हमारे महानायक
मुज़फ़्फ़रपुर बम कांड का नायक: जिसने 18 साल की उम्र में आजादी के लिए फांसी के फंदे को चूम लिया
बंगाल विभाजन के विरोध के दौरान फरवरी 1906 में मिदनापुर में लगे एक कृषि उद्योग मेले में क्रांतिकारी पर्चा ‘वंदे मातरम’ बांटते समय एक सिपाही ने उन्हें पकड़ लिया, लेकिन दिलेर खुदीराम ने उसकी नाक पर ऐसा घूंसा मारा कि सिपाही गिरकर बेहोश हो गया और वो भाग निकले। हालांकि वो दो महीने बाद पकड़े गए, लेकिन सबूतों के अभाव में मई 1906 में रिहा भी हो गए।
सरफ़रोश क्रांतिकारी: पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’
बिस्मिल भारत तो क्या संभवत: दुनिया के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने क्रांतिकारी के तौर पर अपने लिए जरूरी हथियार अपनी लिखी पुस्तकों की बिक्री से मिले रुपयों से खरीदे थे। आजादी के गुमनाम नायक में आज बात इसी सरफरोश क्रांतिकारी के बारे में... जिसके बहुआयामी व्यक्तित्व में देश प्रेम के साथ ही एक संवेदनशील कवि, शायर, साहित्यकार और इतिहासकार के साथ-साथ एक बहुभाषी अनुवादक भी निवास करता था।
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‘बावनी इमली’: 52 स्वतंत्रता सेनानियों की फाँसी का गवाह एक इमली का पेड़
देश को आजादी दिलाने के लिए हजारों राष्ट्रभक्तों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी। अनगिनत लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत की यातना और पीड़ा को झेला। स्वाधीनता के आंदोलन में जो जिंदा बच गए, उन्होंने तो अपनी आपबीती सुनाई, लेकिन उस लड़ाई के गवाह सिर्फ क्रांतिकारी, राष्ट्रीय नेता, आम जनता या लिखी गई दस्तावेज ही नहीं हैं, बल्कि अनेक ऐसे बेजुबान पेड़-पौधे, नदी-झील, पर्वत-पहाड़ और ऐतिहासिक इमारत भी हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान हमारे क्रांतिकारियों और राष्ट्रभक्तों को अपने तले पनाह दी। उन्हें हिम्मत दी और थेक-हारे देशभक्तों के अंदर एक उम्मीद की किरण जगाई। इन बेजुबानों ने अंग्रेजों के जुल्मों-सितम को देखा, उनकी बर्बरता देखी, अपने शूरवीरों का बलिदान देखा और देश की आजादी के साक्षी भी बने। अफसोस कि वे कुछ बोल नहीं सकते, लेकिन वे आज भी खड़े हैं, इतिहास को खुद में समेटे... और हर आने जाने वालों को गवाही देते हैं कि मैं उस दौर का साक्षी हूँ, जब हमारे शूरवीरों ने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इन्हीं साक्ष्यों में से एक है, उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के खजुहा कस्बे के पास स्थित ‘बावनी इमली’ का पेड़। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को अंग्रेजों ने 52 क्रांतिवीरों को एक साथ फांसी पर लटका दिया था। इमली का वह बूढा दरख्त आज भी अपने अतीत के गौरव की कहानी सुना रहा है।
दृढ़ निश्चय और उदात्त विचारों के संगम का नाम है ‘लाल बहादुर शास्त्री’
अपनी ईमानदारी, सादगी और उच्च नैतिक आदर्शों के लिए पहचाने जाने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने सत्ता को कभी भी सुख और वैभव भोगने का साधन नहीं माना। प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं बल्कि अन्य पदों पर रहते हुए भी उन्होंने उच्च आदर्श और नैतिकता का उदाहरण पेश किया। 1956 में जब वो रेल मंत्री थे तब एक रेल दुर्घटना हुई जिसमें कई लोग मारे गए थे। खुद को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। तब भी शास्त्री जी ने अपने आचरण से राजनीति में नैतिकता की एक अलग मिसाल कायम की।
अशफाक उल्लाह खां: महान क्रांतिकारी और बेहतरीन शायर
“जिन्दगी वादे-फना तुझको मिलेगी 'हसरत', तेरा जीना तेरे मरने की बदौलत होगा।“ भारत के स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है। काकोरी कांड ही वह घटना थी जिसके बाद देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था और वे पहले से ज्यादा लोकप्रिय होने लगे थे। दरअसल फरवरी 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया तब भारत के युवाओं में जो निराशा पैदा हुई थी उसे काकोरी कांड ने ही दूर किया था... और इस काकोरी कांड में बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी अमर शहीद अशफाक उल्लाह खां ने......
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विचारों की आंच पर तपने का नाम है भगत सिंह
“हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली ये मुश्ते-खाक है फानी, रहे रहे न रहें। अच्छा रुखसत, खुश रहो अहले वतन, हम तो सफ़र करते हैं”। तेईस साल की उम्र में जब कोई नौजवान सफलता के सपने देखता है, उसके लिए योजनाएं बनाता है, जीवन में आनंद और उत्साह के बारे में सोचता है.... उस उम्र में भगत सिंह ने अपने विचारों, अपने आचरण और अपने कर्म को एक ऐसे लक्ष्य के लिए समर्पित कर दिया जिसमें उन्होंने पराधीन देश की मुक्ति का सपना देखा...गुलामी की बेड़ियों को हमेशा-हमेशा के लिए तोड़ देने का जज़्बा दिल में पैदा किया और उसे साकार करने में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
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