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तमाम सहयोग के बावजूद मालदीव क्यों हो गया भारत के खिलाफ? किसकी गलती, कौन जिम्मेदार? भारत के लिए क्यों जरूरी है मालदीव?

India - Maldives

भारत के दक्षिण में हिंद महासागर के बीच लक्षद्वीप समूह के दक्षिण और श्रीलंका के पास स्थित मूंगे से बने 1200 द्वीपों से बना एक छोटा सा देश है मालदीव... जहां नीले समुद्र से घिरे सफेद रेत के किनारों वाले द्वीप पूरी दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। लेकिन आज पूरी दुनिया की निगाहें यहां जारी राजनीतिक उठापटक और भारत-मालदीव के राजनयिक रिश्तों में आई कड़वाहट पर टिक गई है। दरअसल क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से एशिया के इस सबसे छोटे देश से भारत की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, जातीय, भाषायी और सांस्कृतिक संबंध सदियों पुराने रहे हैं। लेकिन अक्टूबर 2023 में प्रोग्रेसिव अलायंस के नेता मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के साथ दशकों से मजबूत दोनों देशों के संबंधों में तनाव आने शुरू हो गए।  

इंडिया आउट का नारा

दरअसल राष्ट्रपति बनने से पहले से ही मोहम्मद मुइज्जू ने अपना चुनावी अभियान पूरी तरह से भारत विरोधी भावनाओं पर चला रखा था। इस दौरान मुइज्जू ने सोशल मीडिया के जरिए भी भारत के खिलाफ खूब दुष्प्रचार किया। मुइज्जू ने चुनाव के दौरान नारा दिया था इंडिया आउट..। और अक्टूबर 2023 में राष्ट्रपति का पद संभालते ही मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव के आर्किपेलगों में मौजूद 77 भारतीय सैनिकों को वापस लौटाने के साथ ही दोनों देशों के बीच हुए 100 से ज्यादा द्विपक्षीय समझौतों की समीक्षा करने की बात कही। इसके लिए मुइज्जू ने मालदीव की राष्ट्रीय सुरक्षा और वहां की जनता का हवाला दिया। लेकिन मुइज्जू के इस भारत में विरोध में मालदीव की जनता और वहां की राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा इतना अहम नहीं है जितनी चीन की भूमिका महत्वपूर्ण है।

मुइज्जू की जीत और संबंधों में दरार की शुरुआत

दरअसल, भारत-मालदीव संबंधों में आई कड़वाहट कुछ दिनों या महीनों की बात नहीं है, बल्कि यह कई सालों से धीरे धीरे पक रहा था जो अब चीन की सह पर खुलकर सामने आया है। इस पूरी कहानी की चर्चा करेंगे आगे... बहरहाल इन सब के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे को लेकर मालदीव के मंत्रियों की भारत और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी ने आग में घी का काम किया और भारत संग मालदीव का विवाद और गहरा गया। हालांकि भारत के विरोध के बाद मुइज्जू ने अपने उन तीन उपमंत्रियों को बर्खास्त कर दिया, जिन्होंने भारत और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। लेकिन चीन को लेकर मुइज्जू का प्रेम किसी से छिपा नहीं है और भारत से बिगड़ते संबंध का एक महत्वपूर्ण वजह है।

चलिए अब विस्तार से बताते हैं कि भारत और मालदीव के ऐतिहासिक संबंध कैसे रहे है और क्यों भारत-मालदीव के रिश्ते इतने खराब हो गए? आखिर मालदीव में क्यों उठा इंडिया आउट कैंपेन? और इन सब में चीन की क्या भूमिका है? इसके साथ ही यह भी बताएंगे कि भारत के लिए मालदीव कितना महत्व रखता है? और पर्यटन के लिहाज से लक्षद्वीप और मालदीव में क्या विशेष है?

सामाजिक, भाषायी और सांस्कृतिक रूप से मालदीव भारत के करीब

मालदीव का इतिहास करीब 5वीं सदी ईसा पूर्व से शुरू होता है, जहाँ शुरुआती निवासी वर्तमान श्रीलंका और भारत से आए थे। इस तरह देखा जाए तो प्राचीन समय में मालदीव पर भारतीय संस्कृति का अत्यधिक प्रभाव रहा है और सामाजिक, भाषायी और सांस्कृतिक रूप से वह भारत के सबसे करीब रहा है। शुरू में मालदीव के निवासी बौद्ध धर्म का पालन करते थे लेकिन 12वीं सदी के मध्य में अरब प्रभाव में आकर मालदीव इस्लाम में परिवर्तित हो गया।

पुर्तगाल, डच और ब्रिटेन का मालदीव पर कब्जा

जब 16वीं-17वीं सदी में यूरोपियनों ने दक्षिण एशिया में अपने पैर पसारने शुरू किए तब 1558 में पुर्तगालियों ने मालदीव को अपने कब्जे में ले लिया। लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में 17वीं सदी के मध्य में मालदीव पर डचों ने अधिकार जमा लिया। 18वीं सदी के अंत में स्थानीय लोगों ने डचों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और मौके का फायदा उठाते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी ने मालदीव पर अधिकार कर लिया और मालदीव एक ब्रिटिश संरक्षित राज्य बन गया। हालांकि इस दौरान मालदीव एक सल्तनत बना रहा और प्रशासनिक शक्तियां सुल्तानों के पास ही रही।

1965 में आजाद हुआ और 1968 में गणतंत्र बना मालदीव

करीब डेढ सौ साल तक अपने अधिकार में रखने के बाद 26 जुलाई 1965 को ब्रिटेन ने मालदीव को आजाद कर दिया। हालांकि उसके बाद भी तीन सालों तक यहाँ राजशाही बनी रही। जब तक कि नवंबर 1968 में जनमत संग्रह के बाद मालदीव को गणतंत्र घोषित नहीं कर दिया गया। नवंबर 1968 में ही सुल्तान इब्राहिम नासिर मालदीव के पहले राष्ट्रपति बने। 1972 में नासिर दूसरी बार मालदीव के राष्ट्रपति बने। यही वह दौर था जब 1970 से मालदीव में पर्यटन को बढ़ावा दिया जाने लगा जो बाद में वहां का सबसे प्रमुख उद्योग बन गया। हालांकि 1975 में मालदीव में तख्तापलट हुआ और नासिर को गिरफ्तार कर एक द्वीप पर भेज दिया गया।

अब्दुल गयूम का शासन और भारत की मदद

मोहम्मद नासिर के बाद मौमून अब्दुल गयूम सत्ता में आए जो अगले 30 सालों तक मालदीव के राष्ट्रपति बने रहे। उनके खिलाफ भी तख्तापलट की तीन कोशिशें हुईं, जिनमें से एक को भारत ने अपने सैनिक भेजकर नाकाम कर दिया।

मालदीव में नया संविधान का बनना और विदेश नीति में बदलाव के संकेत

गयूम बिना विपक्ष के ही शासन करते रहे मगर उनके शासनकाल के आखिरी हिस्से में राजनीतिक आंदोलनों ने रफ्तार पकड़ी, जिसके परिणामस्वरूप 2008 में मालदीव में नया संविधान लागू हुआ और पहली बार सीधे राष्ट्रपति के लिए चुनाव हुए। इस चुनाव में मोहम्मद नशीद की जीत हुई और गयूम सत्ता से बाहर हो गए। यहीं से मालदीव में सत्ता के लिए न सिर्फ संघर्ष की शुरुआत हो गई बल्कि उसके विदेश नीति में भी बड़ा बदलाव देखने को मिला।

नशीद को राष्ट्रपति बने अभी तीन साल ही हुए थे कि 2011 में विपक्ष ने उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया और फरवरी 2012 में पुलिस और सेना के बड़े हिस्से में विद्रोह के बाद मोहम्मद नशीद को पद से इस्तीफा देना पड़ा।

अब्दुल्ला यामीन का शासन और चीन से दोस्ती

इसके बाद 2013 में हुए चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम के सौतेले भाई अब्दुल्ला यामीन को जीत मिली। अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपति बनने के बाद मालदीव की राजनीति में दो फाड़ हो गए। इसमें एक धड़ा अपने पारंपरिक समर्थक भारत की ओर जबकि दूसरा चीन की तरफ देखने लगा। दरअसल 2012 में हुए पुलिस और सेना के विद्रोह के बाद मोहम्मद नशीद ने भारत से मालदीव में दखल देने की मांग की थ। वहीं यामीन ने चीन के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाई। अब्दुल्ला यामीन 2013 से 2018 तक मालदीव के राष्ट्रपति रहे और इसी दौरान मालदीव में चीन का दखल बढ़ता चला गया। अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान ही मालदीव चीन के महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल हुआ। जिसके तहत चीन दुनिया के अनेक देशों के बीच सड़क, रेल और समुद्री संबंध स्थापित करना चाहता है।

भारत-मालदीव के बीच तनाव की शुरुआत

भारत और मालदीव के रिश्तों में सबसे ज्यादा कड़वाहट 2018 में तब आई, जब तत्कालीन राष्ट्रपति यामीन ने विपक्षी नेताओं को रिहा करने के मालदीव सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानते हुए मालदीव में आपातकाल की घोषणा कर दी। यामीन ने सुप्रीम कोर्ट के जजों को भी गिरफ्तार करवा दिया। भारत ने इस आपातकाल का विरोध किया। भारत का कहना था कि मालदीव में सभी संवैधानिक संस्थाओं को बहाल करना चाहिए और आपातकाल को तुरंत खत्म करना चाहिए।

मालदीव में चीनी हस्तक्षेप

वहीं यामीन ने अपने इस असंवैधानिक कदम के समर्थन के लिए चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब में अपने दूत भेजे थे। चीन तो पहले से ही इस ताक में बैठा था कि मालदीव कब उसे बुलाता है और यामीन के इस कदम ने उसे मौका दे दिया और इसके बाद चीन ने चेतावनी दी कि मालदीव के आंतरिक मामले में किसी भी देश को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। चीन ने यह बात एक तरह से भारत को ध्यान में रखते हुए ही कहा था क्योंकि मालदीव की सामरिक और रणनीतिक स्थिति को देखते हुए चीन मालदीव में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है। दरअसल चीन की मालदीव में मौजूदगी हिन्द महासागर में उसकी रणनीति का हिस्सा है।

वहीं दूसरी तरफ भारत के लिए भी मालदीव चीन से ज्यादा महत्वपूर्ण है। मालदीव भारत के बिलकुल पास में है और अगर चीन वहाँ अपना पैर जमाता है तो भारत के लिए चिंतित होना लाजमी है। भारत के लक्षद्वीप से मालदीव करीब 700 किलोमीटर दूर है और भारत भारत के मुख्य भूभाग से 1200 किलोमीटर दूर।

इब्राहिम सोलिह का शासन और भारत से दोस्ती

अब्दुल्ला यामीन के तानाशाही रवैया की वजह से जब 2018 में मालदीव में चुनाव हुआ तो इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इब्राहिम सोलिह की सरकार के साथ भारत के संबंध काफी मजबूत बने रहे। सोलिह के शासनकाल के दौरान भारत ने मालदीव में काफी निवेश किया। चाहे वह बुनियादे ढांचे के विकास की बात तो या स्वास्थ्य और शिक्षा की। मालदीव ने खुलकर इन क्षेत्रों में भारत की मदद ली। सोलिह के शासनकाल के दौरान मालदीव एक तरह से इंडिया फर्स्ट की नीति पर चल रहा था। और यही बात चीन और उसके समर्थक मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को रास नहीं आ रही थी। भारत से संबंध खराब करने के मकसद से ही मुइज्जू ने चुनाव के दौरान इंडिया आउट कैंपेन चलाया, जो उनके चुनावी अभियान का एक महत्वपूर्ण मुद्दा था।

मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को मुइज्जू ने बनाया मुद्दा

मुइज्जू ने चुनाव के दौरान बार-बार इस बात को कहा कि उनकी सरकार मालदीव की संप्रभुता से समझौता कर किसी देश से करीबी नहीं बढ़ाएगी। और चुनाव जीतने के बाद कहा कि मालदीव के लोग नहीं चाहते हैं कि भारत के सैनिकों की मौजूदगी मालदीव में रहे। मुइज्जू ने कहा कि विदेशी सैनिकों को मालदीव की जमीन से जाना होगा।

हालांकि हिन्द महासागर में भारत की सैन्य मौजूदगी कोई नहीं बात नहीं है। अब्दु और लम्मू द्वीप में 2013 से ही भारतीय नौ सैनिकों और एयरफोर्स की मौजूदगी रही है।

दरअसल भारत ने मालदीव को 2010 और 2013 में दो हेलीकॉप्टर और 2020 में एक छोटा विमान मित्र देश होने के नाते उपहार के रूप में दिया था। इन विमानों का इस्तेमाल खोज-बचाव अभियानों और मरीजों को लाने ले जाने के लिए किया जाना था। इसके लिए विमानों के संचालन और उनकी मरम्मत के लिए भारतीय सेना के करीब 77 जवान मालदीव में मौजूद हैं।

सितंबर 2023 में चुनाव के दौरान इन्हीं भारतीय सैनिकों की वापसी को लेकर तब विपक्ष में रहे मुइज्जू काफी आक्रामक रहे थे। उन्होंने इस बात को खूब हवा दी कि भारतीय सैनिकों की मौजूदगी से मालदीव की राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। मोहम्मद मुइज्जू ने इस बात को भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया कि सोलिह प्रशासन ने चीन की कीमत पर भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाए हैं।

इन सारी बातों ने मालदीव की जनता को एक तरह से भ्रमित कर दिया और इसका परिणाम रहा कि चीन के समर्थक मुइज्जू मालदीव के राष्ट्रपति बन बैठे।

भारत और मालदीव के ऐतिहासिक संबंध

हालांकि मालदीव में हुए इन तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद भारत हमेशा से मालदीव को एक अहम पड़ोसी मुल्क की तरह ही देखता रहा है। लंबे समय तक दोनों देशों के संबंध काफी अच्छे रहे हैं। मालदीव और भारत के बीच राजनैतिक संबंध के अलावा सामाजिक, धार्मिक और कारोबारी रिश्ता भी मजबूत रहा है। 1965 में आजाद होने के बाद भारत मालदीव को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में से एक था। चीन ने तो मालदीव में 2011 में अपना दूतावास खोला, जबकि भारत ने 1972 में ही मालदीव में अपना दूतावास खोल दिया था। मालदीव में करीब 25 हजार भारतीय निवास करते हैं जो मालदीव में निवास करने वाला दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है।

मालदीव और भारत के बीच अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी हमेशा से ठीक रहे है। दोनों देशों ने आपसी समुद्री सीमाओं का आधिकारिक निर्धारण 1976 में ही सौहार्दपूर्ण तरीके से कर लिया था।

ऑपरेशन कैक्टस: जब भारत ने गयूम की तख्तापलट को नामाक किया

अपने वादे पर अडिग रहते हुए भारत ने हर संकट में मालदीव को मदद किया है।1988 में ऑपरेशन कैक्टस के तहत भारतीय सेना ने तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम की तख्तापलट की कोशिश को नाकाम कर दिया। वहीं 2014 में मालदीव में जल आपातकाल लगने पर महज चार घंटे के भीतर माले में एयरक्राफ्ट के जरिए पानी पहुंचा कर मदद की। कोविड महामारी के वक्त जब कोई किसी को पूछ नहीं रहा था तब भारत ने मालदीव को ऑपरेशन संजीवनी के तहत कोविड-19 से निपटने के लिए सहायता के रूप में 6.2 टन जरूरी दवाओं की आपूर्ति की। इसके अलावा सुनामी आने पर सबसे पहले मदद की बात हो या ध्रुव हेलीकॉप्टर देकर... भारत ने मालदीव की हर संभव मदद की है।

यहां तक की आर्थिक क्षेत्र में भी भारत ने मालदीव की दिल खोलकर मदद की है। इसका परिणाम ही है कि भारत 2021 में मालदीव का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा। पिछले कुछ सालों में भारत ने 2 अरब डॉलर से अधिक के कर्ज और सहायता मालदीव को दी है। हालांकि आर्थिक क्षेत्र में इस संबंध को झटका तब लगा जब मालदीव ने साल 2017 में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर लिया। जो मालदीव का किसी भी देश के साथ ऐसा पहला समझौता था।

सामरिक और सुरक्षा दोनों लिहाज से भारत के लिए महत्वपूर्ण है मालदीव

जहां तक सामरिक और रणनीतिक रूप से भारत के लिए मालदीव के महत्व की बात है तो हिन्द महासागर में मालदीव की सामरिक स्थिति अंतर्राष्ट्रीय समुद्र मार्ग से होने वाले तेल व्यापार के लिए अति महत्वपूर्ण है। हिंद महासागर में मालदीव के क्षेत्र में स्थित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री जहाज मार्ग भारत, जापान और चीन की ऊर्जा आपूर्ति की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। मात्रा की दृष्टि से 97 फीसदी और मूल्य की दृष्टि से 75 फीसदी से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हिन्द महासागर में स्थित मालदीव के अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड शिपिंग लेन्स के जरिए ही होता है। मालदीव भारत के ब्लू इकोनॉमी यानी समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। साथ ही अंडमान निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप के तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए भी यह जरूरी है। मालदीव में मौजूदगी से भारत को हिन्द महासागर के प्रमुख हिस्से पर नजर रखने में काफी मदद मिलती है। इसमें हिन्द महासागर में चीन की गतिविधियों पर भी नजर रखना शामिल है जो अपनी नौसेना का विस्तार कर हिन्द महासागर में अपनी पैठ लगातार बढ़ा रहा है।

चीन क्यों मालदीव पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है?

वहीं अगर चीन की बात करें तो चीन भी हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पहुंच को सुनिश्चित करना चाहता है ताकि वह अपनी तेल आपूर्ति की सुरक्षा कर सके जो इसी रास्ते होकर गुजरता है। इसके लिए मालदीव पर पकड़ बनाए रखना चीन के लिए सबसे मुफीद है। इस वजह से चीन ने मालदीव में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। चीन के कर्ज में डूबे मालदीव उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट में भागीदार बना गया है। इसके साथ ही चीन अपनी स्ट्रींग ऑफ पर्ल्सनीति के तहत पाकिस्तान, जिबूती, श्रीलंका और मालदीव आदि देशों में बंदरगाह बना रहा है और भारी भरकम निवेश कर रहा है। चीन के इस नीति का मकसद हिंद महासागर क्षेत्र में चारो ओर से भारत को घेरना है। इसके अलावा चीन ने मालदीव हावाई अड्डों, पुलों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास में भी काफी पैसा निवेश किया है। आने वाले दिनों में चीन मालदीव में नेवल अड्डा भी बना सकता है।

चीन के कर्ज में डूबा हुआ है मालदीव

चीन के कर्ज में डूबा मालदीव चीन से अपने कुल ऋण का 60 फीसदी से ज्यादा पैसा लेता है और उसके लिए चीन को उसे 92 मिलियन डॉलर हर साल भुगतान करना पड़ता है जो मालदीव के कुल बजट का 10 फीसदी से ज्यादा है। इस तरह चीन मालदीव की संप्रभुता के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है और उसे ऐसे ही डबल ट्रैप डिप्लोमेसी के तहत फंसा रखा है।

भारत-मालदीव संबंधों को बिगाड़ने में चीन की चाल

इस तरह चीन किसी भी कीमत पर भारत और मालदीव के संबंधों को मजबूत और मधुर नहीं होने देना चाहता है और इसके लिए किसी भी हद तक जाने की ताक में हमेशा लगा रहता है। भारत और मालदीव के साथ वर्तमान में बिगड़े राजनयिक संबंधों के पीछे भी चीन का महत्वपूर्ण हाथ है। मालदीव में भारत विरोधी नेताओं को पनाह और समर्थन देने के साथ ही चीन का मालदीव को पहले बिना शर्त कर्ज देना, फिर उसे कर्ज के जाल में फंसाकर अपना आर्थिक उपनिवेश बनाने की चीन की कूटनीति का ही हिस्सा है। जिसके जाल में फंसकर मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू और उनके नेता भारत विरोधी बयान दे रहे हैं।

मुइज्जू ने दशकों पुरानी परंपरा तोड़ी

चीन के चाल में आकर ही मुइज्जू ने दशकों से चली आ रही उस परंपरा को तोड़ दिया जिसमें मालदीव के राष्ट्रपति शपथ लेने के बाद सबसे पहले अपने राजनयिक दौरे पर भारत आते थे लेकिन मुइज्जू पहले तुर्किये और उसके चीन की गोद में जा बैठे।

राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर भारत को देना होगा ध्यान

हालांकि मालदीव-भारत के रिश्तों में आए खटास के लिए सिर्फ मालदीव और चीन को ही जिम्मेदार ठहरा देने भर से काम नहीं चल जाता है। इसके लिए भारतीय राजनेताओं की पहल और विदेश नीति के विश्लेषण की भी जरूरत है। क्योंकि दक्षिण एशियाई देशों में भारत की स्थिति की बात करें तो बढ़ते चीनी प्रभाव के सामने भारत कमजोर होता दिखाई पड़ रहा है। इन देशों की नजर में मदद करने के वादे से लेकर असलियत में मदद पहुंचाने में चीन भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा तेज है। दलाई लामा तक इस बात को कह चुके हैं कि भारत चीन के मुकाबले सुस्त है। दक्षिण एशिया के कई देशों में भारतीय परियोजनाएं देरी से चल रही हैं जिसमें तेजी लाने की जरूरत है। सरकार के स्तर पर पड़ोसी देशों से संबंध बनाने के साथ ही आम लोगों के स्तर पर भी संबंधों को आगे बढ़ाना होगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है आम जनमानस की सोच को बदलना। मालदीव में इंडिया आउट इसलिए चर्चित हुआ क्योंकि सोशल मीडिया पर इसे खूब प्रसारित किया गया। अगर दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संबंध मजबूत होते तो भारत विरोधी ऐसी सोच परवान ही नहीं चढ़ पाती।

भारतीय पर्यटक कम होने से मालदीव को होगा भारी नुकसान

हालांकि इन सब के बीच मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू के चीन के प्रति प्रेम और भारत विरोध की वजह से मालदीव और वहां की जनता को ही नुकसान उठाना पड़ेगा। चीन की बुरी नियत और नीति तो देर सबेर सामने आ ही जाएगी लेकिन पर्यटन के लिहाज से मालदीव को काफी हानि उठाना पड़ सकता है। क्योंकि पर्यटन मालदीव की जीवनधारा है। जो मालदीव के जीडीपी का एक चौथाई हिस्सा है। अगर रोजगार की बात करें तो मालदीव के लोगों के लिए पर्यटन ही रोजगार का सबसे बड़ा आधार है और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कुल रोजगार में पर्यटन का योगदान करीब 70 फीसदी तक है। मालदीव में सबसे ज्यादा पर्यटक भारत से ही जाते हैं। यह बात मालदीव को नहीं भूलनी चाहिए। भारत के पास लक्षद्वीप के रूप में मालदीव का विकल्प है लेकिन मालदीव के पास एक विश्वसनीय और जरूरत के वक्त मदद करने वाला भरोसेमंद दोस्त के रूप में भारत का विकल्प नहीं है।

भारत के दक्षिण में हिंद महासागर के बीच लक्षद्वीप समूह के दक्षिण और श्रीलंका के पास स्थित मूंगे से बने 1200 द्वीपों से बना एक छोटा सा देश है मालदीव... जहां नीले समुद्र से घिरे सफेद रेत के किनारों वाले द्वीप पूरी दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। लेकिन आज पूरी दुनिया की निगाहें यहां जारी राजनीतिक उठापटक और भारत-मालदीव के राजनयिक रिश्तों में आई कड़वाहट पर टिक गई है। दरअसल क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से एशिया के इस सबसे छोटे देश से भारत की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, जातीय, भाषायी और सांस्कृतिक संबंध सदियों पुराने रहे हैं। लेकिन अक्टूबर 2023 में प्रोग्रेसिव अलायंस के नेता मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के साथ दशकों से मजबूत दोनों देशों के संबंधों में तनाव आने शुरू हो गए।  

इंडिया आउट का नारा

दरअसल राष्ट्रपति बनने से पहले से ही मोहम्मद मुइज्जू ने अपना चुनावी अभियान पूरी तरह से भारत विरोधी भावनाओं पर चला रखा था। इस दौरान मुइज्जू ने सोशल मीडिया के जरिए भी भारत के खिलाफ खूब दुष्प्रचार किया। मुइज्जू ने चुनाव के दौरान नारा दिया था इंडिया आउट..। और अक्टूबर 2023 में राष्ट्रपति का पद संभालते ही मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव के आर्किपेलगों में मौजूद 77 भारतीय सैनिकों को वापस लौटाने के साथ ही दोनों देशों के बीच हुए 100 से ज्यादा द्विपक्षीय समझौतों की समीक्षा करने की बात कही। इसके लिए मुइज्जू ने मालदीव की राष्ट्रीय सुरक्षा और वहां की जनता का हवाला दिया। लेकिन मुइज्जू के इस भारत में विरोध में मालदीव की जनता और वहां की राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा इतना अहम नहीं है जितनी चीन की भूमिका महत्वपूर्ण है।

मुइज्जू की जीत और संबंधों में दरार की शुरुआत

दरअसल, भारत-मालदीव संबंधों में आई कड़वाहट कुछ दिनों या महीनों की बात नहीं है, बल्कि यह कई सालों से धीरे धीरे पक रहा था जो अब चीन की सह पर खुलकर सामने आया है। इस पूरी कहानी की चर्चा करेंगे आगे... बहरहाल इन सब के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे को लेकर मालदीव के मंत्रियों की भारत और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी ने आग में घी का काम किया और भारत संग मालदीव का विवाद और गहरा गया। हालांकि भारत के विरोध के बाद मुइज्जू ने अपने उन तीन उपमंत्रियों को बर्खास्त कर दिया, जिन्होंने भारत और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। लेकिन चीन को लेकर मुइज्जू का प्रेम किसी से छिपा नहीं है और भारत से बिगड़ते संबंध का एक महत्वपूर्ण वजह है।

चलिए अब विस्तार से बताते हैं कि भारत और मालदीव के ऐतिहासिक संबंध कैसे रहे है और क्यों भारत-मालदीव के रिश्ते इतने खराब हो गए? आखिर मालदीव में क्यों उठा इंडिया आउट कैंपेन? और इन सब में चीन की क्या भूमिका है? इसके साथ ही यह भी बताएंगे कि भारत के लिए मालदीव कितना महत्व रखता है? और पर्यटन के लिहाज से लक्षद्वीप और मालदीव में क्या विशेष है?

सामाजिक, भाषायी और सांस्कृतिक रूप से मालदीव भारत के करीब

मालदीव का इतिहास करीब 5वीं सदी ईसा पूर्व से शुरू होता है, जहाँ शुरुआती निवासी वर्तमान श्रीलंका और भारत से आए थे। इस तरह देखा जाए तो प्राचीन समय में मालदीव पर भारतीय संस्कृति का अत्यधिक प्रभाव रहा है और सामाजिक, भाषायी और सांस्कृतिक रूप से वह भारत के सबसे करीब रहा है। शुरू में मालदीव के निवासी बौद्ध धर्म का पालन करते थे लेकिन 12वीं सदी के मध्य में अरब प्रभाव में आकर मालदीव इस्लाम में परिवर्तित हो गया।

पुर्तगाल, डच और ब्रिटेन का मालदीव पर कब्जा

जब 16वीं-17वीं सदी में यूरोपियनों ने दक्षिण एशिया में अपने पैर पसारने शुरू किए तब 1558 में पुर्तगालियों ने मालदीव को अपने कब्जे में ले लिया। लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में 17वीं सदी के मध्य में मालदीव पर डचों ने अधिकार जमा लिया। 18वीं सदी के अंत में स्थानीय लोगों ने डचों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और मौके का फायदा उठाते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी ने मालदीव पर अधिकार कर लिया और मालदीव एक ब्रिटिश संरक्षित राज्य बन गया। हालांकि इस दौरान मालदीव एक सल्तनत बना रहा और प्रशासनिक शक्तियां सुल्तानों के पास ही रही।

1965 में आजाद हुआ और 1968 में गणतंत्र बना मालदीव

करीब डेढ सौ साल तक अपने अधिकार में रखने के बाद 26 जुलाई 1965 को ब्रिटेन ने मालदीव को आजाद कर दिया। हालांकि उसके बाद भी तीन सालों तक यहाँ राजशाही बनी रही। जब तक कि नवंबर 1968 में जनमत संग्रह के बाद मालदीव को गणतंत्र घोषित नहीं कर दिया गया। नवंबर 1968 में ही सुल्तान इब्राहिम नासिर मालदीव के पहले राष्ट्रपति बने। 1972 में नासिर दूसरी बार मालदीव के राष्ट्रपति बने। यही वह दौर था जब 1970 से मालदीव में पर्यटन को बढ़ावा दिया जाने लगा जो बाद में वहां का सबसे प्रमुख उद्योग बन गया। हालांकि 1975 में मालदीव में तख्तापलट हुआ और नासिर को गिरफ्तार कर एक द्वीप पर भेज दिया गया।

अब्दुल गयूम का शासन और भारत की मदद

मोहम्मद नासिर के बाद मौमून अब्दुल गयूम सत्ता में आए जो अगले 30 सालों तक मालदीव के राष्ट्रपति बने रहे। उनके खिलाफ भी तख्तापलट की तीन कोशिशें हुईं, जिनमें से एक को भारत ने अपने सैनिक भेजकर नाकाम कर दिया।

मालदीव में नया संविधान का बनना और विदेश नीति में बदलाव के संकेत

गयूम बिना विपक्ष के ही शासन करते रहे मगर उनके शासनकाल के आखिरी हिस्से में राजनीतिक आंदोलनों ने रफ्तार पकड़ी, जिसके परिणामस्वरूप 2008 में मालदीव में नया संविधान लागू हुआ और पहली बार सीधे राष्ट्रपति के लिए चुनाव हुए। इस चुनाव में मोहम्मद नशीद की जीत हुई और गयूम सत्ता से बाहर हो गए। यहीं से मालदीव में सत्ता के लिए न सिर्फ संघर्ष की शुरुआत हो गई बल्कि उसके विदेश नीति में भी बड़ा बदलाव देखने को मिला।

नशीद को राष्ट्रपति बने अभी तीन साल ही हुए थे कि 2011 में विपक्ष ने उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया और फरवरी 2012 में पुलिस और सेना के बड़े हिस्से में विद्रोह के बाद मोहम्मद नशीद को पद से इस्तीफा देना पड़ा।

अब्दुल्ला यामीन का शासन और चीन से दोस्ती

इसके बाद 2013 में हुए चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम के सौतेले भाई अब्दुल्ला यामीन को जीत मिली। अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपति बनने के बाद मालदीव की राजनीति में दो फाड़ हो गए। इसमें एक धड़ा अपने पारंपरिक समर्थक भारत की ओर जबकि दूसरा चीन की तरफ देखने लगा। दरअसल 2012 में हुए पुलिस और सेना के विद्रोह के बाद मोहम्मद नशीद ने भारत से मालदीव में दखल देने की मांग की थ। वहीं यामीन ने चीन के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाई। अब्दुल्ला यामीन 2013 से 2018 तक मालदीव के राष्ट्रपति रहे और इसी दौरान मालदीव में चीन का दखल बढ़ता चला गया। अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान ही मालदीव चीन के महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल हुआ। जिसके तहत चीन दुनिया के अनेक देशों के बीच सड़क, रेल और समुद्री संबंध स्थापित करना चाहता है।

भारत-मालदीव के बीच तनाव की शुरुआत

भारत और मालदीव के रिश्तों में सबसे ज्यादा कड़वाहट 2018 में तब आई, जब तत्कालीन राष्ट्रपति यामीन ने विपक्षी नेताओं को रिहा करने के मालदीव सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानते हुए मालदीव में आपातकाल की घोषणा कर दी। यामीन ने सुप्रीम कोर्ट के जजों को भी गिरफ्तार करवा दिया। भारत ने इस आपातकाल का विरोध किया। भारत का कहना था कि मालदीव में सभी संवैधानिक संस्थाओं को बहाल करना चाहिए और आपातकाल को तुरंत खत्म करना चाहिए।

मालदीव में चीनी हस्तक्षेप

वहीं यामीन ने अपने इस असंवैधानिक कदम के समर्थन के लिए चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब में अपने दूत भेजे थे। चीन तो पहले से ही इस ताक में बैठा था कि मालदीव कब उसे बुलाता है और यामीन के इस कदम ने उसे मौका दे दिया और इसके बाद चीन ने चेतावनी दी कि मालदीव के आंतरिक मामले में किसी भी देश को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। चीन ने यह बात एक तरह से भारत को ध्यान में रखते हुए ही कहा था क्योंकि मालदीव की सामरिक और रणनीतिक स्थिति को देखते हुए चीन मालदीव में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है। दरअसल चीन की मालदीव में मौजूदगी हिन्द महासागर में उसकी रणनीति का हिस्सा है।

वहीं दूसरी तरफ भारत के लिए भी मालदीव चीन से ज्यादा महत्वपूर्ण है। मालदीव भारत के बिलकुल पास में है और अगर चीन वहाँ अपना पैर जमाता है तो भारत के लिए चिंतित होना लाजमी है। भारत के लक्षद्वीप से मालदीव करीब 700 किलोमीटर दूर है और भारत भारत के मुख्य भूभाग से 1200 किलोमीटर दूर।

इब्राहिम सोलिह का शासन और भारत से दोस्ती

अब्दुल्ला यामीन के तानाशाही रवैया की वजह से जब 2018 में मालदीव में चुनाव हुआ तो इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इब्राहिम सोलिह की सरकार के साथ भारत के संबंध काफी मजबूत बने रहे। सोलिह के शासनकाल के दौरान भारत ने मालदीव में काफी निवेश किया। चाहे वह बुनियादे ढांचे के विकास की बात तो या स्वास्थ्य और शिक्षा की। मालदीव ने खुलकर इन क्षेत्रों में भारत की मदद ली। सोलिह के शासनकाल के दौरान मालदीव एक तरह से इंडिया फर्स्ट की नीति पर चल रहा था। और यही बात चीन और उसके समर्थक मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को रास नहीं आ रही थी। भारत से संबंध खराब करने के मकसद से ही मुइज्जू ने चुनाव के दौरान इंडिया आउट कैंपेन चलाया, जो उनके चुनावी अभियान का एक महत्वपूर्ण मुद्दा था।

मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को मुइज्जू ने बनाया मुद्दा

मुइज्जू ने चुनाव के दौरान बार-बार इस बात को कहा कि उनकी सरकार मालदीव की संप्रभुता से समझौता कर किसी देश से करीबी नहीं बढ़ाएगी। और चुनाव जीतने के बाद कहा कि मालदीव के लोग नहीं चाहते हैं कि भारत के सैनिकों की मौजूदगी मालदीव में रहे। मुइज्जू ने कहा कि विदेशी सैनिकों को मालदीव की जमीन से जाना होगा।

हालांकि हिन्द महासागर में भारत की सैन्य मौजूदगी कोई नहीं बात नहीं है। अब्दु और लम्मू द्वीप में 2013 से ही भारतीय नौ सैनिकों और एयरफोर्स की मौजूदगी रही है।

दरअसल भारत ने मालदीव को 2010 और 2013 में दो हेलीकॉप्टर और 2020 में एक छोटा विमान मित्र देश होने के नाते उपहार के रूप में दिया था। इन विमानों का इस्तेमाल खोज-बचाव अभियानों और मरीजों को लाने ले जाने के लिए किया जाना था। इसके लिए विमानों के संचालन और उनकी मरम्मत के लिए भारतीय सेना के करीब 77 जवान मालदीव में मौजूद हैं।

सितंबर 2023 में चुनाव के दौरान इन्हीं भारतीय सैनिकों की वापसी को लेकर तब विपक्ष में रहे मुइज्जू काफी आक्रामक रहे थे। उन्होंने इस बात को खूब हवा दी कि भारतीय सैनिकों की मौजूदगी से मालदीव की राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। मोहम्मद मुइज्जू ने इस बात को भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया कि सोलिह प्रशासन ने चीन की कीमत पर भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाए हैं।

इन सारी बातों ने मालदीव की जनता को एक तरह से भ्रमित कर दिया और इसका परिणाम रहा कि चीन के समर्थक मुइज्जू मालदीव के राष्ट्रपति बन बैठे।

भारत और मालदीव के ऐतिहासिक संबंध

हालांकि मालदीव में हुए इन तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद भारत हमेशा से मालदीव को एक अहम पड़ोसी मुल्क की तरह ही देखता रहा है। लंबे समय तक दोनों देशों के संबंध काफी अच्छे रहे हैं। मालदीव और भारत के बीच राजनैतिक संबंध के अलावा सामाजिक, धार्मिक और कारोबारी रिश्ता भी मजबूत रहा है। 1965 में आजाद होने के बाद भारत मालदीव को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में से एक था। चीन ने तो मालदीव में 2011 में अपना दूतावास खोला, जबकि भारत ने 1972 में ही मालदीव में अपना दूतावास खोल दिया था। मालदीव में करीब 25 हजार भारतीय निवास करते हैं जो मालदीव में निवास करने वाला दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है।

मालदीव और भारत के बीच अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी हमेशा से ठीक रहे है। दोनों देशों ने आपसी समुद्री सीमाओं का आधिकारिक निर्धारण 1976 में ही सौहार्दपूर्ण तरीके से कर लिया था।

ऑपरेशन कैक्टस: जब भारत ने गयूम की तख्तापलट को नामाक किया

अपने वादे पर अडिग रहते हुए भारत ने हर संकट में मालदीव को मदद किया है।1988 में ऑपरेशन कैक्टस के तहत भारतीय सेना ने तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम की तख्तापलट की कोशिश को नाकाम कर दिया। वहीं 2014 में मालदीव में जल आपातकाल लगने पर महज चार घंटे के भीतर माले में एयरक्राफ्ट के जरिए पानी पहुंचा कर मदद की। कोविड महामारी के वक्त जब कोई किसी को पूछ नहीं रहा था तब भारत ने मालदीव को ऑपरेशन संजीवनी के तहत कोविड-19 से निपटने के लिए सहायता के रूप में 6.2 टन जरूरी दवाओं की आपूर्ति की। इसके अलावा सुनामी आने पर सबसे पहले मदद की बात हो या ध्रुव हेलीकॉप्टर देकर... भारत ने मालदीव की हर संभव मदद की है।

यहां तक की आर्थिक क्षेत्र में भी भारत ने मालदीव की दिल खोलकर मदद की है। इसका परिणाम ही है कि भारत 2021 में मालदीव का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा। पिछले कुछ सालों में भारत ने 2 अरब डॉलर से अधिक के कर्ज और सहायता मालदीव को दी है। हालांकि आर्थिक क्षेत्र में इस संबंध को झटका तब लगा जब मालदीव ने साल 2017 में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर लिया। जो मालदीव का किसी भी देश के साथ ऐसा पहला समझौता था।

सामरिक और सुरक्षा दोनों लिहाज से भारत के लिए महत्वपूर्ण है मालदीव

जहां तक सामरिक और रणनीतिक रूप से भारत के लिए मालदीव के महत्व की बात है तो हिन्द महासागर में मालदीव की सामरिक स्थिति अंतर्राष्ट्रीय समुद्र मार्ग से होने वाले तेल व्यापार के लिए अति महत्वपूर्ण है। हिंद महासागर में मालदीव के क्षेत्र में स्थित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री जहाज मार्ग भारत, जापान और चीन की ऊर्जा आपूर्ति की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। मात्रा की दृष्टि से 97 फीसदी और मूल्य की दृष्टि से 75 फीसदी से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हिन्द महासागर में स्थित मालदीव के अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड शिपिंग लेन्स के जरिए ही होता है। मालदीव भारत के ब्लू इकोनॉमी यानी समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। साथ ही अंडमान निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप के तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए भी यह जरूरी है। मालदीव में मौजूदगी से भारत को हिन्द महासागर के प्रमुख हिस्से पर नजर रखने में काफी मदद मिलती है। इसमें हिन्द महासागर में चीन की गतिविधियों पर भी नजर रखना शामिल है जो अपनी नौसेना का विस्तार कर हिन्द महासागर में अपनी पैठ लगातार बढ़ा रहा है।

चीन क्यों मालदीव पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है?

वहीं अगर चीन की बात करें तो चीन भी हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पहुंच को सुनिश्चित करना चाहता है ताकि वह अपनी तेल आपूर्ति की सुरक्षा कर सके जो इसी रास्ते होकर गुजरता है। इसके लिए मालदीव पर पकड़ बनाए रखना चीन के लिए सबसे मुफीद है। इस वजह से चीन ने मालदीव में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। चीन के कर्ज में डूबे मालदीव उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट में भागीदार बना गया है। इसके साथ ही चीन अपनी स्ट्रींग ऑफ पर्ल्सनीति के तहत पाकिस्तान, जिबूती, श्रीलंका और मालदीव आदि देशों में बंदरगाह बना रहा है और भारी भरकम निवेश कर रहा है। चीन के इस नीति का मकसद हिंद महासागर क्षेत्र में चारो ओर से भारत को घेरना है। इसके अलावा चीन ने मालदीव हावाई अड्डों, पुलों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास में भी काफी पैसा निवेश किया है। आने वाले दिनों में चीन मालदीव में नेवल अड्डा भी बना सकता है।

चीन के कर्ज में डूबा हुआ है मालदीव

चीन के कर्ज में डूबा मालदीव चीन से अपने कुल ऋण का 60 फीसदी से ज्यादा पैसा लेता है और उसके लिए चीन को उसे 92 मिलियन डॉलर हर साल भुगतान करना पड़ता है जो मालदीव के कुल बजट का 10 फीसदी से ज्यादा है। इस तरह चीन मालदीव की संप्रभुता के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है और उसे ऐसे ही डबल ट्रैप डिप्लोमेसी के तहत फंसा रखा है।

भारत-मालदीव संबंधों को बिगाड़ने में चीन की चाल

इस तरह चीन किसी भी कीमत पर भारत और मालदीव के संबंधों को मजबूत और मधुर नहीं होने देना चाहता है और इसके लिए किसी भी हद तक जाने की ताक में हमेशा लगा रहता है। भारत और मालदीव के साथ वर्तमान में बिगड़े राजनयिक संबंधों के पीछे भी चीन का महत्वपूर्ण हाथ है। मालदीव में भारत विरोधी नेताओं को पनाह और समर्थन देने के साथ ही चीन का मालदीव को पहले बिना शर्त कर्ज देना, फिर उसे कर्ज के जाल में फंसाकर अपना आर्थिक उपनिवेश बनाने की चीन की कूटनीति का ही हिस्सा है। जिसके जाल में फंसकर मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू और उनके नेता भारत विरोधी बयान दे रहे हैं।

मुइज्जू ने दशकों पुरानी परंपरा तोड़ी

चीन के चाल में आकर ही मुइज्जू ने दशकों से चली आ रही उस परंपरा को तोड़ दिया जिसमें मालदीव के राष्ट्रपति शपथ लेने के बाद सबसे पहले अपने राजनयिक दौरे पर भारत आते थे लेकिन मुइज्जू पहले तुर्किये और उसके चीन की गोद में जा बैठे।

राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर भारत को देना होगा ध्यान

हालांकि मालदीव-भारत के रिश्तों में आए खटास के लिए सिर्फ मालदीव और चीन को ही जिम्मेदार ठहरा देने भर से काम नहीं चल जाता है। इसके लिए भारतीय राजनेताओं की पहल और विदेश नीति के विश्लेषण की भी जरूरत है। क्योंकि दक्षिण एशियाई देशों में भारत की स्थिति की बात करें तो बढ़ते चीनी प्रभाव के सामने भारत कमजोर होता दिखाई पड़ रहा है। इन देशों की नजर में मदद करने के वादे से लेकर असलियत में मदद पहुंचाने में चीन भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा तेज है। दलाई लामा तक इस बात को कह चुके हैं कि भारत चीन के मुकाबले सुस्त है। दक्षिण एशिया के कई देशों में भारतीय परियोजनाएं देरी से चल रही हैं जिसमें तेजी लाने की जरूरत है। सरकार के स्तर पर पड़ोसी देशों से संबंध बनाने के साथ ही आम लोगों के स्तर पर भी संबंधों को आगे बढ़ाना होगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है आम जनमानस की सोच को बदलना। मालदीव में इंडिया आउट इसलिए चर्चित हुआ क्योंकि सोशल मीडिया पर इसे खूब प्रसारित किया गया। अगर दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संबंध मजबूत होते तो भारत विरोधी ऐसी सोच परवान ही नहीं चढ़ पाती।

भारतीय पर्यटक कम होने से मालदीव को होगा भारी नुकसान

हालांकि इन सब के बीच मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू के चीन के प्रति प्रेम और भारत विरोध की वजह से मालदीव और वहां की जनता को ही नुकसान उठाना पड़ेगा। चीन की बुरी नियत और नीति तो देर सबेर सामने आ ही जाएगी लेकिन पर्यटन के लिहाज से मालदीव को काफी हानि उठाना पड़ सकता है। क्योंकि पर्यटन मालदीव की जीवनधारा है। जो मालदीव के जीडीपी का एक चौथाई हिस्सा है। अगर रोजगार की बात करें तो मालदीव के लोगों के लिए पर्यटन ही रोजगार का सबसे बड़ा आधार है और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कुल रोजगार में पर्यटन का योगदान करीब 70 फीसदी तक है। मालदीव में सबसे ज्यादा पर्यटक भारत से ही जाते हैं। यह बात मालदीव को नहीं भूलनी चाहिए। भारत के पास लक्षद्वीप के रूप में मालदीव का विकल्प है लेकिन मालदीव के पास एक विश्वसनीय और जरूरत के वक्त मदद करने वाला भरोसेमंद दोस्त के रूप में भारत का विकल्प नहीं है।

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