संदर्भ विशेष
अगस्त क्रांति: जिसने अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मज़बूर कर दिया
मानवता के कवि: गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मानव सभ्यता के इतिहास में विरले ही कुछ महापुरुष पैदा होते हैं जिन्हें देश काल की सीमाएं बांध नहीं पाती। ऐसे विलक्षण महापुरुषों की प्रतिभा का परिचय चिरन्तन विश्व की व्यापकता में ही मिलता है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ऐसे ही एक महामानव थे। वे केवल भारत के ही नहीं पूरी दुनिया के कवि हैं, विश्व के ‘मानव कवि, कविनां कवितम’...। लेकिन वे केवल कवि ही नहीं, कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार और उतने ही बेजोड़ चित्रकार भी थे। भारत के राष्ट्रगान के लेखक, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पहले भारतीय और शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के संस्थापक रवीन्द्रनाथ ठाकुर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मित्र, भारत की स्वतंत्रता के लिए लगातार प्रयत्नशील, धर्मभीरू और समाज सुधारक के रूप में इतिहास में उनका स्थान अद्वितीय है। संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद मानवता का स्वर उनमें कूट-कूट कर भरा था... और यही वजह है कि कालांतर में वह गुरुदेव कहलाने लगे।
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अल-जवाहिरी को मारने वाला अमेरिका का सीक्रेट मिसाइल: क्या है खासियत और खूबियां?
दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकी संगठन अलकायदा के प्रमुख अयमान अल जवाहिरी को अमेरिका ने एक सीक्रेट मिसाइल के जरिए मार गिराया। अपनी सटीक निशाना और बिना किसी विस्फोट और अन्य हानी के लक्ष्य को मारने वाले इस रहस्यमयी मिसाइल का इस्तेमाल अमेरिका पहले भी आतंकियों को मारने में कर चुका है। लेकिन जवाहिरी की मौत के बाद इस मिसाइल को लेकर चर्चा पूरी दुनिया में होने लगी कि आखिर क्या है Hellfire R9X Missile... और कैसे यह बिना चुके अपने टारगेट को काट डालता है। अमेरिका का यह रहस्यमयी Hellfire R9X Missile की तमाम खूबियों और खासियतों से लैस है।
परमाणु हमले के लिए हिरोशिमा और नागासाकी को ही क्यों चुना गया? दुनिया का पहला परमाणु हमला और बर्बादी की कहानी...
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान पर गिराए गए परमाणु बम की भयावह घटना को कोई कैसे भूल सकता। दुनिया के इतिहास में घटे इस सबसे बड़ी युद्ध त्रासदी ने पलक झपकते ही दो हंसते-खेलते शहरों को मिट्टी में मिला दिया, बर्बादी की ऐसी पराकाष्ठा लिखी दी, जो न कभी हुआ था और ना ही उसकी कल्पना की जा सकती थी। सात दशक से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद, आज भी हिरोशिमा और नागासाकी के लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं उस घटना को याद कर। इस परमाणु हमले ने लाखों लोगों की जीवन को लील लिया। लाखों लोगों के जीवन को जिंदा नरक बना दिया। दरअसल इस वीभत्स हमले में जो मरे...वो बेहद दुखदायी तो था ही...लेकिन असल दुर्भाग्य तो उन लोगों और पीढ़ियों का शुरू हुआ जो इसमें बच गए, जख्मों औ परमाणु विकिरण से तिल-तिल मरने के लिए।
राजद्रोह: SECTION 124A, क्यों विवादित है और क्यों होता है विरोध?
जब देश आजाद हुआ तब संविधान सभा में इस औपनिवेशिक कानून के औचित्य और उसके पहलुओं पर खूब बहस हुई। शुरू में जब संविधान का मसौदा तैयार किया गया, तब राजद्रोह को अनुच्छेद 13(2) में शामिल किया गया था। लेकिन संविधान सभा के सदस्य के एम मुंशी ने इसे भारतीय लोकतंत्र के ऊपर खतरा बताया। उन्होंने कहा कि “असल में, किसी भी लोकतंत्र की सफलता का राज ही उसकी सरकार की आलोचना में है।“ यह के एम मुंशी और सिख नेता भूपिंदर सिंह मान का ही संयुक्त प्रयास था, जिसकी वजह से संविधान से ‘राजद्रोह’ शब्द हमेशा के लिए हटाया जा सका। और इस तरह अनुच्छेद 19(1) के तहत अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता का रास्ता खुला। हालांकि, धारा 124A आईपीसी 1860 में बना रहा, और आजादी के बाद भी इस धारा का प्रयोग अनेक मौकों पर किया गया। राजनीतिक पार्टियों के लिए धारा 124A के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद भारत के संविधान में पहला संशोधन राजद्रोह की धारा को लेकर ही हुआ था।
जम्मू-कश्मीर परिसीमन: इतिहास, बदलाव और असर !
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाला अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार द्वारा खत्म करने के बाद, इस संवेदनशील सूबे को देश की मुख्यधारा से जोड़ने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए ठोस जमीन तैयार करने की कोशिश कई स्तरों पर हो रही है। इन कोशिशों में जम्मू-कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के लिए नया परिसीमन भी शामिल है। इसके तहत जम्मू-कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन के लिए मार्च 2020 में गठित जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। चुनाव आयोग ने इसके आधार पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा और लोकसभा सीटों को लेकर नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया। परिसीमन आयोग के सुझावों को लागू करने के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीति में काफी बदलाव आने की उम्मीद है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन कराने की जरूरत क्यों पड़ी और इसकी वजह से जम्मू-कश्मीर में किस तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे... साथ ही भविष्य में जम्मू-कश्मीर की आवाम और वहां की राजनीति पर इसके क्या असर होंगे।
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भारत में पंचायती राज संस्थाओं का महत्व, उपयोगिता और जरूरत
भारत गांवों में रहता था और आज भी गांवों में रहता है। भले ही भारत में औद्योगिक विकास काफी हो चुका है, और शहरों का दायरा भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है... इसके बावजूद आज भी आधी से ज्यादा आबादी गांवों में ही रहती है। तभी तो ग्राम स्वराज की दृढ़ संकल्पना के साथ महात्मा गांधी ने कहा था कि --- “सच्चा लोकतंत्र केंद्र में बैठकर राज्य चलाने वाला नहीं होता, अपितु यह तो गाँव के प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग से चलता है”
जलियाँवाला बाग़ और ख़ूनी बैसाखी: इतिहास के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक
भारत के इतिहास में कुछ तारीखें यैसी भी हैं जिन्हें कभी नहीं भुलाई जा सकती… यैसी ही एक तारीख है.. 13 अप्रैल…. 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के मौके पर पंजाब में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए नरसंहार ने न केवल ब्रिटिश राज की क्रूर और दमनकारी चेहरे को उजागर किया, बल्कि इसने भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। दरअसल, गुलाम भारत के लोगों पर ज्यादतियां तो बहुत हुईं थीं, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नरसंहार पहली बार हुआ था। इस दिन एक सनकी अंग्रेज की रक्त पिपासु आदेश पर गोरे सिपाहियों ने निहत्थे भारतीयों की खून से होली खेली और तीन तरफ से मकानों से घिरे एक मैदान में निहत्थे हिंदुस्तानियों की भीड़ को गोलियों से भून दिया। मैदान के चारों तरफ बने मकानों की दीवारों में धसीं गोलियों के निशान और एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत का मंजर, आज भी हर भारतीयों के मन को झकझोर देता है। हर दिन यहां आने वाले हजारों लोगों में से बहुत से लोग उस पिरामिडनुमा पत्थर के नजदीक बैठ कर फफक-फफक कर रो पड़ते हैं, जिस पर लिखा है “ यहां से चलाई गई थी गोलियां”…। यह तारीख दुनिया के इतिहास में घटे सबसे बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है।
अविश्वास प्रस्ताव और पाकिस्तान की बदहाली: महंगाई, मुद्रास्फीति, आतंक और कट्टरता से बर्बाद होता पाकिस्तान
बड़े-बड़े वादे करने वाले और पाकिस्तान को आर्थिक, सामरिक और वैश्विक ताकत बनाने का खोखला दावा करने वाले इमरान खान के शासनकाल के बमुश्किल अभी तीन साल और सात महीने ही पूरे हुए थे, कि भ्रष्टाचार, महंगाई और पाकिस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था के साथ ही असफल विदेश नीति का हवाला देते हुए विपक्षी पार्टियां पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज ने 8 मार्च को नेशनल असेंबली में इमरान खान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया। इमरान खान की मुश्किलें तब और बढ़ गईं, जब उनकी ही पार्टी के करीब दो दर्जन सांसदों ने उनका साथ छोड़ दिया। दरअसल पाकिस्तान में लोकतंत्र के अस्थिर होने का खामियाजा न केवल वहां की जनता को भुगतना पड़ा है, बल्कि भारत समेत तमाम पड़ोसी मुल्कों को भी उठानी पड़ी है। अस्थिरता का तकाजा ये रहा कि पाकिस्तान के गठन के बाद से अब तक कोई भी प्रधानमंत्री वहां पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका।
रूस-यूक्रेन युद्ध: भाग-4, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले आर्थिक प्रभाव
रूस-यूक्रेन युद्ध सीरीज के तीसरे भाग में हमने बात की थी कि, नाटो क्या है, और रूस-यूक्रेन विवाद में नाटो की भूमिका कितनी बड़ी है? साथ ही हमने रूस-यूक्रेन की सैन्य क्षमता के साथ ही परमाणु हथियारों की चर्चा भी की थी। रूस-यूक्रेन युद्ध सीरीज के चौथे भाग में हम चर्चा करेंगे... रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर की। युद्ध न सिर्फ मानवीय त्रासदी के कारण बनते हैं, बल्कि आर्थिक बर्बादी भी लाते हैं। और खासकर तब, जब खुली अर्थव्यवस्था और ग्लोबल विलेज की वैश्विक संकल्पना के साथ दुनिया के हर देश व्यापार और कारोबार के जरिए एक दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हों। ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ना लाजिमी है।