अयोध्या विवाद..कानूनी लड़ाई से लेकर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा तक..आखिर कैसे हुए रामलला विराजमान? क्या है राम मंदिर निर्माण की पूरी कहानी?
रघुकुल के राजा: मर्यादा पुरुषोत्तम राम
सदियों के संघर्ष, उम्मीद और इंतज़ार के बाद आखिरकार वो वक्त आ ही गया जब रामलला अपने बाल रूप में अपनी जन्म स्थली अयोध्या में स्थित श्रीराम मंदिर में पूरे ठाठ-बाट से विराजमान होंगे। श्रीराम अपने इस मोहक रूप में भक्तों समेत श्रीराम मंदिर आने वाले हर श्रद्धालु को अपनी आभा से मोहित करते रहेंगे। त्रेता युग में अवतरित रघुकुल के राजा राम हमारे आदर्श पुरुष हैं। श्रीराम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक हिस्सों में उतने ही आदर और श्रद्धा के साथ देखे जाते हैं जितने कि भारत में। भारत से फैलकर दुनिया भर में पहुंची राम की महिमा अनेक रूप में प्रचलित है। वैदिक काल से ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के अभिन्न अंग रहे हैं और बुराई पर अच्छाई के प्रतीक हैं। यही नहीं श्रीराम धर्म के, धौर्य के, शौर्य के, शक्ति के, भक्ति के, अनंत के, अहम के, विराम के, क्रोध के, मुक्ति के, मोक्ष के भी प्रतीक है। श्रीराम चेतना के बिंदु हैं.. वह बिंदु जिससे प्रस्फुटित होती है अदम्य तेज.. जो समस्त सर्वजना की कल्पना का कारण है। इसीलिए तो कहते हैं कि तन में राम, मन में राम, घट-घट में राम, सब में राम...राम में सब...जन्म से मरण तक जीवन के हर प्रश्न और दुविधा का उत्तर हैं श्री राम... । मानव जीवन के प्रेरणा स्रोत भगवान राम संस्कार के रुप में हर किसी के जीवन में शामिल हैं। उन्हीं श्री राम की जन्मभूमि में मंदिर निर्माण.. उस स्वप्न की तरह है जो सदियों से रामलला के भक्तों के मन में पल रही थी। अब वो घड़ी आ गई है जब यह स्वप्न साकार होने वाला है। भारतीय संस्कृति और संस्कार को खुद में समेटे भारतीय जीवन दर्शन के पर्याय रामलला अपनी पूरी भव्यता और ऐतिहासिकता के साथ श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में 22 जनवरी 2024 को विराजमान होंगे।
इस दिन अयोध्या के श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी और 26 जनवरी से श्रद्धालु मंदिर के गर्भगृह में रामलला के दर्शन-पूजन कर पाएंगे। इसे लेकर देश और दुनिया के अलग-अलग देशों में रहने वाले राम भक्तों में गजब का उत्साह है।
संघर्षों से भरा पड़ा है मंदिर निर्माण का इतिहास
लेकिन जिस श्रीराम मंदिर में जाकर भक्त प्रभु श्रीराम के दर्शन के लिए उत्साहित हैं उस मंदिर का इतिहास कम संघर्षमय और रोचक नहीं है। सदियों से इस जगह पर मंदिर बनाने को लेकर विवाद रहा और इसके लिए राम जन्मभूमि में रामलला के मंदिर निर्माण के लिए राम भक्तों को कई दशकों तक इंतजार करना पड़ा...।
आखिर क्या था वह विवाद और मंदिर निर्माण के लिए कितना कठिन संघर्ष रहा...कब और कैसे शुरू हुआ अयोध्या विवाद और कब-कब गरमाया राम जन्म भूमि का मुद्दा और आखिरकार कैसे मंदिर निर्माण का कार्य पूरा हुआ? क्या हैं इसके ऐतिहासिक और कानूनी पहलू? इसे जानने के लिए हमें पांच सौ साल पहले का इतिहास खंगालना होगा। तो चलिए जानते हैं उस इतिहास के बारे में।
ऐतिहासिक प्रसंग: 1528 में शुरू हुआ था विवाद
जब 1526 में मुगल भारत आए तो उन्हें भारत में अपना वर्चस्व जमाने और खुद को स्थापित करने के लिए राजनीतिक और धार्मिक दोनों पहलुओं से मजबूत होना था। राजनीतिक रूप से तो वे लड़ाइयाँ जितते रहे लेकिन धार्मिक वर्चस्व के नाम पर उन्होंने शुरुआती दौर में भारत में पहले से स्थापित मंदिरों को तोड़कर उन्हें मस्जिद का रूप दे दिया। इसी क्रम में 1528 में बाबर का सेनापति मीरबाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थली पर एक मस्जिद बनवाया और उसे नाम दे दिया बाबरी मस्जिद। इसके साथ ही राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद शुरू हो गया। जिसे लेकर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष सदियों से अपना-अपना दावा करते आ रहे थे और इसे लेकर सदियों तक दोनों पक्षों में लड़ाई चलती रही। हिन्दू पक्ष के मुताबिक भारत में मुगलों के आने से पहले तक अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर मंदिर था जिसे तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई। जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वहां कोई मंदिर नहीं था।
मंदिर-मस्जिद को लेकर 1853 में हुए सांप्रदायिक दंगे और मामला पहली बार अदालत पहुंचा
अगले कई सदियों तक भारत में मुगलों का शासन मजबूती से बना रहा। इस वजह से हिंदू समाज इस मामले को उठा नहीं पाया। जब 19वीं सदी में मुगलों का शासन कमजोर पड़ने लगा तब हिंदू पक्ष इसे लेकर मुखर हुए। 1853 में अयोध्या में ऐसा पहली बार हुआ जब मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर सांप्रदायिक दंगे हुए। कुछ सालों बाद 1859 में इस विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन शासक ने विवादित जगह को चारों तरफ से घेर दिया और इस स्थल को दो हिस्सों में बांट दिया गया। जिसमें दोनों समुदाय परिसर में इबादत और पूजा करने लगे। 1885 में यह मामला अदालत में पहुंचा जब महंत रघुबर दास ने याचिका दायर की कि पूजा स्थल पर मंदिर बनाने की अनुमति दी जाए लेकिन तत्कालीन जज ने इसे खारिज कर दिया।
मंदिर निर्माण को ताकत मिली जब मस्जिद के अंदर रामलला मिले
राम मंदिर विवाद में अहम मोड़ 23 दिसंबर 1949 को तब आया जब 22 और 23 दिसंबर 1949 की दरमियानी रात में मस्जिद के भितरी भाग में रामलला की मूर्तियां मिलीं। 23 दिसंबर की सुबह होते- होते यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई कि जन्मभूमि में भगवान राम प्रकट हुए हैं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम वहां प्रकट हुए हैं। जबकि मुस्लिमों का कहना था कि छिपकर ये मूर्तियां वहां रखी गईं। हालांकि इन सब के बीच 23 दिसंबर को पुलिस ने मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद कुर्क कर उस पर ताला लगा दिया गया। कोर्ट ने तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रियदत्त राम को इमारत का रिसीवर नियुक्त कर उन्हें ही मूर्तियों की पूजा आदि की जिम्मेदारी दे दी थी।
राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक़ के लिए चार अलग-अलग मुकदमे दर्ज हुए
मस्जिद में रामलला की मूर्तियां मिलने के बाद राम जन्म भूमि पर मालिकाना हक जताने के लिए चार अलग-अलग टाइटल सूट दर्ज किए गए। पहली बार जनवरी 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी। इसी तरह का एक और मुकदमा दिसंबर 1950 में महंत परमहंस रामचंद्र दास की ओर दायर किया गया। जिसमें मांग की गई थी कि हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने के लिए और बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति को रखने की इजाजत दी जाए। इसमें मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया। बाद में परमहंस दास ने मुकदमा वापस ले लिया।
वहीं, दिसंबर 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने टाइटल सूट के लिए तीसरा मुकदमा दायर किया। इसमें निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल को हस्तांतरित करने की मांग की। इसके बाद दिसंबर 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए चौथा टाइटल सूट दायर किया।
आजादी के साथ ही राममंदिर निर्माण को लेकर तेज हुआ आंदोलन
दिसंबर 1949 में मस्जिद के अंदर राम की मूर्तियां मिलने पर हिंदुओं में मंदिर बनाने की इच्छा प्रबल हुई। इसे लेकर हिंदू संगठनों ने मंदिर निर्माण के लिए अभियान और आंदोलन शुरू कर दिए। इससे पहले से चला आ रहा विवाद और गहरा हो गया।
1984 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू कर दिया। इसके लिए एक समिति का गठन किया गया। देखते-देखते इस अभियान ने जोर पकड़ा और एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दी। इसके साथ ही ताले दोबारा खोल दिए गए।
राजीव गांधी की सरकार ने मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दी
इससे नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। जून 1989 में बीजेपी ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को एक नया मोड़ दे दिया। वहीं मंदिर निर्माण आंदोलन की तीव्रता और जनभावना को देखते हुए 9 नवंबर 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दे दी।
रथ यात्रा और विवादित ढांचे का गिरना
इसके बाद 25 सितंबर 1990 को बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली। हालांकि आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। इससे राम मंदिर निर्माण आंदोलन और अधिक उग्र हो गया। आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के बीच अक्टूबर 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया। 6 दिसंबर 1992 को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं और कार सेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। जिसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव अपने चरम पर पहुंच गया।
लिब्रहान आयोग और अयोध्या विभाग
बाबरी मस्जिद गिरने के 10 दिन बाद ही 16 दिसंबर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को यानी तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था। लेकिन आयोग को रिपोर्ट देने में 17 साल लग गए। इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया। जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था। लेकिन इन तमाम कोशिशों का नतीजा सिफर ही निकला और मामला आखिरकार सुप्रीम कोर्ट में ही सुलक्ष पाया।
अंतिम निर्णय से पहले काफी लंबी चली कानूनी लड़ाई
रामजन्म भूमि विवाद के ऐतिहासिक प्रसंग को जानने के साथ ही उस कानूनी लड़ाई के इतिहास को भी जानना जरूरी है जो अलग-अलग अदालतों में दशकों चला और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से इसका समाधान संभव हो सका।
चूंकि मामला आपसी बातचीत और समझौते से नहीं सुलझ पाया था और दोनों पक्षों का अपना-अपना तर्क और दावा बना रहा, जिसे लेकर दोनों पक्षों ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक़ पाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल किया और सर्वोच्च न्यायालय में जाने से पहले इन याचिकाओं पर हाईकोर्ट में लंबी बहस चली।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने मालिकाना हक के लिए दाखिल की गई याचिकाओं पर 4 अप्रैल 2002 से सुनवाई शुरू की थी। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान मार्च 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को राम जन्मभूमि स्थल की खुदाई के निर्देश दिए।
एएसआई का रिपोर्ट बना मंदिर निर्माण का आधार
हाईकोर्ट के आदेश पर राम जन्मभूमि स्थल की खुदाई और जांच के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दावा किया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। हालांकि मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे। इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट को इस विषय पर फैसला देने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिका दाखिल की गई लेकिन 28 सितंबर 2010 को सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। जिससे इलाहाबाद हाई कोर्ट को इस मामले में निर्णय देने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: जब तीन हिस्सों में बांटा गया राम जन्मभूमि को
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला दिया। राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा रामलला विराजमान को दिया गया। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। बेंच ने इस फैसले के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को ही आधार माना था। इसके अलावा भगवान राम के जन्म होने की मान्यता को भी फैसले में शामिल किया गया था।
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट कोर्ट के फैसले से कई पक्ष संतुष्ठ नहीं थे और इस फैसले के खिलाफ अलग-अलग पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या की विवादित जमीन पर दावा जताते हुए रामलला विराजमान की तरफ से हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की। दूसरी तरफ, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद कई और पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशंस दायर कर दी।
इन सभी पिटीशंस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि विवादित साइट के आसपास 67 एकड़ क्षेत्र पर कोई धार्मिक गतिविधि नहीं होगी। बाद में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पार्टियों को अयोध्या मंदिर विवाद के समाधान को खोजने के लिए नए प्रयास करना चाहिए और एक सुखद समझौते पर पहुंचने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के सुक्षाव के बाद अलग-अलग पक्षों के बीच आपसी समझौते और मध्यस्थता के जरिए इस विवाद को सुलझाने की कोशिश की गई लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद भी इस विवाद का हल सभी पक्ष मिल कर नहीं निकाल पाए।
सुप्रीम फैसला: जिसने राम मंदिर निर्माण की राह खोल दी
जब सुप्रीम कोर्ट के सुक्षाव के बाद भी अलग-अगल पक्ष आपसी बातचीत के जरिए विवाद को नहीं सुलक्षा पाएं, तब 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या जमीन विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन का मालिकाना हक़ राम जन्मभूमि न्यास को दे दिया। इसके साथ ही करीब पांच सौ साल से भी पुराने अयोध्या विवाद का समाधान हो गया। यह समाधान सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाले संविधान पीठ ने किया।
इस संविधान पीठ में तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल थे। जिन्होंने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया।
पांच जजों की इस संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला सुनाने से पहले 40 दिनों तक लगातार इस मामले की सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया था और 9 नवंबर 2019 को फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को मंदिर बनाने के लिए तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने के निर्देश दिए। इसके साथ ही यह भी आदेश दिया कि 2.77 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के मुताबिक मंदिर के ढांचे के ऊपर ही मस्जिद बनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को भी खारिज कर दिया। संविधान पीठ ने अपने फैसले में साफ किया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक साबित नहीं कर सका। ऐसे में कोर्ट ने फैसला रामलला विराजमान के पक्ष में सुनाया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए कहीं और 5 एकड़ जमीन देने के निर्देश दिए।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने का निर्देश भी दिया। जिस पर अमल करते हुए केंद्र सरकार ने मंदिर निर्माण के लिए 15 सदस्यीय श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की गठन की। इस ट्रस्ट के गठन की घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5 फरवरी 2020 को लोकसभा में की और 19 फरवरी 2020 को राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की पहली बैठक हुई।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप और 1993 में संसद से पारित 'अयोध्या भूमि अधिग्रहण कानून' के प्रावधान के तहत किया गया है। ट्रस्ट के सभी सदस्यों का हिंदू होना अनिवार्य बनाया गया है। जिसमें एक सदस्य अनिवार्य रूप से दलित होगा।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए गठित श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को उसके गठन के तुरंत बाद दान भी मिलना शुरू हो गया। पहला दान केंद्र सरकार ने पांच फरवरी 2020 को ट्रस्ट को एक रुपये का दान नकद में दिया ताकि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ हो सके।
श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन और शिलान्यास
मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट के गठन साथ ही मंदिर निर्माण की तैयारी भी शुरू हो गई और 5 अगस्त 2020 को भूमिपूजन के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण की आधारशीला रखी। और अब 22 जनवरी 2024 को पूरे उमंग, उत्साह और उल्लास के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपनी दिव्यता, भव्यता और ऐतिहासिकता के साथ करोड़ों राम भक्तों के आस्था के प्रतीक बनकर श्रीराम मंदिर में विराजमान होंगे। तब चारो तरफ यह गुंजयमान होगा...
“अस्त्र से उठा है शोर,
शोर में मिली हुई अनेक ही प्रलय विलय की शाम है,
है शाम जो है, जय पराजयों से भिन्न
भिन्न लक्ष्य साधते हैं, जब सरंग अंग धार्य भेदते हैं,
पाप आप अर्थ भी, अनर्थ भी अकाम है,
वो अकाम जिसकी वेदना में है विलीन तत्व,
तत्व जिनकी शौर्य मात्र कल्पना से, गर्जना के उठ रहे हैं तीव्र स्वर
स्वरों में एक नाम है,
वो एक नाम राम है। “