इतिहास
अहमदनगर का भुईकोट किला- यादों के ख़ज़ाने से भरपूर है क़िले का इतिहास।
एक ऐसा किला... जिसके प्राचीर के भीतर भारत के समकालीन इतिहास और उसके स्वतंत्रता संग्राम का एक बड़ा हिस्सा छिपा हुआ है। एक ऐसा किला… जिसने करीब 600 वर्षों के दौरान अनगिनत लड़ाइयां देखी, अनेक साम्राज्यों का पतन देखा, अनेक मालिकों के अधीन रहा और उन तमाम इतिहासों को खुद में समेटे आज भी शान से खड़ा है। महाराष्ट्र के अहमदनगर शहर के बीचों-बीच स्थित यह किला समृद्ध भारतीय इतिहास का प्रतीक है, जो हमारे देश की कई सौ सालों की यात्राओं का गवाह रहा है...और भारतीय इतिहास की यादों से भरा पड़ा है। निजाम शाही वंश के उदय का प्रतीक होने से लेकर मुगलों के वर्चस्व की गवाही तक, मराठों के उदय का गवाह बनने से लेकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने तक... इस विशाल किले ने अपने अंदर भारतीय इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की अनेक अनमोल यादें संजोई हुई है... और यही वजह है कि यह किला भारत के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक किलों में से एक है।
अयोध्या विवाद..कानूनी लड़ाई से लेकर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा तक..आखिर कैसे हुए रामलला विराजमान? क्या है राम मंदिर निर्माण की पूरी कहानी?
‘जित्रा’ के जंगलों में तैयार हुई थी आजाद हिंद फौज की रूपरेखा
सुभाष चंद्र बोस का भारत से निकलना और 9 महीने बाद जर्मनी रेडियो से भारतीयों को संबोधित करना चमत्कार, रहस्य और रोमांच से भरपूर है। भारत से जियाउद्दीन नाम के मुस्लिम फकीर बनकर निकलने से लेकर बीमा कंपनी का ऐजेंट बनकर पेशावर तक की रेल यात्रा करना। उसके बाद काबुल तक ट्रक में यात्रा करना और काबुल में ‘मूक बधिर तीर्थ यात्री’ के रूप में रहने के दौरान असहनीय कष्ट और मुसीबतों को झेलना सिर्फ और सिर्फ सुभाष चंद्र बोस जैसे राष्ट्रभक्त के बूते की बात ही थी।
आधी रात को आज़ादी क्यों मिली? आज़ादी से जुड़ी दिलचस्प और ऐतिहासिक जानकारी
15 अगस्त 1947...भारतीय इतिहास का वह सुनहरा दिन... जब सदियों की गुलामी और दासता के बाद भारत ने आजादी हासिल की थी। खुदमुख्तार मुल्क के रूप में 15 अगस्त 1947 को भारत ने दुनिया के मानचित्र पर अपनी जगह बनाई और यह तारीख हर भारतीय के दिलों-दिमाग पर सुनहरे अक्षरों में अंकित हो गया। ऐसे में हमे अपनी आजादी से जुड़े कुछ ऐतिहासिक बातों को जानना भी बहुत जरूरी है। मसलन 15 अगस्त को ही आजादी क्यों मिली? आधी रात को ही आजादी का जश्न क्यों मनाया गया? आजाद भारत का पहला झंडा कहां फहराया गया? 14 और 15 अगस्त की रात को संविधान सभा में क्या हुआ? और 1950 से पहले तक हम क्यों 26 जनवरी को भी स्वतंत्रता दिवस के रूप में ही मनाते थे?
अगस्त क्रांति: जिसने अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मज़बूर कर दिया
जलियाँवाला बाग़ और ख़ूनी बैसाखी: इतिहास के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक
भारत के इतिहास में कुछ तारीखें यैसी भी हैं जिन्हें कभी नहीं भुलाई जा सकती… यैसी ही एक तारीख है.. 13 अप्रैल…. 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के मौके पर पंजाब में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए नरसंहार ने न केवल ब्रिटिश राज की क्रूर और दमनकारी चेहरे को उजागर किया, बल्कि इसने भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। दरअसल, गुलाम भारत के लोगों पर ज्यादतियां तो बहुत हुईं थीं, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नरसंहार पहली बार हुआ था। इस दिन एक सनकी अंग्रेज की रक्त पिपासु आदेश पर गोरे सिपाहियों ने निहत्थे भारतीयों की खून से होली खेली और तीन तरफ से मकानों से घिरे एक मैदान में निहत्थे हिंदुस्तानियों की भीड़ को गोलियों से भून दिया। मैदान के चारों तरफ बने मकानों की दीवारों में धसीं गोलियों के निशान और एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत का मंजर, आज भी हर भारतीयों के मन को झकझोर देता है। हर दिन यहां आने वाले हजारों लोगों में से बहुत से लोग उस पिरामिडनुमा पत्थर के नजदीक बैठ कर फफक-फफक कर रो पड़ते हैं, जिस पर लिखा है “ यहां से चलाई गई थी गोलियां”…। यह तारीख दुनिया के इतिहास में घटे सबसे बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है।
महात्मा जिनके अनोखे प्रयोग ने ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंका
गांधी ने जहां राष्ट्रीय आंदोलन ने एक नई दिशा दी और आजादी के लिए जनता के दिलों में ललक जगाई, वही अपनी कुशल नेतृत्व और रणनीति से अंग्रेजों को भ्रमित, क्रुद्ध और विभाजित कर उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। रोम्यां रोलां ने गांधी का चरित्र-चित्रण करते हुए कहा कि ‘महात्मा गांधी एक के बाद एक क्रियागत प्रयोग करते जाते हैं जिसके साथ उनका चिंतन निश्चित दिशा में ढलता जाता है और वे सीधी लीक पर आगे बढ़ते रहे हैं लेकिन कभी रुकते नहीं है’। रोम्यां रोलां ने लिखा है कि ‘महात्मा गांधी वे मानव थे जिन्होंने तीस करोड़ जनता को विद्रोह करने के लिए आंदोलित किया, जिन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी और जिन्होंने मानव-राजनीति में पिछले दो सौ सालों के सर्वाधिक शक्तिमान धार्मिक संवेग का समावेश किया’।
महात्मा गांधी और सत्याग्रह: प्रतिरोध का अनोखा तरीका
सत्याग्रह का विचार या यू कहें कि इस शब्द की उत्पत्ति दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी द्वारा गोरी सरकार के रंगभेदी नीतियों के खिलाफ किए गए संघर्षों के दौरान हुई। दरअसल, 1906 में तत्कालीन अफ्रीकी सरकार ने एक अध्यादेश निकाला जिसके मुताबिक एशियाई लोगों के पहचान पत्र में उंगलियों की छाप को अनिवार्य बना दिया गया था। तब जोहान्सबर्ग में रह रहे भारतीयों ने इसे अपना अपमान समझा और इस अपमानजन भेदभाव का मजबूती से विरोध करने के लिए सितंबर 1906 में जोहान्सबर्ग में इकट्ठा हुए। गांधी जी के मन में सत्याग्रह का विचार पहली बार यहीं पनपा।
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