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संविधान दिवस पर विशेष: कैसे बना संविधान और क्या है विशेषता?

Constitution Day

किसी भी सभ्य समाज के संचालन के लिए कुछ नियम कायदों की जरूरत होती है। लोकतांत्रिक प्रणाली में संविधान के जरिए इसकी व्यवस्था की जाती है। दरअसल संविधान किसी भी देश की शासन प्रणाली और राज्य को चलाने के लिए बनाया गया एक दस्तावेज होता है। अथक प्रयास के बाद 1949  में 26 नवंबर के दिन भारत के संविधान को अपनाया गया था। भारत का संविधान देश के लोगों के लिए एक जीवंत और प्रेरणादायक दस्तावेज है जिसने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के बंटवारे को औपचारिक रूप दिया है। साथ ही संविधान को बरकरार रखने के लिए इन तीन स्तंभों को वैध नियम और जिम्मेदारियां दी हैं, जिससे नागरिकों की उम्मीदों और अपेक्षाओं को साकार किया जा सके। संविधान से नागरिक को अधिकार मिलता है, साथ ही नागरिक इसका पालन करके,  इसे संरक्षित करके संविधान को ज्यादा सार्थक और ताकतवर बनाते हैं।  

क्या है संविधान दिवस और क्यों मनाते हैं संविधान दिवस?

सैकड़ों साल की दासता और गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। भारत की आजादी उसकी जनता के लिए एक ऐसे युग की शुरुआत थी जो एक नए दर्शन, विचार और सिद्धांत से प्रेरित था। जिसके मूल में लोक संप्रभुता, प्रतिनिधिमूलक सरकार और नागरिक अधिकारों की मूलभूत अवधारणाएं शामिल थीं। जिनमें आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ ही स्वतंत्रता, समानता और बंधुता की बात कही गई। इस नए दर्शन, विचार और सिद्धांत का आधार बना हमारा संविधान यानी भारत का संविधान.... जिसे संविधान सभा में 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया। नागरिकता, निर्वाचन और अंतरिम संसद से संबंधित प्रावधानों के साथ ही अस्थायी और संक्रमणकारी उपबंधों को उसी दिन से लागू कर दिया गया। जबकि बाकी संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया। 26 जनवरी 1950 को संविधान में उसके प्रारम्भ की तारीख कहा गया। यही वजह है कि हर साल 26 नवंबर का दिन संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11 अक्टूबर 2015 को मुंबई में एक ऐतिहासिक घोषणा की। उन्होंने बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर स्मारक की नींव रखते हुए कहा था कि हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। इसके बाद 19 नवंबर 2015 को भारत सरकार ने गजट नोटिफिकेशन के ज़रिए 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया और 26 नवंबर 2015 को पहला संविधान दिवस मनाया गया। तब से हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है।  

संविधान निर्माण की पृष्ठभूमि

संविधान के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। तकरीबन दो सौ साल की गुलामी के बाद ब्रिटिश हुकूमत से आजाद होने पर देश में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए एक संविधान की जरूरत महसूस हुई... लेकिन ये संविधान कैसा हो और इसे कौन बनाएगा इस पर लंबा मंथन चला। दरअसल भारत में अंग्रेजों के आगमन और आजादी के आंदोलन के दौरान हुए संघर्ष ने संविधान के निर्माण की बुनियाद डाल दी। 1600 ईस्वी में अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए भारत आए। शुरुआत में व्यापारिक कामकाज तक सीमित रहने वाले अंग्रेज़ों ने 1775 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा के राजस्व और दीवानी न्याय के अधिकारों पर कब्जा जमा लिया। 1857 के सिपाही विद्रोह के बाद तो ब्रितानी हुकूमत ने आधिकारिक तौर पर भारत का शासन अपने हाथ में ले लिया। और यहीं से शुरू हुई असली आजादी की जद्दोजहद। लंबे संघर्ष के बाद 1930 आते आते देश में पूर्ण स्वराज का माहौल बन चुका था। इस दौरान संविधान निर्माण की मांग भी जोर पकड़ने लगा था।  हालांकि भारत के संविधान निर्माण का निश्चित उल्लेख, जो भले ही इन शब्दों में या इस नाम विशेष से न हो, सर्वप्रथम मांग बाल गंगाधर तिलक ने 1895 में स्वराज बिल के जरिए की थी। वहीं, भारत शासन एक्ट 1919 के लागू होने के बाद 1922 में महात्मा गांधी ने संविधान सभा और संविधान निर्माण की मांग की और कहा कि जब भी भारत को स्वाधीनता मिलेगी तो भारतीय तो भारतीय संविधान का निर्माण भारतीय लोगों की इच्छाओं से होगा।

नेहरू रिपोर्ट और संविधान सभा की औपचारिक मांग

अगस्त 1928 में भारत के संविधान का सिद्धांत निर्धारित करने के लिए मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई। इस समिति की रिपोर्ट नेहरू रिपोर्ट के नाम से मशहूर हुई। 1934 में कांग्रेस कार्यकारिणी ने वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा द्वारा एक संविधान तैयार करने की मांग की। यह पहला मौका था जब संविधान सभा के लिए औपचारिक रूप से एक निश्चित मांग पेश की गई। इसके बाद 1936 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में संविधान सभा द्वारा संविधान निर्माण की मांग की गई। 1938 में कांग्रेस के पंडित जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की कि स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गई संविधान सभा करेगी और इसमें कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं होगा। नेहरू की इस मांग को 1940 में ब्रिटिश सरकार ने मान लिया जिसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है।

क्रिप्स मिशन और कैबिनेट मिशन का भारत आगमन

जैसे-जैसे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन जोर पकड़ता गया, ब्रिटिश हुकूमत पर संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा के गठन का दबाव भी बढ़ता गया। इसी दबाव में, 1942 में ब्रिटिश सरकार के कैबिनेट मंत्री सर स्टैफोर्ड क्रिप्स अपने साथियों के साथ भारत के स्वतंत्र संविधान के प्रारूप के प्रस्ताव के साथ भारत आए। क्रिप्स प्रस्ताव को मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया। मुस्लिम लीग भारत को दो स्वायत्त हिस्सों में बांटने की मांग कर रहा था। आखिरकार, 1946 में ब्रिटिश हुकूमत ने तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन को भारत भेजा। इसमें लॉर्ड पेथिक लॉरेंससर स्टैफर्ड क्रिप्स और ए वी अलेक्जेंडर शामिल थे। कैबिनेट मिशन ने मुस्लिम लीग की दो संविधान सभाओं की मांग को खारिज कर दिया और कुछ अहम सुझाव दिए।

कैबिनेट मिशन और संविधान सभा के लिए चुनाव

कैबिनेट मिशन ने एक महत्वपूर्ण काम यह किया कि मुस्लिम लीग को उनकी मांगों को दायरे में ही एक संविधान सभा के गठन पर राजी कर लिया। कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान निर्माण सभा के लिए कुल सदस्य संख्या 389 निर्धारित की गई। इनमें से 292 सदस्य ब्रिटिश भारत के 11 प्रांतों से, 4 सदस्य चीफ कमिश्नरों के चार प्रांतों यानी दिल्ली, अजमेर-मारवाड़, कुर्ग और ब्रिटिश बलूचिस्तान से एक-एक और बाकी 93 सदस्य भारतीय रियासतों से चुने जाने थे। आखिरकार, जुलाई से अगस्त 1946 के बीच संविधान सभा की कुल 389 सीटों में से ब्रिटिश भारत के लिए आवंटित 296 सीटों पर चुनाव हुआ।  इसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 208,  मुस्लिम लीग को 73 और छोटे समूहों और स्वतंत्र सदस्यों को 15 सीटें मिलीं। भारतीय रियासतों ने खुद को सभा से बाहर रखने का फैसला किया इसलिए वो सीटें भर नहीं पाईं।

संविधान सभा का गठन और पहली बैठक

संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन हॉल, जिसे अब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के रूप में जाना जाता है, में हुई। इसमें महात्मा गांधी को छोड़कर उस वक्त के राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ी करीब हर बड़ी शख्सियत शामिल थी। मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग को लेकर बैठक का बहिष्कार किया। लिहाजा पहली बैठक में कुल 207 सदस्यों ने हिस्सा लिया। सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉ सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। दो दिन बाद 11 दिसंबर को डॉ राजेन्द्र प्रसाद सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और डॉ एच सी मुखर्जी और वीटी कृष्णमाचारी को सभा का उपाध्यक्ष निर्वाचित किया गया।

उद्देश्य प्रस्ताव और प्रारूप समिति का गठन

13 दिसंबर 1946 को पंडित नेहरू ने सभा के सामने पहली बार संविधान सभा के उद्देश्य सामने रखे। इन उद्देश्यों में ही दरअसल सभा का ढांचा और उसके कामकाज की झलक थी।  इसमें भारत को एक स्वतंत्रसंप्रभु गणराज्य घोषित किया गया। ब्रिटिश भारत के सभी हिस्सों और इसमें शामिल होने की इच्छा रखने वाले क्षेत्रों को संघ के दायरे में लाया गया। संप्रभु भारत के सभी अधिकार और शक्तियों का स्रोत जनता को बनाया गया। सभी के लिए न्यायसामाजिक आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रतासुरक्षा और समान अवसरविचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताकहीं भी आने जाने और संगठन बनाने की स्वतंत्रता जैसी कई बातें घोषित की गई।  इस प्रस्ताव को 22 जनवरी 1946 को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। बी. एन. राव द्वारा तैयार किए गए संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के लिए संविधान सभा ने 29 अगस्त1947 को एक संकल्प पारित करके प्रारूप समिति का गठन किया। इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ भीमराव अम्बेडकर को चुना गया। इस समिति में अंबेडकर के अलावा 6 और सदस्य थे।

 

Drafting Committee Members
Drafting Committee Members 

राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत को अपनाना

संविधान निर्माण के दौरान संविधान सभा ने कुछ और महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। मई 1949 में राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता का सत्यापन किया गया। 22 जुलाई 1947 को भारत के राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया। 24 जनवरी 1950 को संविधान पर संविधान सभा के सदस्यों ने अंतिम रूप से हस्ताक्षर किए। 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान को अपनाया गया। 24 जनवरी 1950 को ही राष्ट्रीय गीत को अपनाया गया। यही नहीं संविधान सभा ने ही 24 जनवरी 1950 को डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना।

संविधान को सर्वसम्मति से अपनाना

इस तरह कुल 2 साल 11 महीने और 17 दिनों में संविधान सभा की 11 प्रमुख बैठक और कई उप समितियों की बैठकें हुईं। डॉ भीमराव अंबेडकर की अगुवाई में संविधान निर्माताओं ने 60 देशों के संविधानों पर चर्चा की। डॉ अंबेडकर ने 4 नवंबर 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया। इसी दिन संविधान पहली बार पढ़ा गया। इस पर पांच दिन तक आम चर्चा हुई। संविधान के प्रारूप पर ऐसी तीन बैठकें हुई। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों ने अंतिम रूप से हस्ताक्षर किए। और, आखिरकार 26 नवंबर 1949 को संविधान को सर्वसम्मति से अपना लिया गया।

भारत शासन अधिनियम,1935: संविधान का मूल स्रोत

हमारे संविधान पर भारतीय शासन अधिनियम 1935 का सबसे ज्यादा प्रभाव है, लेकिन संविधान सभा ने कई देशों के संविधानों का अध्ययन कर उससे अच्छी चीजें लेने की कोशिश की। 9 दिसंबर, 1946 को डॉ सच्चिदानंद की अध्यक्षता में जब भारतीय संविधान सभा का पहला अधिवेशन हुआ तो इसके सामने सबसे बड़ी दिक्कत भारत की विविधता, संस्कृति, भाषाओं और बोलियों को समाहित करने की थी। परेशानी ये थी कि इतने बड़े देश, इतनी ज़्यादा सांस्कृतिक विविधताओं और इतने बड़े भू-भाग की ज़रूरतों को इसमें किस तरह शामिल किया जाए कि सब संतुष्ट भी हो जाएं और कोई विवाद भी न हो। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने तक संविधान सभा में तमाम विषयों पर लंबी चर्चा हुई। इसके लिए भारतीय संविधान सभा ने कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया। संविधान का मूल प्रारूप भारतीय शासन अधिनियम 1935 ही रहा। इसमें से करीब 250 अनुच्छेद सीधे-सीधे या थोड़े बहुत बदलाव के साथ ले लिए गए। 1935 के अधिनियम में कुल 451 धाराएं और 15 परिशिष्ट थे। इस अधिनियम से जो चीज़ें संविधान में समाहित की गई इनमें द्वैध शासन की स्थापना, संघीय व्यवस्था, अलग प्रांतीय सरकार का प्रावधान, राज्यपाल का कार्यकालसंघीय न्यायालय, संसद की सर्वोच्चता और संसद में द्विसदन व्यवस्था, लोक सेवा आयोग, प्रशासनिक विवरण और आपातकालीन उपबंध शामिल हैं।

60 देशों के संविधान को पढ़ने के बाद तैयार हुआ भारतीय संविधान

इनके साथ-साथ ब्रिटिश संविधान में वर्णित संसदात्मक शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता, कानून बनाने की प्रक्रिया, विधि का शासन, मंत्रिमंडलीय प्रणाली, परमाधिकार लेख, संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनवाद भारतीय संविधान का हिस्सा बने। इसके अलावा संविधान में मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति और उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति, उच्चतम और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि, वित्तीय आपातकाल और न्यायपालिका की स्वतंत्रता जैसे विषय संयुक्त राज्य अमेरिका से लिए गए। संघात्‍मक विशेषताएं, अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के पास, केंद्र के जरिए राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और उच्चतम न्यायालय का परामर्श और न्यायिक निर्णय की शक्ति कनाडा के संविधान से समाहित किया गया है।

अलग-अलग देशों के संविधान से लिए गए अलग-अलग तत्व

संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान और समाज-सेवा आदि क्षेत्र से विशिष्ट व्यक्तियों का मनोनयन आयरलैंड के संविधान से... प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान, केंद्र और राज्य के बीच संबंध और उनकी शक्तियों का विभाजन, व्यापार-वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक ऑस्ट्रेलिया के संविधान से... जबकि आपातकाल के लागू रहने के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियां, आपातकाल के समय मूल अधिकारों का स्थगन जर्मनी के संविधान से लिया गया।

अनेक संविधानों का महत्वपूर्ण तत्व शामिल

दक्षिण अफ्रीका के संविधान से संशोधन की प्रक्रिया और प्रावधान के अलावा राज्यसभा में सदस्यों के निर्वाचन का तरीक़ा लिया गया है। तत्कालीन सोवियत संघ के संविधान से भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान, मूल कर्तव्यों और प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का आदर्श लिया गया। इसके अलावा विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया जापान के संविधान से जबकि गणतंत्रात्मक स्वरूप और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता, बंधुता के आदर्श फ्रांस के संविधान से लिए गए। जब संविधान तैयार हुआ तो इसमें 22 भाग, 8 अनुसूचियां और 395 अनुच्छेद थे। संविधान सभा ने जो दस्तावेज तैयार किया वो दुनिया सबसे बड़ा लिखित संविधान था।

दुनिया का सबसे अनोखा और सबसे बड़ा लिखित संविधान

करीब 60 देशों के संविधान का अध्ययन के बाद तैयार किया गया हमारा संविधान दुनिया में अनोखा होने के साथ ही कई मायनों में बेहद खास और अपनी अलग पहचान रखता है। भारतीय संविधान की खासियत की वजह से ही देश में केंद्र और राज्य के साथ स्थानीय स्वशासन का रास्ता साफ हुआ। दरअसल भारतीय संविधान... अपने में निहित तत्वों और मूल भावनाओं की वजह से दुनिया का सबसे अनोखा संविधान है। मूल संविधान को स्वीकार करने के बाद भी इसमें वक्त वक्त पर कई तरह के बदलाव होते रहे और इसमें समय के साथ अहम परिवर्तन किये जाते रहे हैं। मूल संविधान में एक प्रस्तावना, 22 भागों में विभक्त 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं। 1951 के बाद से हुए तमाम संशोधनों के बाद मूल संविधान से करीब 20 अनुच्छेद और भाग 7 को हटा दिया गया और करीब 90 अनुच्छेद, 4ए, 9ए, 9बी और 14ए यानी चार भागों को जोड़ा गया जबकि चार अनुसूचियां यानी 9, 1011 और 12 को जोड़ा गया। दुनिया के किसी भी संविधान में इतने अनुच्छेद और अनुसूचियां नहीं है।

अनेक विशेषताओं से भरा है संविधान

भारत के संविधान की एक और विशेषता ये है कि दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसकी खासियत ये है कि ये न तो लचीला है न ही सख्त। भारत के संविधान के तहत लोकतांत्रिक व्यवस्था .. संघात्मक भी है और एकात्मक भी। संविधान में संघात्मक संविधान की सभी विशेषताएं मौजूद हैं। साथ ही आपातकाल के दौरान केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए भी प्रावधान निहित हैं। एक ही संविधान में केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों के कार्य संचालन के लिए व्यवस्थाएं की गई हैं। इसमें सिर्फ एक नागरिकता का प्रावधान रखा गया है। भारत सरकार का संसदीय रूप दुनिया में अनोखा है। देश में संसदीय संप्रभुता है तो न्यायिक सर्वोच्चता भी। भारत का संविधान एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका प्रणाली उपलब्ध कराता है। संविधान देश के नागरिकों को मौलिक अधिकार देता है और उनकी रक्षा भी करता है। इसके अलावा संविधान के चौथे भाग में उल्लेखित राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत भी दुनिया में अनोखे हैं। संविधान देश के नागरिकों को मौलिक अधिकार देता है तो उसके साथ साथ मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन करने को भी कहता है।  

नागरिकों की सुरक्षा और समानता की गारंटी देता है संविधान

कुछ चुनौतियों के बावजूद भारतीय संविधान देश के आम नागरिकों के साथ साथ पिछड़े तबकों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा और समानता की गारंटी देता है। हमारा संविधान देश को एक धर्मनिपरेक्ष राज्य बनाता है। भारत में 18 वर्ष से अधिक उम्र के हर नागरिक को जाति, धर्म, वंश, लिंग, साक्षरता के आधार पर भेदभाव किए बिना मतदान देने का अधिकार हासिल है और ये संविधान लागू होने के साथ ही सभी को एक साथ हासिल हुआ जो भारतीय संविधान की खास विशेषता है। भारतीय संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के शक्तियों का अलग-अलग बंटवारा है। इसके अलावा संविधान में निर्वाचन आयोग, नियंत्रक और महालेखाकार, संघ लोक सेवा आयोग जैसे स्वतंत्र निकाय की भी व्यवस्था है जो लोकतांत्रिक तंत्र के अहम स्तंभों की तरह काम करते हैं। इसके अलावा मूल रूप से दो स्तरीय यानी केन्द्र और राज्य सरकारों के अलावा 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बाद संविधान में तीन स्तरीय स्थानीय सरकार का प्रावधान है। ये हमारे संविधान की अहमियत को और बढ़ा देता है।

संविधान संशोधन: समय के मुताबिक संविधान में संशोधन का प्रावधान

हमारे संविधान की एक नहीं अनेक खूबियां हैं। इसमें एक विशेषता संविधान संशोधन की है। चूंकि समय-समय पर परिस्थितियों के अनुकूल संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ती रहती है। इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने भी संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को अपनाया। उनकी दूरदर्शिता के कारण ही संविधान संशोधन प्रक्रिया को अपनाकर... बदलते जरुरतों के हिसाब से कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को संविधान में शामिल किया गया। दरअसल संविधान संशोधन की प्रक्रिया और संसद के समक्ष न्यायपालिका की शक्ति को लेकर संविधान सभा में कुछ आशंकाएं व्यक्त की गयी थीं। संविधान सभा के कई सदस्य संविधान में संशोधन के लिए ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था की तरह लचीला प्रावधान रखने के पक्ष में थे। लेकिन प्रारूप समिति ने आखिर में साधारण और जटिल प्रक्रिया के मिश्रण को अपनाया। संविधान सभा के सामने एक बड़ा सवाल ये भी था कि ये संविधान कब तक देश की जरूरतें पूरी कर सकता है और अगर जरूरत पड़ी तो इसमें बदलाव कैसे किए जाएं। इसका एक जवाब था कि जब ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को अपनाया जा रहा है तो फिर संविधान में संशोधन के लिए ब्रिटिश मॉडल अपनाया जाए। ब्रिटेन में संसद सर्वोपरि है और वहां न्यायालय की भूमिका न्यायिक व्याख्या के दायित्व तक सीमित है। लेकिन संशोधन के इतने आसान तरीके पर कई सदस्य सहमत न थे। आखिरकार तय हुआ कि भारत में मिश्रित व्यवस्था अपनाई जाए।

भारतीय संविधान: न ज्यादा लचीला न ज्यादा सख्त

भारतीय व्यवस्था में न तो ब्रिटिश मॉडल जैसा लचीलापन है न अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसी सख़्त प्रक्रिया। संविधान सभा ने विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिद्धांत को अपनाया। संघीय व्यवस्थाओं में न्यायालय केवल विधि और कार्यपालिका के आदेशों की ही समीक्षा करता है लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संविधान संशोधनों की भी समीक्षा का अधिकार दिया गया। संविधान के भाग-20 में अनुच्छेद-368 के तहत संविधान संशोधन से संबंधित प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। संशोधन की प्रक्रिया के लिहाज़ से संविधान के अनुच्छेदों को तीन भाग में विभाजित किया जा सकता है। इनमें कुछ को संसद में साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है। जबकि कुछ को संसद में दो-तिहाई बहुमत से संशोधित किया जा सकता है और तीसरे जिन्हें संसद में दो-तिहाई बहुमत के साथ कम से कम आधे राज्यों के विधान मंडलों के संकल्प से ही स्वीकृत किया जा सकता है।

संविधान संशोधन की अलग-अलग प्रक्रिया

संविधान संशोधन विधेयक पारित करने की प्रक्रिया साधारण विधेयकों के पारित करने की प्रक्रिया से अलग रखी गई है। अनुच्छेद-108 के तहत किसी विधेयक को पारित करने के सम्बन्ध में दोनों सदनों के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाए जाने का प्रावधान है। यह प्रावधान संविधान के संशोधन संबंधी विधेयकों पर लागू नहीं होता। संविधान संशोधन से जुड़ी पूरी प्रक्रिया का उल्लेख अनुच्छेद- 368(2) में बताई गयी है।  

संविधान में खास बात यह है कि इसमें अधिकार और कर्तव्य के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। मूल अधिकार जहां भारत के सभी नागरिकों के बुनियादी मानव अधिकार को परिभाषित और सुरक्षित करते हैं वहीं मूल कर्तव्य नागरिकों को नैतिक उत्तरदायित्व का बोध कराते हैं। देश के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि निजी और राष्ट्रीय जीवन में संविधान की मूल भावनाओं और प्रावधानों का निष्ठापूर्वक पालन करें। निजी और सार्वजनिक जीवन में आचरण की शुचिता रखें, संवैधानिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं में आस्था रखें। चूकि, इसी संविधान से हम देश को संचालित करने के साथ ही लोकतांत्रिक और जनतंत्र को लगातार मजबूत करने की ताकत प्राप्त करते हैं।

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