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संदर्भ विशेष

रूस-यूक्रेन युद्ध (भाग-3) : नाटो की भूमिका, यूक्रेन क्यों चाहता है नाटो में शामिल होना और रूस को क्यों है आपत्ति?

Russia Ukraine Crisis

रूस-यूक्रेन युद्ध सीरीज के दूसरे भाग में हमने चर्चा की थी कि सोवियत शासन के दौरान रूस और यूक्रेन के बीच संबंध कैसे थे और सोवियत संघ टूटने के बाद कैसे यूक्रेन एक स्वतंत्र देश बना। इसके साथ ही हमने क्रीमिया के इतिहास और रूस द्वारा क्रीमिया के अधिग्रहण की बात भी बताई थी। हालांकि, यूक्रेन के स्वतंत्र होने के बाद से उसकी नीति पश्चिमी देशों की तरफ झुकती चली गई और वह रूस के प्रभाव से निकल कर नाटो का सदस्य बनने की राह पर चल पड़ा। और यहीं से रूस और यूक्रेन के संबंध बिगड़ने शुरू हो गए और स्थिति युद्ध तक पहुंच गई। रूस यूक्रेन युद्ध सीरीज के विशेष आलेख के इस तीसरे भाग में हम चर्चा करेंगे कि नाटो को लेकर रूस इतना कड़ा रुख क्यों रखता है? और वह क्यों नहीं चाहता है कि यूक्रेन किसी भी सूरत में नाटो का सदस्य बने? साथ ही बात करेंगे कि नाटो क्या है? इसका मकसद क्या है? यूक्रेन क्यों नाटो का सदस्य बनना चाह रहा है और रूस क्यों इसका विरोध कर रहा है? इसके अलावा नाटो से रूस के रिश्ते अब तक कैसे रहे हैं? और भविष्य में किस तरह के संबंध होने की संभावना है।

रूस-यूक्रेन युद्ध (भाग-दो): क्रीमिया पर कब्जा और विवाद

Russia-Ukraine War Part- 2

रूस और यूक्रेन ऐतिहासिक काल से ही सांस्कृतिक, सामाजिक और भू-राजनीतिक रूप से कमोबेश एक दूसरे से जुड़े हुए थे। हालांकि, मंगोलों और तुर्कों के आक्रमण से इनकी सीमाएं घटती-बढ़ती रहती थीं। बाद में रूस ने यूक्रेन और क्रीमिया को अपने में मिला लिया था। लेकिन रूस के इस अधिग्रहण को लेकर यूक्रेन में समय-समय पर आक्रोश भी होता रहा और आजादी की छटपटाहट यूक्रेनी लोगों में हमेशा से बनी रही। इस आलेख में हम चर्चा करेंगे... यूक्रेन के स्वतंत्र देश के रूप में अलग होने के साथ ही सोवियत संघ में शामिल होने की। इसके अलावा उस क्रीमिया के इतिहास की भी चर्चा करेंगे जो वर्तमान में रूस-यूक्रेन झगड़े का वजह बना... और जानेंगे कि जिस क्रीमिया को रूस ने 1954 में दोस्ती की मिसाल के तौर पर यूक्रेन को दे दिया उसी क्रीमिया पर 2014 में क्यों जबरदस्ती कब्जा कर लिया?

रूस-यूक्रेन युद्ध (भाग-एक) : ऐतिहासिक संबंध

Russia Ukraine Part 1

रूस-यूक्रेन युद्ध का क्या होगा परिणाम... सामरिक, राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर किस तरह के नतीजे देखने को मिलेंगे... क्या इस युद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर एक नया ध्रुवीकरण देखने को मिलेगा और क्या दुनिया फिर से दो पक्षों में बंट जाएगी। क्या एक और परमाणु विभीषिका दुनिया को देखने को मिलेगी। इन सब के बीच सवाल ये है कि...आखिर ऐसी क्या बात हो गई कि 1991 तक सोवियत संघ का हिस्सा रहे और सोवियत परमाणु संयंत्र का केंद्र रहा यूक्रेन रूस के खिलाफ इतना बगावती हो गया। और क्यों अमेरिका समेत सभी नाटो देश यूक्रेन को अपनी तरफ मिलाने और उसका समर्थन करने पर उतारू हो गए। इन तमाम मुद्दों को जानने के लिए रूस-यूक्रेन के ऐतिहासिक संबंधों को समझना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के साथ रूस और यूक्रेन के संबंधों को भी जानना जरूरी है। इन सभी पहलुओं को गहराई से जानने समझने के लिए सबसे पहले बात करते हैं रूस और यूक्रेन के ऐतिसाहिक संबंधो की...

कैसी होगी डिजिटल करेंसी और क्या है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी?

Digital Currency

डिजिटल पेमेंट्स से डिजिटल करेंसी बिलकुल अलग होगी। दरअसल, ज्यादातर डिजिटल पेमेंट्स चेक की तरह काम करते हैं। इसमें आप बैंक को निर्देश देते है कि वह आपके अकाउंट में जमा राशि से इतने रुपये का पेमेंट या ट्रांजेक्शन कर दे, तब बैंक उतनी राशि का पेमेंट करता है। इस तरह डिजिटल ट्रांजेक्शन में कई संस्थाएं और लोग शामिल होते हैं जो इस प्रोसेस को पूरा करते हैं। जैसे, अगर आपने क्रेडिट कार्ड से कोई पेमेंट किया तो क्या तुरंत ही सामने वाले को पैसा मिल गया? तो इसका जवाब है नहीं...। डिजिटल पेमेंट सामने वाले के अकाउंट में पहुंचने के लिए एक मिनट से 48 घंटे तक का समय ले लेता है। यानी, पेमेंट तत्काल नहीं होता, उसकी एक प्रक्रिया होती है। लेकिन जब आप डिजिटल करेंसी के जरिए किसी को पेमेंट करते हैं तो वह सामने वाले को तुरंत मिल जाता है और यही इसकी खूबी है।

‘तिरंगा’: राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतिक और इसके शिल्पकार पिंगलि वेंकय्या

Chronologies of Flag

जिस झंडे के नीचे आज हम अपने आजाद भारत को देखते हैं और जिसको हम स्वतंत्र भारत के ऊपर लहराते हैं... वह मात्र तीन रंगों के कपड़े का एक टुकड़ा भर नहीं है, बल्कि यह हमारी गौरवशाली परंपरा, स्वाभिमान और अस्मिता की पहचान है। दरअसल, एक देश की पहचान उसके ध्वज, प्रतीक, और राष्ट्र गान से होती है, जो उसके लिए अद्वितीय होता है... और हमारा राष्ट्रीय ध्वज- तिरंगा- उन्हीं में से एक है, जो हमे गर्व और स्वाभिमान के साथ जीने की ताकत देता है।

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध और भारत की स्वर्णिम विजय

Pakistan Surrender after 1971 War

वो तारीख थी 3 दिसंबर 1971... शाम के पांच बजकर 40 मिनट हुए थे... तभी पाकिस्तानी वायुसेना के सैबर जेट्स और स्टार फाइटर विमानों ने भारतीय वायु सीमा पार कर पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर और आगरा के सैनिक हवाई अड्डों पर बम गिराने शुरू कर दिए। पाकिस्तान के इस नापाक हमले ने मार्च 1971 से शुरू तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में भारत को भी घसीट लिया। इसके बाद, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के साथ ही भारत-पाकिस्तान के बीच सीधे तौर पर युद्ध छिड़ गया, जिसकी परिणति 13 दिन बाद पाकिस्तान की करारी हार के साथ हुई।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा: भारत-रूस संबंधों के लिए कितना महत्वपूर्ण?

Putin Visit to India 2021

एक ओर दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है, तो दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था एक नया आकार ले रही है। वैश्विक स्तर पर राष्ट्रों के बीच बनते-बिगड़ते रिश्तों का असर सामरिक संबंधों पर भी पड़ रहा है। ऐसे में भारत और रूस की बात करें तो दोनों देश विश्व पटल पर अपने आप में अहम किरदार हैं। हालांकि जिस तरीके से अमेरिका के साथ भारत और चीन के साथ रूस के रिश्तों का उभार हुआ है, उसका असर भी इन दोनों देशों के संबंधों पर भी पड़ना लाजिमी है। इन सब के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों को एक नई ऊर्जा और नया आयाम भी मिलने की उम्मीद है।

G20 शिखर सम्मेलन, 2021: ‘रोम घोषणापत्र’ और बदलते वैश्विक परिवेश में जी20 की प्रासंगिकता

G20 Rome Summit

इटली के रोम में आयोजित दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन जी20, 31 अक्टूबर को समाप्त हो गया। दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था का 80 फीसदी हिस्सा साझा करने वाले देशों ने जी20 सम्मेलन में कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने, स्वास्थ्य अवसंरचना में सुधार, आर्थिक सहयोग को बढ़ाने और नवाचार को प्रोत्साहन देने जैसे मुद्दों पर सहमति जताई। साथ ही जलवायु परिवर्तन के तत्काल खतरे से निपटने के लिए सार्थक और प्रभावी कदम उठाने पर प्रतिबद्धता भी जताई। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि रोम में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन कितना सार्थक रहा और जी20 शिखर सम्मेलन अब तक अपने उद्देश्यों को हासिल करने में कितना सफल रहा है।

कॉप-26 सम्मेलन: जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां, ग्लासगो एजेंडा और आगे की राह

COP26

धरती का तापमान अगर 2 डिग्री बढ़ जाएगा तो क्या होगा? आम लोगों से लेकर प्रकृति पर इसका काफी भयावह असर पड़ेगा। इसकी वजह से दुनिया की एक तिहाई आबादी नियमित रूप से भीषण गर्मी की चपेट में आ जाएगी। इससे स्वास्थ्य समस्याएं और गर्मी से होने वाली मौतें आज की तुलना में काफी बढ़ जाएगी। तकरीबन सभी गर्म पानी के प्रवाल भित्तियां नष्ट हो जाएंगी और आकर्टिक सागर में मौजूद सभी बर्फ एक दशक में पिघल जाएंगे। यही नहीं, इसके विनाशकारी प्रभाव से वन्यजीव और उनसे जुड़े प्राणियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र: बदलते परिवेश में जरूरी है बदलाव

UN pics collage

अपने गठन के बाद से संयुक्त राष्ट्र ने जहां इसने वैश्विक स्तर कई मुद्दों को सुलझाने में सफलता हासिल की है, वहीं अनेक महत्वपूर्ण मुद्दें अनसुलझे रह गए हैं, जो संयुक्त राष्ट्र की कमियों और असफलताओं को उजागर करते हैं। 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से अब तक दुनिया में काफी बदलाव हो चुके हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र की संरचना में खासकर इसके सुरक्षा परिषद में कोई बदलाव नहीं हुआ है। भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील जैसे देश लंबे समय से लगातार इस बात की पुरजोर मांग कर रहे हैं कि सुरक्षा परिषद की संरचना में बदलाव कर उन्हें भी इसमें शामिल किया जाए। बदलते वैश्विक परिवेश में यह जरूरी भी है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए इसके सुरक्षा परिषद में बदलाव और विस्तार किया जाए।