व्यक्ति विशेष
विचारों की आंच पर तपने का नाम है भगत सिंह
“हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली ये मुश्ते-खाक है फानी, रहे रहे न रहें। अच्छा रुखसत, खुश रहो अहले वतन, हम तो सफ़र करते हैं”। तेईस साल की उम्र में जब कोई नौजवान सफलता के सपने देखता है, उसके लिए योजनाएं बनाता है, जीवन में आनंद और उत्साह के बारे में सोचता है.... उस उम्र में भगत सिंह ने अपने विचारों, अपने आचरण और अपने कर्म को एक ऐसे लक्ष्य के लिए समर्पित कर दिया जिसमें उन्होंने पराधीन देश की मुक्ति का सपना देखा...गुलामी की बेड़ियों को हमेशा-हमेशा के लिए तोड़ देने का जज़्बा दिल में पैदा किया और उसे साकार करने में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
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मानवता के पुरोधा: दीनदयाल उपाध्याय
राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य मानने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय का पूरा जीवन सादगी, ईमानदारी और प्रेरणा की मिसाल है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय मात्र एक राजनेता नहीं थे। वे उच्च कोटि के चिंतक, विचारक और लेखक भी थे। उन्होंने शक्तिशाली और संतुलित रूप में विकसित राष्ट्र की कल्पना की थी। पूरी दुनिया को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा से परिचित कराने वाले दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीतिक और आर्थिक चिंतन के एक वैचारिक दिशा देने वाले पुरोधा थे।
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रामधारी सिंह दिनकर: राष्ट्रचेतना और जनजागरण के कवि
जीवन भर अपनी रचनाओं में जन-जागरण के लिए हुंकार की गर्जना भरने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर न केवल हिंदी साहित्य के भंडार को विविध विधाओं से भरने का यत्न करते रहे बल्कि क्रांति-चेतना के प्रखर प्रणेता बनकर अपनी कविताओं के जरिए राष्ट्र प्रेम का अलख जगाते रहे। दरअसल राष्ट्रीय कविता की जो परम्परा भारतेन्दु से शुरू हुई उसकी परिणति हुई दिनकर की कविताओं में। उनकी रचनाओं में अगर भूषण जैसा कोई वीर रस का कवि बैठा था, तो मैथिलीशरण गुप्त की तरह लोगों की दुर्दशा पर लिखने और रोनेवाला एक राष्ट्रकवि भी।
हिन्दी साहित्य सम्राट : मुंशी प्रेमचंद
प्रेमचंद ने अपनी ज़िंदगी में मास्टरी की, संपादकी की लेकिन वे जाने गए कलम के सिपाही तौर पर। प्रेमचंद ने युवावस्था में एकबारगी कलम क्या उठाया, अपनी लेखनी से साहित्य के संसार को प्रकाश पूंज से भर दिया। एक से बढ़कर एक कहानियां लिखी, अनुवाद किया, नाटक लिखा, पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, कालजयी उपन्यास लिखा, कलम को प्रतिष्ठा दी और साहित्य को नया सरोकार दिया।
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