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रूस-यूक्रेन युद्ध (भाग-दो): क्रीमिया पर कब्जा और विवाद

Russia-Ukraine War Part- 2

रूस और यूक्रेन ऐतिहासिक काल से ही सांस्कृतिक, सामाजिक और भू-राजनीतिक रूप से कमोबेश एक दूसरे से जुड़े हुए थे। हालांकि, मंगोलों और तुर्कों के आक्रमण से इनकी सीमाएं घटती-बढ़ती रहती थीं। बाद में रूस ने यूक्रेन और क्रीमिया को अपने में मिला लिया था। लेकिन रूस के इस अधिग्रहण को लेकर यूक्रेन में समय-समय पर आक्रोश भी होता रहा और आजादी की छटपटाहट यूक्रेनी लोगों में हमेशा से बनी रही। इस आलेख में हम चर्चा करेंगे... यूक्रेन के स्वतंत्र देश के रूप में अलग होने के साथ ही सोवियत संघ में शामिल होने की। इसके अलावा उस क्रीमिया के इतिहास की भी चर्चा करेंगे जो वर्तमान में रूस-यूक्रेन झगड़े का वजह बना... और जानेंगे कि जिस क्रीमिया को रूस ने 1954 में दोस्ती की मिसाल के तौर पर यूक्रेन को दे दिया उसी क्रीमिया पर 2014 में क्यों जबरदस्ती कब्जा कर लिया?

रूसी साम्राज्य का पतन और यूक्रेन की आज़ादी

1917 में हुए रूसी क्रांति के बाद जब रूसी साम्राज्य का पतन हुआ, तब 1917 में ही कीव में यूक्रेन की केंद्रीय परिषद ‘रादा’ की स्थापना हुई। जो एक तरह से वहां की संसद थी। इसके साथ ही स्वाधीनता के लिए यूक्रेन में राष्ट्रीय आंदोलन का उभार भी हुआ और 1918 में यूक्रेन ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। इस दौरान सत्ता पर कब्जा जमाने को लेकर यूक्रेन में गृहयुद्ध छिड़ गया। इस मौके का फायदा उठाकर रूस की रेड आर्मी ने दो-तिहाई यूक्रेन को जीत लिया और 1919 में यूक्रेनियन सोवियत समाजवादी गणराज्य (Ukrainian Soviet Socialist Republic) की स्थापना कर दी। और दिसंबर 1922 में यूक्रेन सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) का संस्थापक सदस्य बन गया। वहीं, यूक्रेन का एक तिहाई बचा हुआ हिस्सा पोलैंड में शामिल हो गया।

दूसरा विश्व युद्ध और यूक्रेन की स्थिति

जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तब सितंबर 1939 में पोलैंड पर आक्रमण के बाद जर्मन और सोवियत सेना ने पोलैंड के क्षेत्र को आपस में बांट लिया। इस तरह यूक्रेनी जनसंख्या बहुल पूर्वी गालिसिया और वोल्होनिया क्षेत्र फिर से यूक्रेन के बाकी हिस्से के साथ जुड़ गया। इतिहास में यह पहली बार था जब यूक्रेन एक राष्ट्र के रूप में एकजुट हुआ। लेकिन, जून 1941 में जब जर्मनी ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया तो यूक्रेन एक बार फिर से बंट गया। क्योंकि जर्मनी ने यूक्रेन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 1944 तक यूक्रेन पर जर्मनी का कब्जा रहा। अपने शासन के दौरान नाज़ियों ने यूक्रेन में काफी उत्पात मचाया। इस वजह से यूक्रेन को युद्ध में बहुत नुकसान उठाना पड़ा। 50 लाख से ज्यादा यूक्रेनी नाजी जर्मनी से लड़ते हुए मारे गए। जर्मनी ने यूक्रेन में रहने वाले 15 लाख से ज्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया।

उपहार के तौर पर यूक्रेन को मिला क्रीमिया

हालांकि, दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हुए भारी क्षति के बावजूद 1945 में यूक्रेनी एसएसआर संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्यों में एक था। 1953 में स्टालिन की मृत्यु के बाद निकिता ख्रुश्चेव सोवियत संघ के नए नेता बने। इससे पहले 1938 से 1949 तक वे यूक्रेनी एसएसआर कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख सचिव रह चुके थे और यूक्रेन गणराज्य से भली-भांति परिचित थे। उन्होंने यूक्रेनी और रूसी राष्ट्रों के बीच दोस्ती को बढ़ावा दिया। और जब 1954 में ‘पेरेस्लाव की संधि’ की 300वीं वर्षगांठ मनाई गई, तो दोस्ती को और मजबूत करने के लिए ख्रुश्चेव ने क्रीमियाई प्रायद्वीप को यूक्रेनी एसएसआर को दे दिया।

यह वही क्रीमिया प्रायद्वीप था, जिस पर रूस ने यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के समर्थक और उनके विद्रोहियों के बीच हुए झगड़े के बीच रूसी नागरिकों की सुरक्षा का हवाला देकर 2014 में फिर से कब्जा कर लिया। जिसके बाद से यूक्रेन और पश्चिमी देशों के साथ-साथ अमेरिका से भी उसकी अदावत खुलकर शुरू हो गई। और रूस को G8 की सदस्यता भी गंवानी पड़ी। ऐसे में यहां क्रीमिया के इतिहास के बारे में भी जानना जरूरी है। जो रूस-यूक्रेन के बीच विवाद का एक महत्वपूर्ण कारण बना।

ढाई हज़ार साल पुराना है क्रीमिया का इतिहास

क्रीमिया यूक्रेन के दक्षिण में फैले काला सागर और अज़ोव सागर के बीच प्रायद्वीप पर स्थित है। यह रूस से पूर्व में एक संकरा कर्च जलडमरूमध्य के द्वारा अलग होता है। क्रीमिया की आबादी में सबसे ज्यादा संख्या रूसी लोगों की है, लेकिन यूक्रेनियन और क्रीमियाई तातार लोग भी यहां रहते हैं।

क्रीमिया का इतिहास 5वीं सदी ईसा पूर्व से शुरू होता है, जब यूनानियों ने यहाँ अपनी कॉलोनी बना कर रहना शुरू किया। अगले दो हजार सालों तक यह ग्रीक रोमन और बैजेन्टाइन साम्राज्य के कब्जे में रहा। 13वीं सदी में वेनेटियन और जेनोविस ने यहाँ कब्जा जमा लिया। मध्य युग तक यहाँ सीथियन, यूनानी, रोमन गोथ, कजाख आदि बस चुके थे। लेकिन बाद में कीवियन रूसियों ने इस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 15वीं से 18वीं सदी के बीच यह क्रीमिया खनैत और तुर्क साम्राज्य के अधीन चला गया।

1774 में रूस ने जब तुर्को को हरा दिया, तब क्रीमिया को रूसी महारानी ‘कैथरीन द ग्रेट’ के शासन काल में 1783 में रूसी साम्राज्य में मिला लिया गया। और जब 1917 में रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई तब रूस के अंदर ही 1921 में क्रीमिया को स्वायत्त गणराज्य (क्रीमियन ऑटोनॉमस सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक) बनाया गया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब नाज़ियों ने यूक्रेन पर कब्जा किया, तब क्रीमिया भी उनके अधीन चला गया। इसी दौरान 1944 में सोवियत नेता स्टालिन ने क्रीमियाई तातारों पर जर्मन हमलावरों के साथ मिले होने का आरोप लगाकर जबरदस्ती बड़ी संख्या में उन्हें मध्य एशिया और साइबेरिया भेज दिया। इसके साथ ही 1945 में Crimean Autonomous Soviet Socialist Republic को भंग कर दिया गया। और 1945 से 1954 तक रूस के अंदर क्रीमिया को Crimean Oblast यानी एक प्रशासनिक क्षेत्र का दर्जा दे दिया गया। 1954 में सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव ने क्रीमिया, यूक्रेन को दे दिया। इसके बाद से क्रीमिया 1954 से 1991 तक यूक्रेनी एसएसआर का एक क्षेत्र बना रहा। 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ और यूक्रेन एक स्वतंत्र देश बन गया, तब उसने भी क्रीमिया को यूक्रेन के भीतर एक स्वायत्त गणराज्य का दर्जा दिया। क्रीमिया की संसद ने सितंबर 1991 में यूक्रेन के इस कदम से सहमति जताई और क्रीमिया आधिकारिक रूप से यूक्रेन का हिस्सा बन गया। 1996 में तैयार हुए यूक्रेन के नए संविधान तहत भी क्रीमिया को स्वायत्त गणराज्य का दर्जा दिया गया। इसके तहत क्रीमिया के पास अपनी संसद है और इसे कृषि, सार्वजनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ पर्यटन पर कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन महत्वपूर्ण विषयों पर क्रीमिया में कानून व्यवस्था यूक्रेन से ही निर्धारित करना तय हआ। इसके बाद से 2014 तक क्रीमिया यूक्रेन का हिस्सा बना रहा, जब तक कि रूस ने उस पर दोबारा कब्जा न कर लिया।

सोवियत संघ से अलग होने वाला पहला देश बना यूक्रेन

इस तरह क्रीमिया कभी रूस तो कभी यूक्रेन का हिस्सा बनता रहा। वहीं, दूसरे विश्वयुद्ध की तबाही झेल चुका यूक्रेन, युद्ध के कुछ सालों के भीतर ही उद्योग और उत्पादन के क्षेत्र में युद्ध से पहले वाली स्थिति से भी बेहतर हो गया... और जल्द ही सोवियत यूक्रेन ने औद्योगिक उत्पादन में यूरोप को पीछे छोड़ दिया। साथ ही, सोवियत संघ में हथियार उद्योग और उच्च तकनीकी अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। हालांकि, इन सब के बीच साठ के दशक के दौरान यूक्रेन में सोवियत शासन के खिलाफ विरोध भी पनपा जो समय के साथ बढ़ता चला गया। यूक्रेनी लोग सोवियत संघ से आजाद होना चाह रहे थे। वहीं, इस विरोध को दबाने के लिए सोवियत शासन द्वारा उठाए गए कदम से यह आक्रोश और बढ़ गया। और जब 1991 में सोवियत संघ टूटा तो यूक्रेन अपनी आजादी घोषित करने वाला सबसे पहला देश बना।

यूक्रेन का नया संविधान और NATO की तरफ झुकाव

अगस्त 1991 में सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचोफ़ की सत्ता को तख्तापलट करने की कोशिश हुई। इस मौके का फायदा उठाकर यूक्रेन ने अपनी स्वतंत्रता का ऐलान कर दिया। तब एक जनमत संग्रह में 92 फीसदी यूक्रेनी लोगों ने यूक्रेन की आजादी का समर्थन किया था। दिसंबर 1991 में हुए चुनाव में लियोनिद एम क्रावचुक को यूक्रेन का पहला राष्ट्रपति चुना गया। हालांकि 1994 में लियोनिद क्रावचुक चुनाव हार गए और लियोनिद कुचमा नए राष्ट्रपति बने। उन्होंने पश्चिम और रूस के साथ संतुलन बनाने की नीति अपनाई। वहीं, 1996 में यूक्रेन ने नया लोकतांत्रिक संविधान अपनाया और नई मुद्रा ‘राइवन्या’ जारी की गई। इसके बाद मई 2002 में यूक्रेन की सरकार ने नाटो यानी North Atlantic Treaty Organisation में शामिल होने की आधिकारिक प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान कर दिया। और यहीं से रूस और यूक्रेन के संबंध बिगड़ने के बीज पड़ गए।

रूस-यूक्रेन संबंधों में तनाव और ऑरेंज रिवॉल्यूशन

नवंबर 2004 में यूक्रेन में रूस के समर्थक माने जाने वाले विक्टर यानुकोविच की जीत हुई। लेकिन हारे हुए उम्मीदवार विक्टर युशचेंको और उनके समर्थको ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। लोग संतरे रंग के कपड़े, बैनर और टोपियां लगाकर कीव की सड़कों पर प्रदर्शन करने लगे और सरकार बदलने की मांग करने लगे। इसे ‘ऑरेंज रिवॉल्यूशन’ कहा गया। यूक्रेन की सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव को रद्द कर दिया और दिसंबर 2005 में फिर से चुनाव कराए गए। इस बार विक्टर युशचेंको की जीत हुई और वे यूक्रेन के राष्ट्रपति चुने गए। युशचेंको का झुकाव नाटो और पश्चिमी यूरोप के देशों की तरफ ज्यादा था। इस वजह से रूस के साथ यूक्रेन के रिश्तों में खटास बढ़ गई और गैस सप्लाई से लेकर पाइप लाइन फीस को लेकर विवाद होने लगे। इसी बीच अक्टूबर 2008 में आर्थिक मंदी की वजह से स्टील की मांग कम हो गई। इससे यूक्रेन को काफी आर्थिक नुकसान हुआ। उसकी मुद्रा अचानक गिर गई और निवेशकों ने हाथ खींच लिए।

रूस के खिलाफ यूक्रेन में आंदोलन

इन्ही हालातों में फरवरी 2010 में यूक्रेन में चुनाव हुए और एक बार फिर रूसी समर्थक विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति चुने गए। यानुकोविच के शासन के दौरान 2010 के मई में यूक्रेन की संसद ने नाटो में शामिल होने की योजना के खिलाफ वोट किया। और नवंबर 2013 में राष्ट्रपति यानुकोविच ने यूक्रेन और यूरोपीय यूनियन के साथ जुड़ने की संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए। उन्होंने रूस से संबंध मजबूत करने पर जोर दिया। यानुकोविच के इस फैसले के खिलाफ यूक्रेन के लोग सड़कों पर उतर आए। लोगों ने यानुकोविच पर रूस के दबाव में काम करने का आरोप लगाया। कीव के सड़कों पर बड़ा विरोध हुआ और फरवरी 2014 में सुरक्षाबलों ने कीव में 80 प्रदर्शनकारियों को मार ड़ाला।

क्रीमिया पर रूस का दोबारा कब्जा

राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के निर्णय और रूस के विरोध में हो रहे हिंसक आंदोलन की वजह से उन पर महाभियोग लगाया गया। यूक्रेन की संसद ने स्पीकर अलेक्जेंडर तुर्चिनोव को अस्थायी राष्ट्रपति की जिम्मेदारी सौंप दी। हालात बिगड़ता देखकर यानुकोविच यूक्रेन छोड़कर रूस भाग गए। इसके बाद रूसी सेना ने फरवरी 2014 में क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। इसके पीछे रूस ने तर्क दिया कि क्रीमिया में रूसी मूल के लोग ज्यादा संख्या में हैं और उनके हितों की रक्षा करना रूस की जिम्मेदारी है। रूस के इस कदम से रूस और यूक्रेन के बीच जंग जैसे हालात बन गए। साथ ही रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव शीत युद्ध के बाद अपने चरम पर पहुंच गया। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और यूरोपीय देशों ने रूस के इस कदम को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताया। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। यहां तक कि रूस को जी8 की सदस्यता से निलंबित कर दिया गया। 

रूस-यूक्रेन के बीच जल सीमा को लेकर विवाद

यानुकोविच के यूक्रेन से भाग जाने के बाद मई 2014 में पश्चिमी देशों के समर्थक माने जाने वाले पेत्रो पोरोशेंको यूक्रेन के राष्ट्रपति चुने गए। उनके कार्यकाल के दौरान 2017 में यूक्रेन ने यूरोपीय संघ एसोसिएशन समझौते पर हस्ताक्षर किया और यूरोपीय संघ से रिश्ते बेहतर बनाए। इसके जवाब में रूस ने क्रीमियाई शहर सेवास्तोपोल में अपनी पोतों को मौजूद रखा, जो रूस-यूक्रेन के बीच तनाव का कारण बना। यूक्रेन के पश्चिमी समर्थक नीतियों से नाराज रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मई 2018 में दक्षिणी रूस को क्रीमिया से जोड़ने वाले एक पुल का उद्घाटन किया। यूक्रेन ने रूस के इस कदम को गैरकानूनी बताया। इसके बाद आज़ोव सागर में जल सीमा को लेकर दोनों देशों में विवाद होने लगे। विशेषकर क्रीमिया और रूस के बीच पड़ने वाले कर्च स्ट्रेट को लेकर। दरअसल साल 2003 में रूस और यूक्रेन के बीच एक संधि हुई थी जिसके तहत कर्च के तंग समुद्री रास्ते और अज़ोव सागर के बीच जल सीमाएं बांट दी गई थीं। लेकिन विवाद के बाद 2018 में रूसी सेना ने यूक्रेन की नौकाओं को अपने कब्जे में ले लिया। साथ ही रूस ने कर्च स्ट्रेट के मुख्य रास्ते पर अपने टैंकर खड़ा करके जलमार्ग अवरोधित कर दिया। वहीं, इन घटनाओं के बाद यूक्रेन ने अपनी सीमावर्ती इलाके में मार्शल लॉ लगा दिया। और इस तरह दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ते चले गए।

NATO बना रूस-यूक्रेन तनाव का अहम मुद्दा

21 अप्रैल 2019 को वोलोदिमिर जेलेंस्की यूक्रेन के राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने भी पश्चिमी देशों से संबंध बनाने और नाटो में यूक्रेन के शामिल होने की कोशिशों को प्राथमिकता दी। यहां तक कि नाटो का सदस्य बनने के लिए यूक्रेन के संविधान को 2019 संशोधित भी किया गया। यही नहीं, सितंबर 2020 में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने यूक्रेन की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को मंजूरी दी, जिसमे नाटो का सदस्य बनने और उसके साथ खास साक्षेदारी विकसित करने का प्रावधान किया गया। ये ऐसी बातें हैं जो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को कतई मंजूर नहीं है। वो किसी भी कीमत पर यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनने नहीं देना चाहते हैं। दरअसल, रूस को इस बात की चिंता है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल कर अमेरिका और पश्चिमी देश उसके सीमा के बेहद करीब पहुंच जाएंगे। और यह रूस की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है।

इस आलेख की अगली कड़ी यानी तीसरे भाग में विस्तार से चर्चा होगी नाटो की बारे में... साथ ही रूस-यूक्रेन संबंधों को बिगाड़ने में नाटो की भूमिका के बारे में भी...।

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