आधी रात को आज़ादी क्यों मिली? आज़ादी से जुड़ी दिलचस्प और ऐतिहासिक जानकारी
15 अगस्त 1947...भारतीय इतिहास का वह सुनहरा दिन... जब सदियों की गुलामी और दासता के बाद भारत ने आजादी हासिल की थी। खुदमुख्तार मुल्क के रूप में 15 अगस्त 1947 को भारत ने दुनिया के मानचित्र पर अपनी जगह बनाई और यह तारीख हर भारतीय के दिलों-दिमाग पर सुनहरे अक्षरों में अंकित हो गया। ऐसे में हमे अपनी आजादी से जुड़े कुछ ऐतिहासिक बातों को जानना भी बहुत जरूरी है। मसलन 15 अगस्त को ही आजादी क्यों मिली? आधी रात को ही आजादी का जश्न क्यों मनाया गया? आजाद भारत का पहला झंडा कहां फहराया गया? 14 और 15 अगस्त की रात को संविधान सभा में क्या हुआ? और 1950 से पहले तक हम क्यों 26 जनवरी को भी स्वतंत्रता दिवस के रूप में ही मनाते थे?
15 अगस्त 1947 को ही आजादी क्यों मिली?
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया... लेकिन स्वाभिमानी और देशभक्त भारतीयों ने तो अपना स्वतंत्रता दिवस 17 साल पहले से मनाना शुरू कर दिया था। जब दिसंबर 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज्य’ की घोषणा की गई थी और जनवरी 1930 के पहले सप्ताह में कांग्रेस कार्यसमिति ने प्रस्ताव पारित कर 26 जनवरी 1930 को देश भर में पूर्ण स्वराज्य यानी पूर्ण स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया था। तभी से हर साल 26 जनवरी को गांवों, मुहल्लों, शहरों में हजारों लोग छोटे-बड़े दल बनाकर ब्रिटिश शासन से भारत की पूर्ण आजादी की प्रतिज्ञा लेते, तिरंगा फहराते और इस दिन को स्वाधीनता दिवस के रूप में मानने लगे थे।
दरअसल, सदियों के संघर्ष, त्याग और अहिंसक आंदोलन ने 1947 आते-आते ब्रिटेन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। और 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने घोषणा की, कि जून 1948 तक ब्रिटेन भारत को आजाद कर देगा। इसके साथ फरवरी 1947 में भारत के नए वायसराय के रूप में लॉर्ड लुईस माउंटबेटन की नियुक्ति हुई। जो भारत के आखिरी वायसराय और आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल बने। भारत आने के बाद माउंटबेटन ने अपनी 3 जून 1947 को ‘थर्ड जून प्लान’ जिसे ‘माउंबेटन प्लान’ के नाम से जाना जाता है, उसे पेश किया। इसमें देश की आजादी के साथ ही भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की बात भी कही गई थी। इसके अगले ही दिन 4 जून को एक प्रेस कांफ्रेंस में माउंटबेटन ने ऐलान किया कि अंग्रेज अगस्त 1947 के मध्य तक भारत छोड़ देंगे। माउंटबेटन ने यह भी कहा कि वे 15 अगस्त 1947 को भारतीयों के हाथ में सत्ता सौंप देंगे। माउंटबेटन प्लान को ही भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के रूप में ब्रिटेन की संसद ने जुलाई 1947 में पारित किया।
भारतीयों के लिए आजादी की घोषणा किसी दिवास्वप्न से कम नहीं थी। इसके लिए उन्होंने अनगिनत कुर्बानियां दी थी। सदियों तक यातनाएं सही थी। हालांकि एक दुखद बात यह थी कि देश का बंटवारा भी तय हो चुका था।
अब बात आती है कि माउंटबेटन ने आजादी के लिए 15 अगस्त का ही दिन क्यों चुना? तो 15 अगस्त को आजादी देने का फैसला पूरी तरह से माउंटबेटन का निजी फैसला था। 15 अगस्त के दिन को माउंटबेटन ने इसलिए चुना क्योंकि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 15 अगस्त 1945 को ही जापानियों ने मित्र राष्ट्रों के आगे आत्मसमर्पण किया था और दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति हुई थी। माउंटबेटन का मानना था कि यह दिन उनके लिए खास है और इस तरह उन्होंने भारत को आजाद करने के लिए इस तारीख को चुना।
14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को ही आजादी का जश्न क्यों मनाया गया?
भारत की आजादी का दिन जब 15 अगस्त 1945 तय हो गया तब यह खबर रेडियो पर प्रसारित की गई। जैसे ही यह खबर रेडियो पर प्रसारित हुई तो एक तरफ जहां पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई, वहीं दूसरी तरफ ज्योतिषियों ने इसका भारी विरोध किया। उनका मानना था कि ज्योतिष गणना के मुताबिक यह दिन अशुभ और अमंगलकारी था। इसके लिए दूसरी तारीखों का सुझाव भी दिया गया लेकिन माउंटबेटन 15 अगस्त की तारीख पर ही अड़े रहे। इन सब के बीच ज्योतिषियों ने बीच का रास्ता निकालते हुए 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि का समय तय किया। क्योंकि अंग्रेजी परंपरा के मुताबिक रात 12 बजे के बाद अगला दिन शुरू होता है, वहीं हिन्दी गणना के अनुसार नए दिन की शुरुआत सूर्योदय के साथ होता है। ऐसे में आजादी के जश्न के लिए अभिजीत मुहूर्त को चुना गया, जो रात 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 39 मिनट तक रहने वाला था। और इसी तय समय में जवाहर लाल नेहरू को अपना भाषण भी समाप्त करना था। जैसे ही आजादी का वक्त नजदीक आया, आजादी की दीवानी जनता ने आधी रात से ही जश्न मनाना शुरू कर दिया।
14-15 अगस्त 1947 की रात को संविधान सभा में क्या हुआ?
भारत को आजाद देखने और आजादी के त्योहार को पूरे उमंग से देश भर में मनाने की तैयारी 14 अगस्त 1947 की रात से ही शुरू हो गई थी। उस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए 14 अगस्त 1947 की रात 11 बजे नई दिल्ली में कांस्टिट्यूशन हॉल में डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा का भी विशेष सत्र आयोजित हुआ।
सभा की शुरुआत वंदे मातरम गान से हुआ।
14-15 अगस्त की आधी रात को कॉन्स्टिट्यूशन हॉल में ही- जिसे अब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के रूप में जाना जाता है... पंडित नेहरू ने आजादी का ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' दिया था। उस वक्त तक पंडित नेहरू आजाद भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने थे।
14 और 15 अगस्त की रात को ठीक 12 बजे जब देश आजाद हो रहा था, संविधान सभा के सदस्यों ने आजाद भारत की सेवा और रक्षा के लिए एक प्रतिज्ञा की थी। 75 शब्दों की इस प्रतिज्ञा में- त्याग, तपस्या, सेवा, अर्पण, उचित, गौरवपूर्ण, संसार, शांति, मानव-जाति, कल्याण और खुशी- जैसे शब्द शामिल थे।
संविधान सभा के इसी विशेष सत्र में लुईस माउंटबेटन को आजाद भारत का पहला गवर्नर जनरल नियुक्त किए जाने की घोषणा की गई।
इसके बाद 14-15 अगस्त की रात को ही संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय पताका- तिरंगा- राष्ट्र को भेंट की गई। यह गौरवशाली काम संविधान सभा की महिला सदस्यों की ओर से श्रीमती हंसा मेहता ने किया।
आधी रात को ही इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने और आजादी के जश्न को मनाने के लिए लोगों का हुजूम सड़कों पर उतर आया। लोगों की भीड़ सैलाब की तरह उमड़ पड़ी थी कांस्टिट्यूशन हॉल के बाहर। आजादी की खुशी में मध्य रात्री का वक्त भी ऐसा लग रहा था मानो सूरज की चमकीली रोशनी में नहाई दिन की दोपहर हो।
15 अगस्त 1947 को सबसे पहले तिरंगा कहाँ फहराया गया?
आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को ठीक साढ़े आठ बजे लुईस माउंटबेटन ने आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल के पद का शपथ लिया। उसके बाद नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने शपथ ग्रहण की। यह शपथ ग्रहण समारोह ‘गवर्मेंट हाउस’ में हुआ। जिसे 15 अगस्त 1947 से पहले ‘वायसरॉय लॉज’ कहा जाता था और अब जिसे ‘राष्ट्रपति भवन’ के नाम से जाना जाता है।
शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले सुबह साढ़े दस बजे कॉन्स्टिट्यूशन हॉल के ऊपर तिरंगे को फहराया गया। शाम 6 बजे हजारों लोगों की उपस्थिति में जवाहर लाल नेहरू ने इंडिया गेट के पास ‘प्रिंसेज पार्क’ में पहली बार आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ को फहराया। इसके बाद राष्ट्रगान हुआ और 31 तोपों की सलामी दी गई।
लाल किले पर नेहरू ने पहली बार 16 अगस्त 1947 को तिरंगा फहराया और पहले स्वतंत्रता दिवस का भाषण दिया। इस तरह लाल किले पर आजाद भारत का पहला तिरंगा 16 अगस्त 1947 को फहराया गया।
1950 से पहले 26 जनवरी को भी स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाया जाता था?
आजादी के समय तक हमारा संविधान तैयार नहीं हुआ था। संविधान 1949 में बनकर तैयार हुआ और 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के सदस्यों ने अंतिम रूप से संविधान पर हस्ताक्षर किए और 26 जनवरी 1950 से इसे देशभर में लागू कर दिया गया..... तब से 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। उससे पहले तक 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में ही मनाया जाता था। 26 जनवरी को संविधान इसलिए अपनाया गया, क्योंकि 1930 में इसी तारीख को पहली बार भारत के पूर्ण स्वतंत्रता का संकल्प लिया गया था।
आजादी के बाद अपनाया गया राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत
आजादी तो 15 अगस्त 1947 को मिल गई लेकिन तब तक राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत को अपनाया नहीं जा सका था। 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान अपनाया गया और 24 जनवरी 1950 को ही राष्ट्रीय गीत को भी अपनाया गया।
भारत की आजादी इसकी जनता के लिए एक ऐसे युग की शुरुआत थी जो एक नए दर्शन, विचार और सिद्धांत से प्रेरित था जिसके मूल में लोक संप्रभुता, जनता के जरिए चुनी हुई सरकार और नागरिक अधिकारों की मूलभूत धारणाएं शामिल थीं। जिनमें आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ ही स्वतंत्रता, समानता और बंधुता की बात कही गई। देश की एकता, अखंडता और प्रगति के लिए जरूरी कि भारत के हर नागरिक के अधिकारों का संरक्षण हो। साथ ही हर नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए देश की उन्नति में हाथ बंटाए।