी। और यह गिरावट 15 फीसदी तक जा सकती है।

यूक्रेन हो सकता है आर्थिक मंदी का शिकार

वहीं, युद्ध की वजह से यूक्रेन में आर्थिक मंदी पैदा हो सकती है। युद्ध से यूक्रेन के आर्थिक ढांचे को भारी नुकसान हुआ है। इस वजह से 2022 में यूक्रेन की अर्थव्यवस्था में 10 फीसदी की गिरावट की आशंका जताई गई है। अगर युद्ध लंबा चला तो यह गिरावट 25 से 30 फीसदी तक जा सकती है। इससे बेरोजगारी और महंगाई काफी बढ़ जाएगी। और अर्थव्यवस्था के लिहाज से यूक्रेन काफी पीछे चला जाएगा।

भारत में बढ़ जाएगी महंगाई

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत भी अछूता नहीं रहने वाला है। भारत कच्चे तेल के आयात पर सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करता है। अपने कुल आयात का करीब बीस फीसदी। कच्चे तेल की कीमत से ही भारत में पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतें निर्धारित होती हैं। ऐसे में जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा होगा तो इसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। और महंगाई बढ़ जाएगी।

इसके साथ ही भारत बड़े पैमाने पर कुकिंग ऑयल (सनफ्लावर तेल) यूक्रेन से आयात करता है। साथ ही लोहा, स्टील, प्लास्टिक, केमिकल्स आदि सामान भी यूक्रेन से आयात करता है। युद्ध की वजह से अगर इनकी सप्लाई रूकती है तो भारत को भी दिक्कत उठाना पड़ सकता है।

भारतीय रक्षा तैयारियों पर पड़ेगा असर

दूसरा सबसे ज्यादा असर भारत के रक्षा क्षेत्र पर पड़ेगा। भारत करीब 49 फीसदी रक्षा सामग्री रूस से आयात करता है। वहीं, रूस के रक्षा आयात में भारत की हिस्सेदारी 23 फीसदी है। ऐसे में अगर रूस लंबे वक्त तक युद्ध में उलझ गया तो इसका प्रभाव भारत की रक्षा तैयारियों पर पड़ सकता है। हालांकि, भारत के लिए राहत की बात यह है कि रूस के साथ उसका द्विपक्षीय व्यापार बहुत ज्यादा नहीं है। भारत के कुल आयात में रूस की हिस्सेदारी महज 1.4 फीसदी है। जबकि भारत के कुल निर्यात में रूस की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम है। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि रूस-यूक्रेन संकट बढ़ने पर भारत-रूस आयात निर्यात पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

कोविड-19 वैश्विक महामारी ने जहाँ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को पहले से ही झकझोर कर रख दिया है, ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसे और भयावह बना दिया है। इन सब के बीच एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या इस युद्ध से शीत युद्ध के बाद की भू-राजनीतिक व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वैश्विक पटल पर एक नई व्यवस्था और एक नया सुपर पावर देखने को मिलेगा। साथ ही संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और प्रासंगिकता भी सवालों के घेरे में है। और इस सब के साथ क्या भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति आज और ज्यादा प्रासंगिक हो गई है? इन सब पर विस्तार से चर्चा करेंगे रूस-यूक्रेन युद्ध सीरीज के अगले भाग (भाग-5) में।

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