रूस-यूक्रेन युद्ध (भाग-एक) : ऐतिहासिक संबंध
रूस और यूक्रेन के बीच विवाद बढ़ते-बढ़ते पूरी तरह युद्ध में बदल चुका है। यूक्रेन के दो अलगाववादी इलाकों लुहान्सक और डोनेट्स्क को स्वतंत्र देश की मान्यता देने के बाद...रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने नाटो को भी यूक्रेन की सहायता करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी है। हालांकि पुतिन ने यह भी कहा है कि रूस का इरादा यूक्रेन पर कब्जा करना नहीं है। लेकिन रूस चाहता है कि यूक्रेन क्रीमिया को रूस का हिस्सा माने और नाटो में कभी शामिल नहीं होने की हामी भरे। पुतिन ने आरोप लगाया है कि यूक्रेन में परिस्थितियां नियो नाजी लोगों के इशारे पर हो रही हैं। वहीं दूसरी तरफ रूस के आक्रमण को देखते हुए अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों ने उसपर भारी आर्थिक पाबंदियां लगा दी है। हालांकि इन सब के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने स्पष्ट कर दिया है कि नाटो की सेना यूक्रेन की तरफ से नहीं लड़ेगी... लेकिन नाटो देश यूक्रेन को हथियार और जरूरी चीजें मुहैया कराते रहेंगे। ऐसी स्थिति में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर पूरी दुनिया बेहद चिंतित है। क्या होगा इस युद्ध का परिणाम... सामरिक, राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर किस तरह के नतीजे देखने को मिलेंगे... क्या इस युद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर एक नया ध्रुवीकरण देखने को मिलेगा और क्या दुनिया फिर से दो पक्षों में बंट जाएगी। इन सब के बीच सवाल ये है कि...आखिर ऐसी क्या बात हो गई कि 1991 तक सोवियत संघ का हिस्सा रहे और सोवियत परमाणु संयंत्र का केंद्र रहा यूक्रेन रूस के खिलाफ इतना बगावती हो गया। और क्यों अमेरिका समेत सभी नाटो देश यूक्रेन को अपनी तरफ मिलाने और उसका समर्थन करने पर उतारू हो गए। इन तमाम मुद्दों को जानने के लिए रूस-यूक्रेन के ऐतिहासिक संबंधों को समझना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के साथ रूस और यूक्रेन के संबंधों को भी जानना जरूरी है। इन सभी पहलुओं को गहराई से जानने समझने के लिए सबसे पहले बात करते हैं रूस और यूक्रेन के ऐतिसाहिक संबंधो की...
रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध
यूक्रेन के साथ रूस की सीमा से लगती करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर दो लाख रूसी सैनिकों की मोर्चाबंदी...काला सागर में मौजूद रूसी जंगी जहाज...बेलारूस के साथ रूस की संयुक्त युद्धाभ्यास...यूक्रेन की सीमा के पास रूस के न्यूक्लियर मिसाइल ड्रिल...और यूक्रेन के दो अलगाववादी इलाके लुहान्सक और डोनेत्सक को स्वतंत्र देश घोषित करने के साथ ही यूक्रेन की राजधानी कीव में एयरपोर्ट पर रूसी बैलेस्टिक मिसाइल के हमले ने.... रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच छिड़े युद्ध को काफी भीषण बना दिया है। इसके साथ ही अमेरिका समेत पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना और जर्मनी, पोलैंड, आर्मेनिया में तैनात अमेरिकी और नाटो सैनिकों की तैनाती और युद्धाभ्यास ने दो देशों के बीच युद्ध को तीसरे विश्वयुद्ध की संभावना में भी तब्दील कर दिया है। रूस और यूक्रेन बीच पैदा तनाव की स्थिति न केवल शीत युद्ध के दौरान की भू-राजनीतिक तनाव की याद दिला रहा है बल्कि ऐसा लग रहा है जैसे शीत युद्ध के बाद की पूरी भू-राजनीतिक संरचना ही बदल जाएगी।
दो-दो विश्व युद्ध की विभीषिका और उसके परिणाम को दुनिया ने देखा और भुगता है। और आज भी दुनिया उन महायुद्धों की तबाही को भूल नहीं पाई है। यही वजह है कि यूक्रेन और रूस के बीच उपजे तनाव और युद्ध की स्थिति ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। इसे रोकने के लिए दुनिया के तमाम देश लगातार अपने-अपने तरीके से कोशिश कर रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्ज की राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात के बाद भी समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया। वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस को चेतावनी दी है कि उसके इस कदम का माकूल जवाब दिया जाएगा।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर रूस और यूक्रेन के बीच स्थितियां इस मुकाम तक कैसे और क्यूँ पहुंची? क्यूँ कभी सोवियत रूस का सबसे भरोसेमंद और मजबूत साथी रहा यूक्रेन और उसकी जनता, रूस के इतने खिलाफ हो गई कि नौबत मर मिटने तक की आ गई।
दरअसल, इतिहास में कई ऐसे मौके रहे हैं जब रूसी साम्राज्य, सोवियत संघ और वर्तमान रूस की वजह से यूक्रेन के लोगों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में वर्तमान हालात और राजनीतिक विभाजन को समझने के लिए रूस और यूक्रेन के इतिहास को समझना होगा। साथ ही वक्त के साथ इसमें आए उतार-चढ़ाव को जानना जरूरी होगा।
रूस का वर्तमान भूगोल
रूस पूर्वी यूरोप और उत्तरी एशिया में फैला एक ट्रांसकॉन्टिनेंटल देश है। यह दुनिया का सबसे बड़ा देश है। धरती के कुल दस फीसदी हिस्से से ज्यादा पर अकेले रूस का कब्जा है। अटलांटिक, प्रशांत और आर्कटिक महासागरों के तट पर स्थित रूस के पश्चिम में बाल्टिक सागर, पूर्व में प्रशांत महासागर और उत्तर में आर्कटिक महासागर स्थित है। जबकि दक्षिण में इसका क्षेत्र कैस्पियन सागर तक फैला है। रूस का कुल क्षेत्रफल 1 करोड़ 71 लाख 25 हजार 2 सौ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो धरती पर बसे हुए कुल भूमि क्षेत्र का आठवाँ हिस्सा है। रूस 16 देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करता है।
रूसी क्षेत्र में मानव आबादी की शुरुआत
क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया के इस सबसे बड़े देश में मानव निवास के शुरुआती निशान साइबेरिया और उत्तरी काकेशस में पाए जाते हैं। जो करीब 2 से 3 मिलियन ईसा पूर्व की अवधि से संबंधित हैं। वहीं, आधुनिक रूस का इतिहास पूर्वी स्लाव जाति से शुरू होता है जो तीसरी से आठवीं सदी के बीच रूस के क्षेत्र में पहुंचे थे। ये वो लोग थे जो पूर्वी स्लावी भाषाएँ बोलते थे। स्लाव जाति का सबसे पुराना गढ़ कीव था, जहां 9वीं सदी में कीवी रूस साम्राज्य यानी आधुनिक रूस की आधारशिला पड़ी। हालांकि पूर्वी स्लावों के इन क्षेत्रों में पहुंचने से पहले भी कई अन्य कबीले के लोग वहां रहा करते थे, जिनमें खजार और अन्य तुर्क लोग शामिल थे। आज भी इन जातियों और कबीले के लोग रूस में रहते हैं।
रूरिक वंश की स्थापना और रूसी साम्राज्य का विस्तार
दरअसल, आठवीं और नौवीं शताब्दी के दौरान बाल्टिक सागर और उत्तरी समुद्र के आसपास के स्कैंडिनेवियाई क्षेत्रों में नार्डिक कबीले को लोग रहा करते थे। जिन्हें पश्चिमी यूरोप में वाइकिंग और पूर्वी यूरोप में वारांगियन कहा जाता था। ये समुद्री डकैत थे जो स्पेन के किनारे तक समुद्री धावा डालते थे। इसी क्रम में वे 8-9वीं सदी के बीच रूसी नदियों के रास्ते रूस के मध्य निर्जन धरती पर भी पहुंच गए। समुद्री डाकुओं के रूप में उन्होंने कैस्पियन और काला सागर पर अपना आधिपत्य जमा लिया। साथ ही रूस में अपनी कुछ जागीरें भी बना ली। रूसी कहे जाने वाले ये प्रथम लोग थे। इन लोगों ने वहाँ पहले से रह रहे खजार लोगों को विस्थापित कर दिया और नौवीं सदी के मध्य में वाइकिंग कबीले का प्रमुख रूरिक वहाँ का शासक बन गया। उसने नोवगोरोद को अपनी राजधानी बनाई। उसके राज्य के लोगों ने खुद को रूस कहा और उस धरती को नाम मिला रूस। और यहीं से रूसी साम्राज्य का इतिहास शुरू होता है। रूरिक वंश के शासकों ने अगले सात सौ सालों तक रूस पर शासन किया।
कीवियन रूस और रूसी साम्राज्य का सुदृढ़ीकरण
9वीं सदी के अंत और 10वीं सदी के शुरुआत में रूरिक के उत्तराधिकारी ओलेग ने कीव पर कब्जा कर लिया। नाइपर नदी के किनारे रणनीतिक रूस से महत्वपूर्ण जगह पर बसे होने के कारण उसने कीव को कीवयाई रूस की राजधानी बनाया। वहीं, रूरिक वंश के महान शासक व्लादिमीर महान.. जिसे यूक्रेनी भाषा में प्रिंस वोलोदिमिर कहा जाता है... के शासनकाल में साल 988 में रूस और यूक्रेन ने ईसाई धर्म अपना लिया। तभी से पूर्व में ईसाई धर्म के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ। इससे बैजेंटाइन और स्लाव संस्कृतियों के आपस में मिलने की शुरुआत भी हुई। 11वीं सदी में योरोस्लाव के शासनकाल में कीवयाई रूस अपने स्वर्णिम काल में पहुंच गया। इस दौर में कीव पूर्वी यूरोप का अहम राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया था।
मंगोलों का आक्रमण और खनैत साम्राज्य की स्थापना
योरोस्लाव के उत्तराधिकारियों के कमजोर पड़ने पर 13वीं सदी में मंगोलों ने रूसी राज्यों पर हमला करना शुरू किया। 1237 से 1240 के दौरान हुए इन हमलों ने किवि रूसों के साम्राज्य को तहस-नहस कर दिया। इसके बाद ‘मंगोल गोल्डन हॉर्ड’ के वंशज ‘तातारों’ ने काला सागर के उत्तरी सिरे के पास अपने साम्राज्य ‘खनैत’ की स्थापना की। वहीं, 1349 और 1430 के बीच पोलैंड और बाद में पॉलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल ने धीरे-धीरे आज के यूक्रेन के उत्तरी और पश्चिमी हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया। इन घटनाओं का परिणाम ये हुआ कि 1441 में क्रीमियाई खनैत, गोल्डन हॉर्ड से अलग हो गया और उसने आज के दक्षिणी यूक्रेन के ज्यादातर हिस्से पर कब्जा जमा लिया। वहीं 16वीं सदी के आखिरी सालों में पोलैंड और रोम के प्रभाव में आकर पश्चिमी यूक्रेन ग्रीक-कैथोलिक ईसाई बन गया जबकि बाकि यूक्रेन ऑर्थोडॉक्स ईसाई ही बना रहा।
रोमानोव वंश की स्थापना
इन सब के बीच 13वीं-14वीं सदी के बाद जब मंगोलों की शक्ति कम होती गई तो रूस में भी उनके कब्जे से आजाद हो गया और 1613 में वहाँ रोमानोव वंश की स्थापना हुई जिसने 1917 तक रूस पर शासन किया।
आधुनिक स्वतंत्र देश के रूप में यूक्रेन का गठन और बिखराव
उधर यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से पर कब्जा करने का विरोध करते हुए 1648 से 1657 के बीच पोलिश शासन के खिलाफ कजाखों ने विद्रोह कर दिया। इसके परिणामस्वरूप यूक्रेन में ‘हेतमन’ शासन की स्थापना हुई। इसे यूक्रेन में आधुनिक स्वतंत्र देश की शुरुआत माना जाता है। हालांकि, लड़ाई के दौरान पोलैंड से बचने के लिए हेतमन शासक ‘बोहदन खेम्नित्स्की’ को रूस के जार एलेक्सी मिखाइलोविच के साथ 1654 में ‘पेरेस्लाव की संधि’ करने पर मजबूर होना पड़ा। हालांकि पहले से ही कजाखों को ओटोमन साम्राज्य का मदद मिल रहा था लेकिन वह पर्याप्त नहीं था। इस वजह से हेतमन शासक को रूस के साथ संधि करना पड़ा। इस संधि का एक असर यह हुआ कि हेतमन साम्राज्य में रूस के जार की दखल काफी बढ़ गई और एक तरह से हेतमन शासन को रूस की जागीर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। इस संधि के बाद रूस, पोलैंड के खिलाफ कजाखों को आर्थिक और सैनिक मदद करने लगा। 1686 में रूस और पोलैंड के बीच शांति समझौता हुआ। इसके तहत रूस और पोलैंड ने हेतमन यानी आज के यूक्रेन को आपस में बांट लिया।
हालांकि, रूस और पोलैंड के अधिग्रहण के खिलाफ यूक्रेन को लोग लगातार विद्रोह करते रहे। और जब रूस उत्तर में स्वीडन और पोलैंड के खिलाफ युद्ध में उलझा हुआ था तब 1708 में इवान स्टेपनोविच मोजेपा ने विद्रोह कर दिया और हेतमन शासन वाले पूर्वी हिस्से को रूस से मुक्त करवाने की कोशिश की। इसके बाद 1761 में रूस ने पूर्वी हेतमन शासन व्यवस्था को भंग कर दिया और अपना आंशिक प्रशासन लागू कर दिया। हालांकि, 1781 तक यूक्रेन का पूरी तरह रूस में विलय नहीं हुआ था।
1783 में क्रीमिया पर रूस का कब्जा
दरअसल रूस ने जब ऑटोमन तुर्कों को पराजित कर दिया उसके बाद रूस, पर्शिया और ऑस्ट्रिया ने पोलैंड को विभाजित करने की एक संधि पर 5 अगस्त 1772 को हस्ताक्षर किए। इसके बाद 1772 से लेकर 1795 के बीच पूर्वी यूक्रेन का ज्यादातर हिस्सा पोलैंड से विभाजन के बाद रूसी साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। इसी दौरान 1783 में रूसी महारानी कैथरीन द ग्रेट ने क्रीमियाई खनैत के जरिए दक्षिणी यूक्रेन यानी क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया। इसके बाद क्रीमिया 1954 तक रूस का हिस्सा बना रहा। जिसे 1954 में सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को सौंप दिया। वहीं क्रीमिया जिसपर रूस ने 2014 में कब्जा कर लिया। इसके साथ ही जब 1917 में रूसी क्रांति हुई और 1922 में सोविय़त संघ बना तो रूस-यूक्रेन के बीच एक नए संबंध की शुरुआत हुई। जो 1991 तक कायम रही। क्रीमिया के इतिहास समेत इन सभी मुद्दों पर चर्चा करेंगे अगले आलेख में... क्रमश: